साथ हो तो सब अच्छा है

साथ हो तो सब अच्छा है

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स्नेहल हफ्ते से देख रही थी कि उसकी दोस्त मीरा बहुत परेशान सी है खास तौर पर जब वो स्कूल आती है। थोड़े समय में नॉर्मल हो जाती है पर स्कूल की छुट्टी के वक़्त फिर से परेशान दिखाई देने लगती है।

स्नेहल मीरा के घर पर भी कई बार गई हुई थी और उसका परिवार बहुत अच्छा था तो ये मुश्किल था कि वो अपने परिवार की वजह से परेशान हो पर कुछ ना कुछ तो जरूर था। एग्जाम के चलते वो ज्यादा आपस में बात नहीं कर पा रही थी लेकिन आज स्नेहल ने पक्का मन बना लिया था मीरा से बात करने का सो टिफिन खाते वक़्त वो मीरा से उसकी परेशानी का कारण पूछने लगी।

मीरा उसके पूछने पर रोने लगी। उसने कहा कि स्कूल आते हुए और जाते हुए रास्ते में एक लड़का मिलता है जो रास्ता सुनसान होने पर छेड़खानी करता है। मीरा कहने लगी रोज़ कोशिश करती हूं कि ऐसे चलूं कि कोई मेरे साथ हो पर स्कूल से घर तक का आधा रास्ता लगभग अकेले ही काटना पड़ता है। और अगर ये बात मां को बताऊंगी तो वो पापा के वापस आने तक मेरी स्कूल से छुट्टी करा देगी और पापा 15 दिन बाद आएंगे। लेकिन अब मुझे स्कूल आते जाते बहुत डर लगता है।

स्नेहल ने मीरा को गले लगाया और बोली कि कल से मैं तुम्हारे साथ आया जाया करूंगी। घर से 10 मिनट पहले निकलूंगी तो मैनेज हो जाएगा। और फालतू डर मत। तेरे डरने का ही वो फायदा उठा रहा है।खैर अब तू अकेली नहीं, मैं भी तेरे साथ हूं और एक और एक ग्यारह होते हैं। कल दोनों अपने हाथ में एक डंडा पूरी बाजू कि शर्ट में छुपा कर लाएंगे और उस बदतमीज को सीधा करेंगे। और फिर थोड़ी पीछे आते मेरे पापा बाकी संभाल लेंगे। आज मैं अपने घर पर सब बात कर लूंगी।मीरा की आंसुं भरी आंखों में दृढ़ता आ गई।

अगले दिन दोनों ने जैसे प्लानिंग की थी वैसे ही किया। रास्ते में जैसे ही वो लड़का मिला दोनों ने उसके हाथ बढ़ाते ही खींच कर डंडे दनादन उसे मारने शुरू कर दिए। वो लड़का चोट खाकर ज़मीन पर गिर पड़ा और तभी स्नेहल के पापा आ गए और उसे खींच कर पुलिस थाने ले गए।

मीरा और स्नेहल दोनों अपनी जीत और मुसीबत टलने पर खुश हो गई। अकेले शायद मीरा कभी उसका सामना न कर पाती पर दो की शक्ति दो की ही होती है। साथ हो तो सारी दिक्कतें दूर हो जाती हैं।


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