साहूकार और किसान के बेटे
साहूकार और किसान के बेटे
रामसिंह किसान अपने माथे पर हाथ रखे दरवाजे की चौखट के सहारे बैठा बिलख-बिलख कर रोए जा रहा था और अपने भाग्य तथा अपनी संतान के कुकर्म को कोस रहा था। रामसिंह के हालात किसी से छिपी हुई नहीं थी। गांव में सूखा पड़ने के कारण उसे खेती में काफी नुकसान झेलना पड़ा था। घर में खाने के लाले पड़ गए थे। इधर-उधर छोटा-मोटा काम करके अपना तथा बीवी बच्चों का पेट पाल रहा था। मगर गांव के अन्य किसानों की दशा भी कुछ ऐसी ही थी इसलिए रामसिंह को उन कामों से भी हाथ धोना पड़ा।
इस तरह बिलखने की आवाज़ सुनकर उसके पड़ोसी ने रामसिंह से पूछा कि आखिर बात क्या है? तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो फिर इस तरह क्यों....?
रामसिंह अपने पड़ोसी से कहता है कि तुमसे मैंने कभी किसी बात का पर्दा नहीं रखा और तुम मेंरे परिवार की प्रत्येक परिस्थिति से भलीभाँति अवगत हो। मेंरी पत्नी दुलारी स्वयं भूखी रह सकती है। मगर बच्चों को भूख से तड़पता हुआ नहीं देख सकती थी। इसलिए उसने मुझसे आग्रह किया,
"कृपया आप किसी से थोड़ा सा पैसा उधार ले लो। जब पैसे आएंगे तब हम उन्हें लौटा देंगे। मैं अपने बच्चों को इस दशा में नहीं देख सकती हूं"
मैं सोच में पड़ गया क्या करूँ ? अगर ऐसा ही रहा तो मैं कर्ज कैसे चुका पाऊंगा। मगर दुलारी के बार-बार कहने पर मैंने अपने कुछ रिश्तेदारों की चौखट खटखटाई। मगर मुझे हर जगह निराशा ही प्राप्त हुई। मैं वापस घर लौट आया। दुलारी बच्चों की चिंता के कारण बहुत उदास हो गई थी। घर में उस दिन अन्न का एक दाना तक नहीं था इसलिए सबको रात भूखे पेट ही गुजारनी पड़ी। अगली सुबह उठने पर दुलारी ने मुझसे कहा, "यदि तुम साहूकार से मदद मांगो तो, हो सकता है वह हमारी कुछ मदद कर दें।"
मैंने दुलारी से कहा, " नहीं-नहीं वह हमारी मदद नहीं करेंगे" उसने फिर आग्रह किया। तुम एक बार जाओ तो सही।
मैं सुबह-सुबह साहूकार की हवेली में पहुंच गया तो देखा कि हवेली में कई नौकर-नौकरानी काम कर रहे हैं मगर साहूकार कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। मैंने हिम्मत करके एक नौकर से पूछा , "आप बता सकते हैं कि साहूकार कहाँ है ?"
नौकर कहता, "हाँ-हाँ क्यों नहीं ! सरकार तो छत पर हैं"
“क्या मैं साहूकार से मिल सकता हूँ ?” मैंने कहा
“हाँ तुम ऊपर चले जाओ” नौकर ने कहा।
मैं ऊपर छत पर पहुँचा और दोनों हाथ जोड़कर फर्श पर वहीं एक किनारे बैठ गया। साहूकार अपने हिसाब किताब में व्यस्त थे। इसलिए मैं चुपचाप वहीं बैठा रहा। काफी देर बाद साहूकार ने मेंरी ओर देखा और कहा,
"बोलो कैसे आना हुआ?"
मैंने अपना सारा दुखड़ा सुना डाला और मदद के लिए आग्रह किया। साहूकार ने कहा, " मैं तुम्हारी मदद तो करूंगा परंतु तुम 12:00 बजे के बाद आना”
मैंने साहूकार का धन्यवाद किया और घर वापस आ गया। मुझे 12:00 बजने का इंतजार था कि कब 12:00 बजे और कब मैं साहूकार के घर जाऊं। दिन पहाड़ सा लग रहा था और समय काटने से भी नहीं कट रहा था। अचानक मेंरे मन में शंका उत्पन्न हो गई और मैं सोचने लगा कि साहूकार कहीं मेंरे साथ मजाक तो नहीं कर रहा था। अगर उसे मदद करनी होती तो वह उसी समय उधारी पर रकम दे देता। यही सोचकर मैंने 12:00 बजने पर साहूकार के घर अपने सबसे छोटे बेटे को भेजा और बेटे से कहा कि तुम साहूकार से कहना मुझे मेंरे बाबा ने भेजा है। आपने उन्हें पैसे की मदद के लिए कहा था।
छोटा बेटा हवेली देखकर चकित रह गया और नौकर से साहूकार के बारे में पूछा, " साहूकर कहाँ है?"
