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Vibha Rani Shrivastava

Drama

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Vibha Rani Shrivastava

Drama

साहित्य का बढ़ता चीर

साहित्य का बढ़ता चीर

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छोटी कलम को आज से चार साल पहले एक भी संस्था की जानकारी नहीं थी। हालांकि इक्कीस साल से वह उसी शहर की निवासी थी। आज पच्चीस साल हो जाने पर गली-गली में बस रहे छोटे-बड़े-बहुत बड़े कई संस्थानों को जानने की कोशिश में थी कि शोर से उलझन में हो गई। 

"यह क्या साहित्य का विस्तार है। साहित्य तो लहूलुहान होने के स्थिति में है। नाकाम इश्क की शायरी में बातें (शेर का बहर पूछ लो तो बगले झांकने लगते/लगती हैं,) चुटकुले, एक्टिंग, स्टोरी टेलिंग, गीत गाना, रैप। कोई बताए रैप कौन सा साहित्य है? अरे हाँ मज़ेदार बात तो यह है कि ऐसे ओपन माइक्स में शामिल होने के लिए पैसे भी देने पड़ते हैं जो कि पुरी तरह मामले को व्यवसायिक बनाता है।" बड़ी कलम की संस्थाओं के मंच की आवाज गूँज रही थी।

"ठहरें! ठहरें! जरा ठहरें ! क्या यहाँ कॉफी हाउस में , नुक्कड़ के चाय की दुकान पर जैसे साहित्य उफनता था और लहरें समेटने के लिए विद्यालय-महाविद्यालय के छात्र व राहगीर वशीभूत होकर वृत में जुट जाते थे वही हालात हैं क्या आज के। बड़े-बड़े महारथियों के जुटान में आलेख पढ़ने के एक-दो हजार से नाम पंजीयन करवाएं। काव्य-पाठ के लिए चार सौ से आपको शामिल कर आप पर एहसान की जाएगी।" opne mike(mic) पूरे विवाद करने का अवसर पा गया था।

"वरिष्ठ साहित्यकारों की देख-रेख में सीखना, गुण-दोष जान समझ , अनुशासन में बंध आगे बढ़ना और अत्यधिक श्रम से प्रसिद्धि हासिल करना ही श्रेयस्कर होगा।" छोटी कलम दोनों को सांत्वना दे रही थी।

"जाओ ! जाओ ! यहाँ गुटबंदी कुनबे के साम्राज्य में कोई एक गुरू मिल गया तो सबके खुन्नस की शिकार हो जाओगी!" बड़ी कलम की संस्थाओं के मंच और opne mike(mic) की आवाज संग-संग गूँज गई।

"इनलोगों ने चींटी से कुछ नहीं सीखा !" मुस्कुरा रही थी छोटी कलम।



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