सामाजिक सरोकार कहानी प्रतियोगिता
सामाजिक सरोकार कहानी प्रतियोगिता


बरसात
तवे पर रोटी लगभग जल चुकी थी.....पर कमला का ध्यान तो कहीं और ही था.....आँसू लगातार उसकी आँखों से बहे जा रहे थे।....उसकी प्यारी सी, छोटी, लाडली लाजो , क्या होगा उसका भविष्य? कैसे गुजारेगी वह उस ज़मीदार के साथ सारी जिंदगी कैसे...?
तभी धूमिल ने दरवाज़े पर कदम रखा। कमला की तन्द्रा भंग हुई। तभी उसका ध्यान तवे पर गया...रोटी पूरी जल चुकी थी। जली हुई रोटी को उतारने में उसके हाथों की उँगलियाँ भी जल गई.....पर उसे तो केवल लाजो की परवाह थी। बड़ी उम्मीद भरी नजरों से उसने अपने पति धूमिल को देखा, जहाँ उदासी की एक लंबी खाई नज़र आ रही थी। दोनों की आंखें एक दूसरे से टकराई।
" बीज डाल आया हूँ.....देखते हैं क्या होता है...?"....इतना ही कह पाया धूमिल।
कमला जानती थी कि एक साल से बारिश का नामोनिशान नहीं था.. उधार बढ़ता ही जा रहा था.....एक साल से लगान भी नहीं चुकाया था...अगर...अगर 6 महीने में लगान अदा नहीं किया गया तो
...तो उसकी फूल-सी लाजो.....यह सोचते ही वह फूट-फूटकर रोने लगी।
आज बीज बोए हुए 10 दिन हो चुके थे....पर पानी के बिना एक अंकुर भी नहीं फूटा था। दिनों दिन ऐसा लग रहा था जैसे दिनकर प्रचण्ड रूप धारण कर नृत्य मग्न हो। बाहर बरखा का नाम भी नहीं था पर धूमिल की झोपड़ी में तो जैसे आँसुओं की बाढ़-सी आ गई थी। .....और एक दिन धूमिल और कमला ने वो कदम उठाने की सोची...जिससे उनका मानना था कि हर समस्या से मुक्ति मिल जायेगी.....। कमला ने आज बड़े चाव से खाना बनाया...तीन थालियों में खाना परोसा गया...धूमिल ने एक छोटी-सी पुड़िया खोली और तीनों थालियों में रखी खीर में मिला दी। तभी कमला ने लाजो को खाने के लिए आवाज़ लगाई। भगवान का नाम लेकर कमला और धूमिल खाना के लिए बैठे ही थे कि लाज़ो भागती हुई आई.....
" बापू... बापू... देखो कौन आया हैं..?".....कमला और धूमिल आश्चर्यचकित हो उधर देखने लगे। खुशी से हाँफती हुई लाज़ो बोली...
.....' बापू.....ब...र..सा...त.....!!