सामाजिक सरोकार कहानी प्रतियोगिता
सामाजिक सरोकार कहानी प्रतियोगिता


'माँ',,,एक ममता से परिपूर्ण शब्द। बच्चे के मुख से निकला,,,' पहला शब्द।' जिसका श्रवण ही उसे एक अनोखी अनुभूति के अहसास से भर देता है।,,, महानता की श्रेणी में विराजित कर देता हैं।इसी शब्द की खातिर कमज़ोर से कमजोर माँ भी हौसले की मिसाल कायम करते हुएअपने बच्चे के लिए दुनिया से लड़ने को, हर विपत्ति का सामना करने को तैयार रहती है।कहा जाता है कि माँ के प्यार की उम्र बाकी सब लोगों के प्यार की उम्र से नौ महीने ज्यादा होती हैं।,,माँ का ये हौसला बच्चे को भी हर स्थिति में हौसला देता है। ऐसी ही एक वृद्धा माँ की कहानी,,जिसके हौसले को हम नमन करते हैं।
,,, 26 जुलाई को ,,,#'कारगिल शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है। न जाने इस दिन शहादत देने वाले फौजियों के बलिदान के पीछे कितनी ही माँ के हौसलों की कहानी छिपी हैं। जन्म देने वाली माँ के हौसलों से ही इन शहीदों को हौसला मिला और वों निकल पड़े अपनी धरती माँ की रक्षा के लिए। ऐसे ही एक वीरता और शौर्य का जीता जागता उदाहरण है,,,,#'मेजर आशाराम त
्यागी,,,,अपनी वृद्धा माँ का एकमात्र सहारा।
1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध में अपनी वृद्धा माँ के हौसले से ही विजयश्री को गले लगाकर शहादत देने वाला भारत का वीर पुत्र। 1965 के युद्ध में जाते समय माँ ने मेजर का हौसला बनते हुए उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा था ,,,
"बेटा, राष्ट्ररक्षा ही तुम्हारा सबसे बड़ा कर्तव्य है। जाओ और अपने कर्तव्य का पालन करो। याद रखो भारतीय परंपरा सीने पर गोली खाने की हैं, पीठ पर नहीं।"
वृद्धा माँ के ये ,,#'शब्द मेजर की हौसला अवजाई करते रहे। उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहे। इन शब्दों को अपना हथियार बनाकर ही मेज़र ने घायल अवस्था में भी युद्ध करते हुए विजय श्री प्राप्त की। वृद्धा माँ के शब्दों की लाज रखते हुए ,,," सीने पर ही गोली खाई,,पीठ नहीं दिखाई" ,,,,देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया।,,नमन है उस वृद्धा माँ के हौसलों को जिसने खुशी-खुशी अपने घर के चिराग को मातृभूमि के लिए बलिदान कर दिया।