रूप की रानी, चोरों के राजा
रूप की रानी, चोरों के राजा
नई सदी में दुनिया के संग हमने भी अद्भुत तरक़्क़ी कर ली थी। कई मामलों में अब हम भी मज़बूत थे। लेकिन जो लगातार कमज़ोर हो रहे थे उन्हें सत्य,अहिंसा, ईमानदारी और मानवता के नाम से सभी जानते तो हैं ही! महात्माओं, संतों की श्रेणी में गाँधीजी को आज भी सभी जानते व मानते तो हैं ही! लेकिन गाँधी जी, गाँधीजी के तीनों बन्दर और गाँधीजी की संदेशवाहक लाठी और चश्मा भी कमज़ोर ही नहीं हो चुके थे; परेशान और लाचार हो चुके थे क्योंकि उनके ज़रिए स्वार्थपरक नकारात्मक अथवा हास्यास्पद गाँधीगीरी जो होने लगी थी! मतलब यह कि असली गाँधीगीरी फ़ीकी पड़ चुकी थी! गाँधीवादी कमज़ोर पड़ चुके थे!
गाँधीवाद और गाँधी दर्शन पर नई संग पुरानी पीढ़ी ने भी भारी ताले जड़ दिये थे! लेकिन... लेकिन कुछ एक गाँधीवादी अब भी ताले तोड़ने की जुगत लगा रहे थे। गाँधीजी के चरखे से तो नेतागण खेल रहे थे; उनके चश्मे को भी तमाशा बनाया जा चुका था। गाँधी दर्शन की संदेशवाहक लाठी के भी विचित्र हाल थे। जिसकी लाठी, उसकी भैंस को चरितार्थ करने में चरखे, चश्मे, बन्दर, लाठी और दर्शन का तमाशा ही बनाया जा रहा था येन-केन-प्रकारेण! लेकिन गाँधीवाद ज़िंदा था, कुछ गाँधीवादी ज़िंदा थे। यह देखकर भारत भी ख़ुश था, लोकतंत्र भी और दुनिया भी।
ऐसे में एक गाँंधी प्रेमी तालों को तोड़ने में भिड़ा हुआ था। उसके पास चश्मा नहीं दो नेक चश्म थे; चरखा नहीं था, एक चक्का था उसके हाथ में! लाठी थी; गाँधी दर्शन से सराबोर लाठी.. ! दूर पड़ी हुई उस लाठी ने तालों की एक मास्टर चाबी का सुंदर रुप धर लिया था! चाबी रूपी गाँधी-लाठी के हत्थे रूपी माथे पर नई पीढ़ी की प्रिय 'इमोजी' रूपी 'लव' का चिह्न 'दिल' बना हुआ था और दूसरे छोर पर कंटीली-दँतीली संरचनाओं के बीच चिकित्सा/चिकित्सक का चिह्न 'प्लस' बना हुआ था, जो बेहतर स्वास्थ्य का संदेशवाहक था।
भारत ने सब कुछ देखा! चौंका! उस चक्केधारी अधनंगे गाँधीवादी के नज़दीक़ जाकर भारत उससे बोला :
"ये चक्का कोई सुदर्शन चक्र थोड़े न है! ये तो समय का चक्र है; इसे तुम अपनी मर्ज़ी मुताबिक़ न घुमा पाओगे गाँधी जी के भक्त!"
"मेरे मुताबिक़ नहीं! यह उस चाबी रूपी गाँधी-लाठी मुताबिक़ चलेगा या इसके मुताबिक़ वह चलेगी नेकियों पर लगे ताले खोलने के लिये मेरे जय भारत!" प्रत्युत्तर में उस कमज़ोर से गाँधी-प्रेमी ने कहा, "स्वास्थ्य है; स्वस्थ्य तन है, तो स्वस्थ्य मन है! .... स्वस्थ्य मन है, तो प्रेम है... 'लव' है! और 'लव' से ही 'सत्य' और 'अहिंसा' है! इसी दर्शन वाली चाबी से हम एक दिन सब ताले खोलकर रहेंगे!"
भारत ने पहले तो अपना चौड़ा सीना ताना, फ़िर... फ़िर कुछ सोचकर उस गाँधी-प्रेमी के कमज़ोर स्वास्थ्य और अधनंगे शरीर को फ़िर से देखकर उससे बोला, "यह चाबी तो सचमुच है रूप की रानी.... लेकिन चोर और चोरों के राजा भी तो हैं! ताले खुले भी तो....?"
