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Tripti Verma

Tragedy

4.8  

Tripti Verma

Tragedy

रश्मि

रश्मि

3 mins
370





       रश्मि रोज़ की तरह नहा धोकर सुबह ६ बजे रसोई में चाय बना रही थी। आँगन में रश्मि के ससुर अखबार पढ़ते हुए चाय के इंतज़ार कर रहे थे और सास अपने स्मार्टफोन पर लूडो खेलने में व्यस्त थी।आँगन के कोने में पड़ी एक पुरानी कुर्सी पर रश्मि का देवर शशांक ऊंघता हुआ सा फ़ोन में फेसबुक और व्हात्सप्प पर रात भर आये नोटीफिकेशन का जवाब देने में व्यस्त था। रश्मि का पति, रवि अंगड़ाई लेते हुए अपने कमरे से निकलकर आँगन की तरफ आ रहा था।दोनों बच्चे अभी भी सोये थे।

           लॉक डाउन के चलते घर के माहौल में आलस पसरा हुआ था।मौसम में गर्मी के साथ-साथ उमस भी बढ़ रही थी। छोटी सी रसोई थी जिसमे सिवाय एक छोटे से एग्जॉस्ट फैन के अतिरिक्त कोई खास खिड़की या रोशन दान का प्रबंध न था। रश्मि उस रसोई में अपना दिन का अधिकांश समय बिताती है।पसीने से तर रश्मि की गले और कलाइयों की त्वचा मंगलसूत्र और चूड़ियों के घर्षण से लाल पड़ चुकी है।

            शशांक फ़ोन की स्क्रीन पर नज़रें गड़ाएं हुए बोला- "भाभी,आजकल लोग नए-नए व्यंजन बनाकर फोटो डाल रहे हैं।मेरी एक कुलीग ने नान और कढ़ाई पनीर की फोटो डाली है । तुम भी कुछ अच्छा सा बनाकर खिलाओ न ! इससे पहले रश्मि कुछ कहती, उसकी सास बोली-"अरे हाँ ! कल मेरी भांजी ने केक की रेसिपी भेजी है मैं वो तुझे मैसेज करती हूँ।बच्चो के लिए केक बना ले,थोड़ा हम भी चख लेंगे। अपने पापा जी के लिए अलग से शुगर फ्री बनाना।" इन सब के बीच रवि ने भी अपनी बात घुसाते

हुए कहा-"यार मेरे लिए तो सादी-सी सब्जी-रोटी ही बनाना ,रायते और सलाद के साथ। घर में बैठे-बैठे पेट निकल रहा है।हल्का ही खाऊंगा।"

              रश्मि इन सब कामो को करने के लिए चुपचाप अपने मन में समय-सारिणी बना रही थी। कामवाली भी नहीं आ रही थी तो झाड़ू-पोंछा और बर्तन भी उसे अपने समय-सारिणी में बैठाने थे।ये सब सोचते हुए वो खोयी-खोयी सी चाय में उबाल लगा रही थी, तभी उसका फ़ोन बज उठा।उसने फ़ोन देखने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया चाय उफनकर चूल्हे से बिखरती हुई रसोई के पूरे फर्श पर फैल गयी।

               आवाज़ सुनकर बाहर से ही सास ने चिल्लाना शुरू कर दिया -"चाय निकाल दी सारी?वैसे ही इतनी आरामनवाबी से काम करती है ।हम यहाँ बैठे इंतज़ार कर रहे है चाय का ,और इसे होश ही नहीं।फ़ोन में लगी है बस।" ससुर की आवाज़ आयी "पता नहीं कैसे काम करती है?दूध ,पत्ती,चीनी,गैस सब बर्बाद। टाइम से चाय भी नहीं मिल सकती।"शशांक अंगड़ाई लेते हुए बोला "जब चाय बन जाए तो बता देना,इतने मैं कॉल कर लू दोस्त को।"

रवि ने रसोई के अंदर झांककर रश्मि को टेढ़ी नज़रो से देखा और फिर अपने फ़ोन में बिज़ी हो गया।


सास-ससुर की आवाजें अभी भी आ रही थीं। 


वहीं रश्मि रसोई में खड़ी फैली हुई चाय को एक टक देख बड़बड़ाती हुई सिर्फ़ इतना बोली "ओफ्फो ! एक काम और बढ़ गया।"



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