Bhavna Thaker

Drama

3.1  

Bhavna Thaker

Drama

"कच्ची उम्र की भूल"

"कच्ची उम्र की भूल"

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धनराज शेठ ओर सरिता देवी को ऊपरवाले ने इतनी दौलत दी है की आने वाली सात पीढ़ी बैठे-बैठे खाएँ तो भी खतम ना हो ओर दोनों पति-पत्नी दिल के भी उतने ही उदार।

संतान के रुप में आदित ओर स्वाति नाम के दो बच्चे दोनों को बहुत अच्छे संस्कार दे कर सरिता देवी ने पाला पोष कर बड़ा किया इतने अमीर घराने कै बच्चे फिर भी down to earth आदित 12th में था तब उसकी पहचान प्रशांत से हुई एक बार आदित का बटुआ पीछे की जेब से गिर गया वो पीछे आ रहे प्रशांत ने देख लिया ओर दौडते हुए उठाकर आदित को आवाज़ दी ओर बटुआ दे दिया, आदित अभिभूत हो गया कौन इस ज़माने में पैसों से खचाखच भरा बटुआ मिलने पर वापस करता है ओर आदित ने प्रशांत को गले लगा लिया ओर बातें करते-करते दोनों एक दूसरे के बारे में बताने लगे प्रशांत सामान्य घर का लड़का था उसके पिता प्राइवेट स्कूल में शिक्षक थे मम्मी पापा ओर एक छोटी बहन नूपुर बस इतने लोग ही परिवार में थे आदित को प्रशांत का सरल ओर सहज स्वभाव बहुत अच्छा लगा ओर बस दोनों पक्के दोस्त बन गए आदित को प्रशांत की कंपनी बहुत अच्छी लगती थी दोनों के शौक़ काफी मिलते थे आदित की तरह प्रशांत भी 12th में ही पढ़ता था फ़र्क इतना की आदित काॅन्वेंट में पढ़ता था ओर प्रशांत सरकारी स्कूल में आदित का एकाउंट कच्चा था ओर प्रशांत पढ़ने में तेज था तो आदित प्रशांत के धर पढ़ाई करने आ जाया करता था,

प्रशांत की छोटी बहन नूपुर 10 वी क्लास में पढ़ती थी वो कहते है ना गरीब के घर में रतन पैदा हुआ था नूपुर को मानों विधाता ने फुर्सत में बनाया था बला की खूबसूरत थी कचनार सी गोरी चिट्टी, नैन नक्श कातिल लंबे बाल ओर मखमली आवाज़ आदित नूपुर को देखते ही धड़क चुक गया, इतनी सुंदर लड़की उसने आज तक नहीं देखी थी छोटी सी नूपुर चंचल भी बहुत थी हंसती खेलती बस उतर गई सीधी आदित के दिल में।

अब तो आदित कोई न कोई बहाना बना कर प्रशांत के घर आ जाता था घरवालों के साथ भी घुल-मिल गया था चोरी छुपे नूपूर को देख लेता था दिल ही दिल में प्यार जो करने लगा था नूपुर इन सबसे अन्जान अपने आप में मस्त थी क्यूंकि अभी कच्ची उम्र थी ओर प्यार व्यार जैसी भावनाओं से अन्जान थी पढ़ने में रची बसी रहती थी।

देखते ही देखते दो साल बीत गए आदित ओर प्रशांत कालेज के आख़री साल में आ गए ओर नूपुर ने 12th पास कर लिया अब नूपुर ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिए थे विपरीत सेक्स के प्रति अनछुए अहसास अंगड़ाई ले रहे थे ,

आदित नूपुर को अपनी ओर आकर्षित करने के बहाने बना लेता था पर ना जाने क्यूँ नूपुर हंमेशा एक दायरे से लिपटी रही कभी आदित को उस नज़र से देखती ही नहीं थी आदित निराश भी हो जाता था पर ये सोचकर चुप रहता की अभी नूपुर छोटी है ओर हमारे पास बहुत समय है वक्त आने पर इज़हार कर लूँगा। 

