साथिया
साथिया
आज मुझे अपनी बचपन की सहेली पिंकी बड़ी शिद्दत से याद आती है हमें बिछड़े हुए क़रीब 40 साल हो गए।
वो मेरी ऐसी साथी थी उसके साथ बचपन में हर पल रहती थी यहां तक की उसके घर फर ही खेलते-खेलते भूख लग जाती तो उसकी मम्मी मुझे, पिंकी को और उसका छोटा भाई था "प्रदीप रत्न" हम तीनों को इतने प्यार से खाना खिलाती थी।
मेरी वो साथिया थी तो पंजाबी फेमिली मगर मेरी अम्मा कहती लगता ही नहीं है ये हमारी बेटी है। जब सुबह होती मुंह धोकर या चाय-नाश्ता जैसे तैसे करती और पिंकी के घर की दौड़ लगा देती।
यहां तक की पिंकी की मम्मी ने ही मेरा नाम स्कूल में लिखवा दिया था।अरे हाँ मेरी उस बेस्टफ्रेंड का स्कूल का नाम "ज्योति रत्न था । हम दोनों जब 11क्लास में आए तो उसके डेडी पंजाब में फेमिली को लेकर शिफ्ट हो गए तबसे आज तक मैं उसकी तलाश में हूँ बड़ी याद आती हैफिर एक बार मेरी शादी के बाद उसके डेडी आए थे मुझसे मिलने तो उन्होंने बताया था #ज्योति रत्न की पंजाब में शादी कर दी है और बेटा प्रदीप रत्न टीवी चैनल में जॉब करता है दिल्ली में भी मेरी एक दिन भी ऐसा नहीं कभी भूली हो उसको ...
एक मज़ेदार बात बताना थी पंजाब घूमने गई हसबेंड के साथ तो कई जगह बड़ी गोर से अपनी उस दोस्त को मेरी नज़रें ढ़ूढ़ती रही पर न मिली मेरी साथिया ...
आज भी कहानी लिखने का मक़सद है कहीं वो भी लिखती हो या मेरी कहानी पढ़ लें तो शायद मेरी बिछड़ी सहेली फिर से मिल जाए खैर जब शिद्द्त से किसी की तलाश करें तो रब मिला देता है मुझे यक़ीन है ...।
वो जहां भी हो उसकी फेमिली रब अच्छा रखें।