सामाजिक सरोकार
सामाजिक सरोकार


"माँ,,माँ मुझे बचा लो माँ। आप..आप बापू को समझाओ। मैं अभी बहुत छोटी हूँ,,,,मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ... मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ..... माँ,,,,।" ...कहते-कहते फूट-फूटकर रोने लगी लाजो।
पास ही खड़ी कमली अपनी बेटी को रोते देख बुरी तरह टूट चुकी थी,,,,लेकिन इन मर्दों के समाज में वह बेबस और लाचार थी। ऐसा नहीं था कि उसने अपने पति या ससुर से इस बारे में बात नहीं की थी,,,पर हमेशा की तरह किसी ने उसकी एक न सुनी थी।
आज से 15 साल पहले वो भी तो इसी तरह रो-रो कर अपने पिता से शादी न करने की भीख माँगती रही थी। 13 साल की बच्ची थी वो ,,जब उसके बचपन को कुचल कर जबरदस्ती उसे डोली में बैठा दिया गया था। कितना शौक था उसे भी पढ़ने का। ब्याह के बाद एक दिन जब उसने अपने पति को स्कूल जाते देखा तो,,,
"सुनो जी,,,,मैं भी आपके साथ स्कूल चलूँ। मुझे भी पढ़ना है।",,,,,सहमी- सी कमली ने अपने पति से कहा था।
"क्या कहा तूने,,,तू स्कूल जावेगी। नाम भी लिया, स्कूल जाने का, तो जै पैर पे चल तू स्कूल जावेगी, वो तोड़ तेरे हाथ में दे दूँगा,,, सारी जिंदगी विकलांग बन गुजरेगी।"......चिल्लाते हुए ससुर ने कहा था।
उस दिन के बाद जब भी कभी वो कुछ कहती,,,,बिना सुने ही उसे चुप करा दिया जाता। जब लाजो 4 साल की हुई तो उसने बहुत हिम्मत कर लाजो के स्कूल जाने की बात अपने पति से कही,,पर दो तीन डंडे इतने ज़ोर से उसके पैरों पर पड़े कि 15-20 दिन तो वो ठीक से अपने पैरों पर चल भी न सकी। लेकिन जब सरकार की तरफ से लड़कियों की शिक्षा का जरूरी आदेश आया तो लाजो को स्कूल भेजना ही पड़ा,,,पर आज लाज़ो की शादी.....। कितनी छोटी है उसकी लाजो,,, पर वह क्या करें, कैसे रोके इस शादी को???
पूरी ताकत बटोर उसने फिर अपने पति और ससुर से शादी रोकने की बात की,,,लेकिन
"ज़ोर से दो-तीन थप्पड़ पड़े उसके मुँह पर,,,,एक बात सुन ले,,,शादी तो होकर रहेगी। ज्यादा बोली तो इस बार तेरी जुबान काट तुझे गूंगा बना दूँगा।"....गुस्से में चिल्लाया था उसका पति।
'पैर तोड़ डालूँगा, जबान काट डालूँगा,,,, गूँगा बना दूँगा'....शब्द बार-बार उसके कानों में गूँजते चले गए। बदहवास-सी हो दोनों कानों को हाथों से ढाप लिया उसने। करीबन 15-20 मिनट आँखें बंद कर इसी अवस्था में बैठी रही,,,, फिर जब उसने आँखें खोली तो एक अलग ही चमक थी उन आँखों में,, कुछ कर गुजरने की चमक,,,,किसी ठोस बात का निर्णय। बिना वक्त गवाए, उसने अंदर जाकर लाजो का हाथ पकड़ा और निकल पड़ी घर से।
"बहुत बुरी तरह से मारा हैं,, मेरे पति ने मुझे। देखिए,,मेरे गाल पर कितने निशान हैं। मेरा कसूर क्या था,,,केवल इतना कि मैं अपनी 12 साल की बच्ची की शादी करवाने से उसे रोक रही थी।"......थाने में बैठी कमली इंस्पेक्टर शालिनी सिन्हा को सब बता रही थी।
तुरन्त ही एक कांस्टेबल कमली के पति और ससुर को पकड़ लाया। कमली को सामने देख पति बोला,,,
"ओह, तो ये तेरी करामात है।तू हमें जेल भिजवाना चाहती है।",,,,,अपना एक हाथ गुस्से में उठाते हुए,,,"रिपोर्ट वापस ले,,,नहीं तो",,,,,,
"नहीं तो,,,,,नहीं तो , क्या! मारोगे मुझे,,,,,पैर तोड़ डालोगे,,,जुबान काट डालोगे। क्या करोगे!!....पैर, जुबान काट मुझे विकलांग बना डालोगे,,,तो बना डालो। यह विकलांगता का जीवन तो मैं पिछले 27 वर्षों से जी रही हूँ। 13 साल मायके में और 14 साल तुझ जैसे पति के साथ। धिक्कार है तुझ जैसे पति पर,,,जो औरत को अपने पैर की जूती समझता है। बात -बात पर विकलांग बनाने की धमकी देता है।,,,,अरे,,आदमी केवल शरीर के किसी अंग के कट जाने से ही विकलांग नहीं होता बल्कि मन में जबरदस्ती ठूसे गए विचारों से भी विकलांग बन जाता हैं। हमारे समाज में स्त्री को बचपन से यही सिखाया जाता हैं कि उसका कोई अपना वजूद, अपना अस्तित्व नहीं है। उसका वजूद, अस्तित्व केवल उसका पति है। पति के बिना वह विकलांग है,,पति ही उसकी दो बैसाखी हैं। हर रोज़ ये बातें उसके मन में और अधिक गहरी होती जाती हैं,,, और उसकी विकलांगता बढ़ती जाती है।
लेकिन अगर ये बैसाखी टूट जाए तो क्या विकलांग मनुष्य जीना छोड़ देता है,,,नहीं। वह अपनी विकलांगता में भी हिम्मत नहीं हारता, वह या तो उस पर जीत हासिल कर लेता है या अपने लिए दूसरी बैसाखियों का इंतज़ाम कर लेता है। आज से मैं भी अपनी इस विकलांगता को हराकर जीत हासिल करूँगी,,,,,और कभी जरूरत पड़ी तो कमज़ोरी के पलों में हम माँ बेटी ही एक-दूसरे की बैसाखी बनेंगे।".......कमली ने लाजो का हाथ पकड़ा और थाने से बाहर निकल गई।