नूपुर अब कालेज जाने लगी थी तो बहुत सारे लड़के लड़कीयाँ दोस्त बन गए थे 

अब आदित ओर प्रशांत आगे बढ़ गए थे ग्रेजुएशन के बाद अपनी अपनी ज़िंदगी बनाने में व्यस्त पर दोस्ती अटूट थी आदित आज भी नूपुर को देखने किसी न किसी बहाने प्रशांत के घर आ ही जाता था। 

नूपुर की कालेज में नूपुर के पिछे बहुत लड़के पागल थे नूपुर थी ही सुंदरता की मूरत पर एक बड़े बाप का बिगड़ा हुआ बेटा निखिल नूपुर के पिछे पड़ गया था पैसे वाला था तो बहुत सारी लड़कीयाँ निखिल के पिछे पड़ी रहती थी पर नूपुर की टक्कर की कोई नहीं थी तो निखिल पागल था नूपुर के पीछे, नूपुर की कच्ची उम्र ने निखिल की दिल्लगी को सच्चा प्यार समझ लिया ओर अपना दिल दे बैठी उसे बस निखिल में अपना सबकुछ दिखता था वो दोनों के बीच जो अमीरी गरीबी का फासला था उसे भूल चुकी थी निखिल भी नूपुर को पाने के लिए झूठी बातें बनाता रहा ओर झूठे वादों से फँसाता रहा।

एक दिन निखिल ने नई बाइक ली तो नूपुर को अपनी बाइक पर घूमाने के बहाने अपने फार्म हाउस पर ले गया नूपुर भोलेपन में निखिल के प्यार में पागल होती उसकी हर चाल का मोहरा बनती रही, फार्म हाउस के चौकीदार को छुट्टी देकर नूपुर को बहलाने लगा सच्चे आशिक की तरह बरस पड़ा दो जवान खून एकांत ओर प्यार की प्यास जो नहीं होना चाहिए हो गया नूपुर अपना कुँवारापन खो चुकी थी, निखिल अपने मकसद में कामयाब हो गया ओर दूसरे दिन से नये शिकार की खोज में नूपुर के प्रति बेपरवाह होता गया।

एक महीने में ही नूपूर के उदर में पल रहे निखिल के बीज ने सर उठाया नूपुर की तबियत खराब होती चली गई, उल्टीयाँ, वीकनेस ओर खट्टा खाने की तिव्र इच्छा ने घरवालों के सामने भांड़ा फोड़ दिया 

नूपुर के माँ-बाप गरीब सामान्य परिवार के निखिल के घर जाकर गिड़गिड़ाने लगे निखिल साफ मुकर गया ओर उसके बाप ने पैसों की धौंस जमाते अपमान करके बाहर का रास्ता ही दिखा दिया, नूपुर अब कहीं की नहीं रही। 

एक दिन नूपुर ने अपने कमरे के पंखे से लटककर जान देने की कोशिश की पर प्रशांत ने देख लिया ओर दौडते हुए नूपुर को नीचे उतारा ओर बचा लिया नूपुर चिल्ला-चिल्लाकर रोने लगी ये सब चल ही रहा था की आदित आ गया सबके चेहरे रुंआसे ओर चिंता से ग्रसित थे आदित ने प्रशांत को अलग ले जाकर पूछा यार क्या हुआ घर में इतना टेंशन क्यूँ है ? 

पहले तो प्रशांत बात उड़ाते बोला कुछ भी नहीं यार जाने दे, पर आदित ने अपनी कसम दे कर पूछा तो प्रशांत को सब बताना पड़ा, आदित के पैरों तले से जमीन खिसक गयी जिस मूरत को देवी की तरह पूजता था वो खंडित हो चुकी थी आदित की आँखें नम हो गई पर नूपुर के आँसू आदि को नश्तर की तरह चुभ रहे थे, जिसे दिलों जान से चाहता हूँ उसे इस हालत में अकेला कैसे छोड़ दूँ 

प्रशांत को दिलासा दे कर एक ठोस निर्णय करके ठीक है यार कल मिलते है कह कर निकल गया। 

