सास एक सौगात
सास एक सौगात
रीता बचपन से ही बहुत मौजी स्वभाव की लडकी थी। हमेशा अपनी ही मस्ती मे रहती। माँ ने कई बार समझाने की कोशिश भी की लेकिन कुछ असर न हुआ। शादी हुई तो अपनी माँ की ढेरों नसीहतो के साथ ससुराल मे कदम रखा।कोशिश तो बहुत की अपनी सास को खुश रखने की लेकिन वे बहुत ही व्यवस्थित ढंग से जीने वाली औरत थी ।बस जल्दी ही रीता की आदतों से परेशान होने लगी। चूंकि रीता को भी ज्यादा रोक टोक सहने की आदत नही थी तो अक्सर उसकी औऱ सासुमां की छोटी छोटी बातों को लेकर कहासुनी हो जाती। कभी कभी तो छोटी सी बात को लेकर शुरू हुई कलह बहुत भयंकर रूप ले लेती। बाकी दिनों मे तो फिर भी चल जाता लेकिन छुट्टी वाले दिन घर मे भयंकर महाभारत शुरू हो जाती औऱ इस सबमे फँसता बेचारा राहुल।उसकी पूरी छुट्टी कभी रीता को तो कभी अपनी माँ को मनाने मे निकल जाती।
इस बार जब तीन तीन छुट्टियां इकट्ठी आ गई तो राहुल की परेशानी बहुत बढ गई। निजात पाने के लिए उसने कहीं बाहर घूमने जाने की सोची। रीता की छोटी बहन जोकि दिल्ली मे रहती है, कई बार उन्हें अपने यहाँ आने के लिए कह चुकी थी सो रीता ने उसी के यहाँ जाने का प्रोग्राम बनाया।उसकी सास नहीं थी इसलिए रीता को हमेशा लगता था कि वह कितनी किस्मत वाली है।तय दिन रीता पति व बच्चों के साथ दिल्ली बहन के यहाँ पहुंची।वहाँ जाकर उसने देखा हरदम खुश रहने वाली उसकी बहन बहुत परेशान है, चेहरा भी मुरझाया हुआ है, घर भी अव्यवस्थित था, उसका बेटा सुहान भी कुछ बीमार चल रहा था।उससे बात की तो पता चला दफ्तर जाते समय वह सुहान को डेकेयर सैन्टर छोड़ कर जाती है जहाँ पर पूरी देखरेख के अभाव मे वह जल्दी बीमार हो जाता है। इसके इलावा उसके खुद के लिए भी घर औऱ दफ्तर के कामों मे सामजस्य बिठाना बहुत मुश्किल हो रहा है। रीता से बोली तू बहुत खुशकिस्मत है जो तेरे पास घर मे मां जैसी सास है वरना अकेले घर, नौकरी, बच्चे ये सब सभालना बहुत ही मुश्किल है।
अब तो रीता को समझ नही आ रहा था क्या कहे। मन ही मन सोचने लगी मैं तो सुबह अपने समय पर तैयार होकर निकल जाती हूँ पीछे से घर कैसे व्यवस्थित होता है, मुझे कुछ नहीं पता। बच्चे स्कूल से घर आकर क्या खाते है, कब कपडे बदलते है, क्या करते है, मुझे तो कुछ भी नहीं पता। ये सबकुछ तो सासुमां ही देखती है। कई बार शाम को घर आकर भी दफ्तर का काम लेकर बैठ जाऊँ तो रात का खाना भी माँझी खुद ही बना लेती है आज रीता को सच मे अपनी सासुमां की अहमियत समझ मे आ रही थी। इतना सब काम करने के बाद अगर उसे कोई गलती करने पर दो बातें कह भी देती हैं तो इसमें बुरा ही क्या है। रीता को वो दिन याद आने लगे जब एक तरफ उसकी अपनी माँ उसे विदा करने की तैयारियों मे लगी हुई थी तो दूसरी तरफ सासुमां बहु लाने की खुशी मे फूली नही समा रही थी। अपने घर मे पहला कदम रखते ही बडे चाव से उसकी आरती उतारी,ढेरों रस्मे निभाई, कितने दिनों तक चौका चूल्हा नहीं करने दिया। खुद चाहे दस बातें बना ले लेकिन उनके होते कोई दूसरा कुछ नहीं कह सकता। सचमुच ससुराल मे सास किसी सौगात से कम नही। तीन दिन बहन के घर बिताने के बाद रीता की अक्ल अब ठिकाने आ चुकी थी। अब मन हो रहा था दौड़ कर घर पहुँच जाऊँ औऱ अपनी सासुमां के गले लगकर अपने किए की माफी माँग ले। ये बात सोलह आने सच है जिस प्रकार माँ के बिना मायका नहीं, सास के बिना ससुराल भी नहीं है।
