Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

0.8  

Ashish Kumar Trivedi

Inspirational

रसगुल्ले

रसगुल्ले

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नदीम रेस्टोरेंट में बैठा चाय समोसे का लुत्फ ले रहा था। उसे भूख लगी थी। घर से नाश्ता किए बिना निकल आया था। इसलिए ऑफिस के नीचे बने इस रेस्टोरेंट में आ गया था।

तभी उसके सामने की टेबल पर एक आदमी आकर बैठा। वेटर उससे ऑर्डर लेकर चला गया। कुछ ही देर में वेटर उसका ऑर्डर रख कर गया। दो बड़े बड़े सफेद रसगुल्ले। उस आदमी ने चम्मच की नज़ाकत छोड़ कर एक रसगुल्ला उठाया और गप से मुंह में डाल लिया। 

उसे रसगुल्ला खाते देख कर नदीम के मुंह में पानी आ गया। रसगुल्ले ‌उसे बहुत पसंद थे। रसगुल्लों जैसी मीठी एक याद ने उसके ज़ेहन में दस्तक दी।

वह आठ साल का था। अपने अब्बा, अम्मी के साथ एक शादी में गया था। शादी उसके अब्बा के एक कुलीग‌ घोष बाबू की बेटी की थी। वहाँ दावत में उसने रसगुल्ले देखे तो खाने के लिए मचल उठा। उसने अपनी अम्मी से कहा कि उसे वो सफ़ेद रसगुल्ले खाने हैं। 

अम्मी ने उसे एक रसगुल्ला खाने को दिया। नदीम को वह बहुत अच्छा लगा। उसने एक और की इच्छा जताई। उसकी अम्मी ने एक और दे दिया। नदीम उसे भी खा गया पर उसकी इच्छा नहीं भरी। कुछ देर बाद उसने अम्मी से और रसगुल्ला खाने की इच्छा जताई। पर इस बार अम्मी ने डांट दिया।

"किसी भी चीज़ की अति ठीक नहीं होती है। हम मेहमान हैं यहाँ। तमीज से पेश आओ।"

नदीम मन मार कर चुप हो गया। अपने मन में मीठे मीठे रसगुल्ले खाने की चाह लिए वह घर लौट आया। 

दो दिन बीत गए। पर उसके दिमाग में बड़े ‌बड़े सफेद रसगुल्ले घूम रहे थे। उसे बाकी कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। वह पूरा दिन मुंह फुलाए रहता था। 

उसकी यह हालत देख कर अब्बा ने उसकी अम्मी से पूँछा।

"ये नदीम उदास क्यों रहता है ?"

अम्मी ने उन्हें सारी बात बता दी। अब्बा नदीम के पास जाकर बोले।

"चलो मेरे साथ।"

नदीम चुपचाप अब्बा के साथ चल दिया। वह उसे एक मिठाई की दुकान पर ले गए। काउंटर पर जाकर उन्होंने कुछ कहा। वह और नदीम बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गए। 

कुछ देर में दुकान में काम करने वाला एक आदमी चार सफेद रसगुल्ले लाकर दे गया। अब्बा ने उसे पकड़ाते हुए कहा।

"लो खा लो।"

नदीम ने दो रसगुल्ले खाए। उसका मन भर गया। अब्बा ने कहा कि बाकी के दो भी खत्म करे। नदीम ने बड़ी मुश्किल से एक और खाया। आखिरी रसगुल्ला खाने की उसमें बिल्कुल भी इच्छा नहीं थी। अब्बा ने कहा।

"जिस चीज़ के लिए पिछले दो दिनों से उदास थे। अब उसे ही खाने की इच्छा नहीं रही। इसलिए किसी भी चीज़ में अपना दिमाग ऐसे नहीं अटकाना चाहिए। दो दिन तुम बेवजह दुखी रहे। अम्मी को भी दुखी किया।"

उस छोटी उम्र में भी नदीम को बात समझ आ गई। रसगुल्ले आज भी उसे बहुत पसंद हैं। साथ ही अब्बा की नसीहत भी याद है।

पहले उसने सोचा कि चाय समोसे के बाद रसगुल्ले का ऑर्डर दे। फिर उसने अपना दिमाग वहाँ से हटा लिया।


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