पूरी रात आदित की जद्दोजहद में बीती क्या करूँ क्या नहीं नूपुर के प्रति प्यार ओर दोस्त की मुश्किल में साथ देने का निर्णय करके आदित धनराज शेठ ओर कावेरी देवी के पास जाकर बोला माँ पापा मुझे आप लोगों से एक बात कहनी है दोनों को पास बिठा कर बोला मैं शादी करना चाहता हूँ, धनराज शेठ ओर कावेरी देवी आश्चर्य में पड़ गए ये क्या अचानक से शादी का भूत क्यूँ सवार हो गया अभी तेरे एन्जॉय करने के दिन है मस्ती करो खेलो करियर बनाओं शादी एक जिम्मेदारी है क्यूँ अभी से तुझे इन चक्कर में पड़ना है,दो तीन साल ज़िंदगी के मजे ले लो फिर कर लेना शादी भी।

पर आदित ने ठान लिया था नूपुर की परेशानी उससे देखी नहीं जाती बस ज़िद्द पकड़ कर बैठ गया तो धनराज शेठ ओर कावेरी देवी को मानना ही पड़ा ओर बोले लगता है हमारे बेटे को शिद्दत वाला प्यार हो गया है अच्छा बताओ लड़की कौन है ?

आदित ने बताया मेरा जो दोस्त है ना प्रशांत उसकी बहन है ओर वो मुझे बहुत पसंद है, ओर कोई बात आदित ने नहीं बताई वो नहीं चाहता था की नूपुर को कोई उतरती निगाहों से देखे पूरे मान सन्मान के साथ अपनाना चाहता था 

वैसे धनराज शेठ ओर कावेरी देवी की इच्छा अपने पारिवारिक मित्र अशोक भाई की बेटी संजना के साथ आदित का रिश्ता करने की थी जो पहचान वाले भी थे ओर बराबरी का खानदान भी पर दोनों पति-पत्नी खुले खयालों वाले थे तो बच्चों की पसंद ओर खुशी वो अपनी खुशी समझकर नूपुर के मम्मी पापा को मिलने बुला लिया। 

आदित ने पहले प्रशांत को अपनी इच्छा बताइ प्रशांत ने नम आँखों से आदित को गले लगा लिया यार तेरा ये अहसान में ज़िंदगी भर नहीं भूलूँगा तुमने हमारी इज्जत रख ली दोनों दोस्त घर आए ओर सारी बात घरवालों को समझाई नूपुर के पापा ने आदित के पैर पकड़ लिए बेटे तुम महान हो मेरी पगली बेटी की इतनी बड़ी भूल को अपना कर तुमने हम पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हो, आदित ने कहा अंकल मैं आज आपको एक बात बता दूं मैं कोई अहसान नहीं कर रहा जिस दिन पहली बार नूपुर को देखा था तब से दिल ही दिल में उसे बहुत चाहता हूँ तो बस आज आपसे अपने प्यार को मांग रहा हूँ बस मेरी झोली में नूपुर डाल दीजिये आपका अहसान रहेगा मुझ पर, नूपुर के पापा आदित के कायल हो गए ओर हाथ जोड़कर बोले बेटा किसी नसीब वाले को तुम्हारे जैसा दामाद मिल सकता है अपनी बेटी तुम्हें सौंप कर अपने आप को खुशकिस्मत समझूँगा

पर क्या तुम्हारे घरवाले नूपुर को सच्चाई जानने के बाद अपनाएँगे ?

आदित ने कहा अंकल मैं नूपुर को जो है जैसी है वैसी ही अपनाना चाहता हूँ मैं नहीं चाहता की आगे जाके नूपुर को इस विषय में किसी से भी कोई बात सुननी पड़े ये बात हम पाँचों के सिवाय ओर कोई ना जानता है न जानेगा आप भी इस बात को यहीं दफ़न कर दीजिए ओर जल्दी से जल्दी शादी की तारीख पक्की करते है, पर हाँ इन सबसे पहले मैं नूपुर से एक बार अकेले में मिलना चाहूँगा।

