साहित्य के नाम पर…..
साहित्य के नाम पर…..
छत्तर दादा की घुड़साल जो अक्सर गुलफाम नगर के निठल्लो का अड्डा हुआ करती है और वहाँ हमेशा कोई न कोई झंझट होता रहता था, आज वहाँ शांति थी। वजह थी घुड़साल के अधिकतर घोड़े और उनके पालक एक फिल्म की शूटिंग में भाग लेने काली घाटी गए हुए थे। निठल्लो को इस बात की जानकारी थी और जानते थे कि यदि इस समय चाय-नाश्ते के चक्कर में घुड़साल गए तो खुद ही चाय बनानी पड़ेगी और छत्तर दादा बेगार कराएगा वो अलग, इसलिए आज घुड़साल सुनसान थी।
तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के साथ एक दुबली-पतली लड़की ने घुड़साल में कदम रखा।
छत्तर दादा अमूमन घुड़साल के विशाल बरामदे में तख्त पर लेटा आराम करता रहता था लेकिन आज वो बरामदे में पड़ी एक विशाल मेज पर रखे लैपटॉप पर कुछ टाइप करने में व्यस्त था।
'प्रणाम दादा' की आवाज से उसका ध्यान भटका, सामने उसका पड़ोसी विनोद अपनी बेटी के साथ खड़ा था।
"विनोद तुम? आ जाओ, आजा बिटिया तू भी आजा।" छत्तर दादा आश्चर्य के साथ बोला।
"दादा ये मेरी बेटी राशि है, तुम्हारी लिखी किताबों से बहुत प्रभावित है, खुद लेखिका बनना चाहती है और लेखन के बारे में तुमसे कुछ जानना चाहती है।" विनोद अपनी बेटी की तरफ इशारा करके छत्तर दादा की मेज के सामने पड़े मोढ़े पर बैठते हुए बोला।
"लेखन तो अब सदियों पुरानी कहानी बन चुकी है लेकिन जो जानना चाहती है पूछ, बस मेरी लिखी किताबों के बारे में न पूछना, वो मेरे गुजरे कल की बात है अब लेखन से मेरा कोई सरोकार नहीं है।" छत्तर दादा ने जवाब दिया और लड़की से पूछा, "बेटी करती क्या है तू?"
"सर आर्किटेक्ट हूँ, लेकिन लिखना मेरा शौक है इसलिए १० सोशल मिडिया साहित्यिक ग्रुप्स में लिखती भी हूँ।" लड़की ने जवाब दिया।
"अपने काम से इस बकवास के लिए टाइम मिल जाता है तुझे?" छत्तर दादा ने पूछा।
"सर महामारी की वजह से वर्क फ्रॉम होम चल रहा है, इसलिए लिखने के लिए थोड़ा टाइम मिल जाता है।" लड़की ने जवाब दिया।
"खैर छोड़, पूछ क्या पूछना चाहती है?" छत्तर दादा बोला।
"सर मेरी स्टोरीज और पोएम बहुत सारे साहित्यिक ग्रुप्स में छपती है, वहाँ आयोजनों में भाग भी लेती हूँ, लेकिन जीतते कुछ गिने-चुने लोग ही है......."
"तो तुझे क्या दिक्कत है?"
"मैं क्यों नहीं जीत पाती हूँ?"
"एक बात बता तुझे इन फर्जी आयोजनों में जीतना है या लेखन करना है?"
"करना तो लेखन ही है………"
"तू इन ग्रुप्स से किनारा कर और स्तरीय पत्र पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं प्रकाशन के लिए भेज, रचनाओं में दम होगा तो छप जाएगी, नहीं दम हुआ तो नहीं छपेंगी, न छपे तो अपने लेखन पर पुनर्विचार करना और अपने काम पर ध्यान देना।"
"कुछ लेखकों ने मेरी रचनाओं को पब्लिश कराने में सहायता करने के वादा किया है।"
"ऐसे परोपकारी बहुत मिलेंगे तुम्हें, जरा उनसे ही पूछ लेना वो कितना छपे है? कितने किताबें छपी है उनकी? चक्कर में मत पड़ना बेटी, इन सोशल ग्रुप्स में कुछ दुष्ट पतित पुरुषों और उनके जैसी ही महिलाओं का गठजोड़ है, जो नई लेखिकाओं को विभिन्न प्रलोभन देकर अपना उल्लू सीधा करते है, तिलांजलि दो ऐसे लोगों को और अपने लेखन को समाज से जोड़कर उसकी उत्कृष्टता पर ध्यान दो।" छत्तर दादा ने समझाया।
"अरे दादा ये तो पता नहीं क्या वीडियो वगैरह बनाने के चक्कर में पड़ रही है, मैंने कहा एक बार छत्तर दादा की सलाह भी ले लो।" अब तक चुप बैठा विनोद बोला।
"कैसे वीडियो?" छत्तर दादा ने पूछा।
"किसी अन्य लेखक लेखिका की कहानी पढ़ने का वीडियो बनाना है।" राशि ने जवाब दिया।
"बेटी ये उन निठल्लो का काम है जो ऑनलाइन जॉब के नाम पर ये सब ढोंग करते है। बेटी मुंशी प्रेमचंद की कहानी पढ़ने का वीडियो बना, १००० लोग भी आकर सुन ले तो बहुत बड़ी बात होगी, इन ऑनलाइन लेखकों की कहानी तो २५ लोग भी नहीं आकर देखेंगे। ये भी एक प्रकार का जाल है जिसे दुष्ट पतित पुरुष और उनके जैसी ही महिलाएं चलाते है और मानसिक व दैहिक दोनों प्रकार का शोषण करते है।" छत्तर दादा ने जवाब दिया।
"आपके अनुसार तो ऑनलाइन साहित्य के नाम पर सब गलत ही हो रहा है?" राशि थोड़ा चिढ़कर बोली।
"९८ प्रतिशत गलत है, मक्कारी है, लोग अपना उल्लू सीधा कर रहे है। बचा २ प्रतिशत वो कहाँ मिलेगा उसे तलाश करते-करते आदमी किसी न किसी हादसे का शिकार हो जाता है। अपने काम पर ध्यान दो बेटी, इन ऑनलाइन लफंगे पुरुष महिलाओं से दामन बचाओ। मुझे जो कहना था कह दिया बाकी तुम जानो जो अच्छा लगे वो करो।" कहकर छत्तर दादा अपने लैपटॉप की तरफ मुड गया।