नौकर ने छत की ओर इशारा करते हुए कहा, "ऊपर हैं"
जैसे ही उसने साहूकार को देखा तो उसने जोर-जोर से हँसना शुरु कर दिया। इसकी बचकानी हँसी को देखा और साहूकार ने उसे बच्चा समझ कर माफ कर दिया। मगर जब उसने साहूकार से कहा कि एक तो तुम्हारा पेट इतना मोटा है और तुमने सीढ़ियाँ भी इतनी सँकरी बनवाई है कि तुम ना तो ऊपर चढ़ सकते हो ना ही नीचे उतर सकते हो। अगर तुम मर गए तो तुम्हें नीचे कैसे ले जाएंगे। तुम्हारा अंतिम संस्कार यही छत पर करना पड़ेगा। यह सुनकर साहूकार को गुस्सा आया। उसने पहले तो लड़के को मारा और फिर छत पर बनी कोठरी में बंद कर दिया।
मैं अपने बेटे के लौटने का इंतजार कर रहा था कि वह अभी तक आया क्यों नहीं। मैंने अपने मझले बेटे से बोला कि तुम वहाँ जाओ और देखकर आओ कि वह कहाँ रह गया तथा अब तक लौटा क्यों नहीं? मझला बेटा साहूकार के पास पहुँचा और अपने छोटे भाई के बारे में पूछता है। साहूकार ने उसकी हरकतों के बारे में बताया। यह सुनकर मेंरा बेटा साहूकार से कहता है कि मेंरा भाई नासमझ है। उसे कुछ मालूम नहीं है। यह सुनकर साहूकार खुश हो गया। सोचने लगा की यह समझदार है। बस इतने में वह बोला कि आपके शरीर के अनुसार इस घर की सीढ़ियां थोड़ी कम चौडी़ है। अगर कल को आपका स्वर्गवास हो गया तो आपको नीचे ले जाने के लिए आपके शरीर के अलग-अलग टुकड़े करके ले जाना पड़ेगा। तब कहीं जाकर आपका दाह संस्कार किया जाएगा।
यह सुनकर साहूकार आग बबूला हो उठा। मझले बेटे के साथ भी वही किया जो छोटे के साथ किया था। मैं अपने दोनों बेटों के न लौटने पर और चिंतित हो उठा। तब मैंने अपने बड़े बेटे को वहां भेजा। बड़ा बेटा साहूकार के घर पहुँचा और अपने दोनों भाइयों के बारे में पूछा। साहूकार ने उसे बताया कि तुम्हारे दोनों भाई मेंरे पास आए थे और दोनों ही बहुत बदतमीज और शैतान स्वभाव के हैं। उन दोनों को बिल्कुल तमीज नहीं है कि बड़ों से कैसे बात करनी चाहिए ? साहूकार जी ये तो आपने बहुत अच्छा किया। सचमुच उन्हें बिल्कुल भी तमीज़ नहीं है। बड़े बेटे ने साहूकार से पूछा आखिर क्या किया उन दोनों ने। साहूकार ने सारी बात बताई।
यह सुनकर बड़ा बेटा बोला, " साहूकार जी आप उन्हें माफ कर दो। कोई बात नहीं गलती हो गई उनसे। कृपया आप उन्हें छोड़ दो। दोनों नादान है इसलिए ऐसा कह दिया होगा। बच्चा समझकर माफ कर दो”
इस तरह की बातें सुनकर साहूकार बोला कि तुम अपने दोनों भाइयों से बिल्कुल अलग हो इतना ही नहीं समझदार भी हो। साहूकर फिर से खुश हो गया। साहूकार ने इतना कहा ही था कि इतने में मेंरा बड़ा बेटा बोल उठा, "हां यह बात तो सोलह आने सच है कि मैं अपने दोनों भाइयों से ज्यादा समझदार हूं क्योंकि मैं आप को नीचे ले जाने के लिए ऐसी सलाह नहीं देता बल्कि आपके मरने पर आपको छत से नीचे सीधे फेंक देता और न तो आपको काटना भी नहीं पड़ेगा और न ही छत पर भी अंतिम संस्कार करना पड़ेगा”
इस बात को सुनकर साहूकार और भी क्रोधित हो गया। उसने मेंरे बड़े बेटे को भी कोठरी में बंद कर दिया। मैं अपने बच्चों को देखने साहूकार के घर गया और अपने तीनों बेटों के बारे में पूछा। साहूकर ने मुझे सारी बात विस्तार से बताई और कहा कि मैं तुम्हारी मदद करने वाला था मगर अब नहीं। मैं तुम्हारे लिए डूबते को तिनका का सहारा था मगर तुम्हारी औलाद तो तिनके को हटाकर तुम्हें ही डुबोना चाहती है। जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। तुम ऐसी औलाद के भरण पोषण के लिए कर्जा माँग रहे हो। ऐसी औलाद से बे-औलाद होना ज्यादा अच्छा है। रामसिंह तुम्हारी औलाद तुम्हें कोई सुख नहीं देगी। ये सदैव तुम पर बोझ बने रहेंगे।
बस यही सोच सोच कर रो रहा हूँ। रामसिंह का पड़ोसी उसे सांत्वना देता है और अपने घर लौट जाता है।