सबने रज़ामंदी दे दी नूपुर अंदर के कमरे से सारी बातें सुन रही थी जैसे ही आदित कमरे में आया नूपुर ने आदित के पैर पकड़ लिए आदित मुझे नहीं पता था मेरे प्रति आपकी भावनाओं का ओर आप मेरे भाई के दोस्त है ओर इतने अमीर तो मैंने कभी आपको उस नज़र से देखने की हिम्मत तक नहीं की आप सच में बहुत बड़े दिल के मालिक हो , पर एक बात बता दूँ मुझ पर रहम या तरस खा कर शादी मत कीजिए मैं बरदास्त नहीं कर पाऊँगी उससे अच्छा होगा मैं अपने आप को खत्म कर दूँ।

नूपुर के इतना बोलते ही आदित ने नूपुर के मुँह पर हाथ रख दिया ओर बोला पगली तुम नहीं जानती जब तुम्हें पहली बार देखा उसी पल अपना दिल हार गया था उस दिन से एक पल एसा नहीं बीता की तुम्हें याद ना किया हो, तुम्हें प्यार ना किया हो, बस सही वक्त का इंतज़ार कर रहा था काश की तुमने कभी मेरी आँखों में झाँका होता मेरी बेपनाह चाहत को महसूस किया होता, मैं तुम पर कोई अहसान नहीं कर रहा बस अपने प्यार को पाने का जो रास्ता सही समझा वो अपना रहा हूँ, नूपुर की आँखों से आँसूओं का सैलाब बहने लगा तो आदित ने उसे गले लगा कर कहा आज आख़री बार जितना चाहो आँसू बहा लो आज के बाद मुझे ये आँखें हंमेशा हंसती हुई देखनी है नूपुर एक बच्चे सी आदित की बाँहों में सिमटकर समा गई। 

हफ्ते भर में शादी भी हो गई ओर नूपुर आदित की दुल्हन बनकर आ गई 

पर नूपुर की उल्टियाँ ओर नरम-गरम तबियत ने अनुभवी कावेरी देवी के सामने राज़ खोल दिया उसने आदित को उतना ही कहा ओह बच्चू तो इसलिए शादी की जल्दी थी मेरा शरारती बच्चा इतनी बड़ी शरारत कर गया , ठीक है चलो मैं खुश हूँ चाँद सी बहू को पा कर

आदित नम आँखों से इतना ही बोला सौरी मम्मी।

कुछ ही महीनों में नूपुर ने चाँद से बेटे को जन्म दिया सब खुश थे बेटे का नाम आदित ओर नूपुर ने अपने-अपने नाम का पहला अक्षर लेकर अनुज नाम रखा।

देखते ही देखते एक साल बीत गया अनुज का जन्म दिन धूम धाम से मनाया जा रहा था एक पंचतारक होटेल में बहुत सारे मेहमान आए हुए थे, पार्टी पूरी तरह अपने शबाब पर थी केक कटिंग के बाद सब म्यूजिक की तान पर डांस करने में व्यस्त थे की अचानक आदित चक्कर खाकर गिर गया सारे लोगों में खलबली मच गई तुरंत एम्बुलेंस बुलाकर आदित को अस्पताल में भर्ती कराया गया सारे टेस्ट हुए तो डाॅक्टर को कुछ शंका हुई तो सीटीस्केन के साथ ओर टेस्ट करवाए, कुछ दिन बाद सारे टेस्ट की रिपोर्ट आ गई तो घरवालों के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई धनराज शेठ ओर कावेरी देवी की हालत खराब थी ओर नूपुर की तो मानों दुनिया ही उज़ड गई आदित को ब्रेइन ट्यूमर था।

धनराज शेठ ने गिडगिड़ाते हुए डाॅक्टर से बोला चाहे मेरी सारी दौलत ले लीजिए पर मेरे बेटे को बचा लीजिए डाॅक्टर ने हौसला दिया पर होनी को कौन टाल सकता है दिन ब दिन आदित की तबियत खराब होती जा रही थी तो आदित ने बहुत सोचने के बाद एक ठोस निर्णय लिया की किस्मत को यही मंज़ूर है तो यही सही पर मेरे बाद अनुज ओर नूपुर का क्या ? क्यूँ ना निखिल को ढूँढ कर उसकी अमानत उसे सौंप कर चैन की मौत मरूं, भगवान करें बस निखिल की शादी ना हुई हो।

 नूपुर को कुछ भी बिना बताएँ आदित ने निखिल की खोजबीन शुरू की कुछ ही दिनों में पता चल गया पहले तो आदित ने पता लगाया कहीं निखिल की शादी तो नहीं हो गई , पर किस्मत के खेल भी अजीब निराले होते है निखिल ने अब तक शादी नहीं की थी वो नूपुर की ज़िंदगी बर्बाद करने के पश्चात में जल रहा था निखिल को कुछ समय बाद जब उसकी गलती का भान हुआ तब नूपुर को ढूँढ कर उससे शादी करने का मन बनाया था पर पता करने पर मालूम हुआ कि नूपुर की शादी हो चुकी थी।

आदित ने एक शाम निखिल को एक रेस्तराँ में मिलने बुलाया, निखिल को आश्चर्य हुआ ये कौन हो सकता है जान पहचान भी नहीं ओर मिलने बुलाया है खैर जो भी हो देखूँ तो सही कौन है ओर क्या चाहता है ये सोचकर निखिल आदित से मिलने पहुँचा थोड़ी औपचारिक बातों के बाद आदित ने अपना परिचय दिया ओर शुरू से लेकर सारी बातें बताई, निखिल को अपनी किस्मत ओर उपर वालें की लीला पर विश्वास ही नहीं हो रहा था उसकी आँखें नम हो गई ओर आदित के हाथ अपने हाथों में लेकर बोला आप धन्य हो, आप फरिश्ते हो मेरे कभी माफ़ ना करने वाली गलती को बड़े प्यार से अपनाया अपना नाम दिया आप महान हो मैं किन शब्दों में आपका शुक्रिया अदा करूँ, आदित ने निखिल को शांत करवाया ओर अब मुख्य बात अपनी बीमारी की बताई ओर बताया कि अब मेरे पास ज़्यादा वक्त नहीं है मैं तुम्हारी अमानत नूपुर ओर अनुज को तुम्हें सौंप कर चैन की मौत मरना चाहता हूँ अगर तुम नूपुर ओर अनुज को अपनाने के लिए तैयार हो तो.!

आदित की बात सुनकर निखिल को धक्का लगा भगवान आप जैसे इंसान के साथ ये नाइंसाफ़ी कैसे कर सकता है नूपुर ओर अनुज पर सिर्फ़ ओर सिर्फ़ आपका हक है मैं तो वो राक्षस हूँ जिसने पैसे ओर जवानी के मद में बहकर एक मासूम की ज़िंदगी तबाह की थी आप तो देवता है मैं किस हक से नूपुर की ज़िंदगी में कदम रख सकता हूँ आपको कुछ नहीं होगा अब तो सायंस कितना आगे बढ़ चुका है आप जरूर ठीक हो जाएँगे,

आदित ने सर हिला कर लाचारी बयाँ की सारे डाॅक्टर ने हाथ उपर कर दिए है मेरे पास वक्त बहुत कम है बस तुम हाँ बोल दो तो मेरे दिल को सुकून मिल जाएँ। निखिल ने भारी मन से हाँ बोलते कहा ये मेरी खुशकिस्मती होगी अगर मैं नूपुर ओर अनुज को एक अच्छी ज़िंदगी दे पाऊँगा तो मेरा प्रायश्चित भी हो जाएगा पर क्या नूपूर मुझ पापी को अपनाने के लिए राज़ी होगी पहले आप नूपुर की सहमति ले लीजिए अगर वो तैयार है तो मुझे कोई एतराज़ नहीं, निखिल की बात सुनकर आदित के मन से बोझ उतर गया घर आकर सबको पास बिठाकर सारी बातें बताई धनराज शेठ ओर कावेरी देवी को आज असलियत का पता चला की अनुज आदित का नहीं बल्कि निखिल का बेटा था पर उनको दु:ख ओर गुस्से की जगह अपनी औलाद पर फ़ख़्र हुआ की कितना बड़ा दिल था उनके बेटे का.! धनराज शेठ ओर कावेरी देवी को भी यही उचित लगा की नूपुर अभी जवान है आदित के बाद उसका क्या बेहतर होगा निखिल तैयार है दोनों को अपनाने के लिए तो नूपुर ओर अनुज को निखिल को सौंप दे।

पर निखिल का नाम सुनते ही नूपूर आगबबूला हो गई वो होता कौन है अब मुझे अपनाने वाला अरे मैं खुद ठोकर मारती हूँ, एसे इंसान के साथ रहने से तो मैं माँ-पापा की सेवा करके आपकी विधवा के रुप में पूरा जीवन गुज़ारना पसंद करूँगी नहीं चाहिए मुझे किसीका एहसान ओर आप भी कौन होते हो मुझे आपके जीते जी निखिल को सौंपने वाले मैं को चीज़ हूँ की एक ने दान कर दिया ओर दूसरे ने अपना लिया, अगर मेरी किस्मत में यही लिखा है तो यही सही पर इस जन्म में मैं आपके सिवाय किसी ओर की नहीं हो सकती।

पर कुछ भी करके आदित को नूपुर को मनाना था आदित जानता था नूपुर उसे बहुत प्यार करती है पर ज़िंदगी की हकीकत प्यार पर नहीं टिकी वो कल्पना भी नहीं कर सकता नूपुर को अकेले विधवा के रुप में छोड़ कर जाने की पैसों की भी कमी नहीं पर पैसा सबकुछ भी तो नहीं इसलिए आदित ने निखिल को घर बुलाया शायद निखिल के बदले हुए रुप को देखकर, जानकर नूपूर अपना फैसला बदल दें।

निखिल अकेला नहीं आया अपने मम्मी पापा को भी साथ लाया निखिल ने जब अपने मम्मी पापा को सारी बात बताई तो उनको भी लगा की नूपुर के साथ की हुई नाइंसाफ़ी के प्रायश्चित का यही उपाय था।

निखिल के परिवार को देखते ही नूपूर गुस्से में तिलमिला उठी पर घर आए मेहमानों का अपमान करना उचित नहीं ये सोचकर चुप रही बहुत चर्चा हुई सबने मिलकर नूपूर को बहुत समझाया ज़िंदगी की वास्तविकता के बारे में ओर अनुज के भविष्य के बारें में, ओर निखिल ओर उनके फैमिली के बदले रवैये को देखकर नूपूर ने एक निर्णय लिया ओर आदित से बोली सुनिये आपके बाद मुझे अपनी कोई फ़िक्र नहीं मैं सिर्फ़ अनुज के भविष्य के बारे में सोचना चाहती हूँ मैं इस जन्म में सिवाय आपके किसी ओर की नहीं हो सकती, हाँ अनुज को उसके असली बाप को सौंप सकती हूँ आपके बाद माँ-पापा अकेले हो जाएँगे तो मैं उनके साथ रहकर उनकी सेवा करना चाहती हूँ बस अब मुझे ओर कुछ नहीं सुनना। 

कुछ सोचते हुए निखिल ने बोला नूपूर मैं आपको वचन देता हूँ आप बाकायदा मेरी पत्नी कहलाएगी पर आपके ओर मेरे बीच हंमेशा एक अंतर रहेगा, मैं आपको छूऊँगा भी नहीं आप ताउम्र आदित जी की अमानत रहेंगी बस मुझे अपने हिस्से का प्रायश्चित कर लेने दीजिए सबने मिलकर नूपूर को समझाया ओर आदित ने नूपूर का हाथ पकड़कर आँखों से मनाते हाँ करने को बोला ओर अपनी कसम दी तो नूपुर ने सर हिलाकर जैसे ही हाँ कहा, नूपुर के हाँ करते ही आदित के हाथों की गिरह कमज़ोर पड़ती महसूस की नूपुर ने, ओर नूपुर की आँखों से आँसूओं का सैलाब बहने लगा आदित को सबके चेहरे धुँधले होते दिखाई दे रहे थे समझ गया आख़री वक्त आ गया है पास बैठे निखिल के हाथ में नूपुर का हाथ सौंप कर आदित ने आख़री साँस छोड़ी ओर आदित मरते दम तक नूपुर के प्रति अपना कर्तव्य निभाता रहा।।


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