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हरीश कंडवाल "मनखी "

Romance

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हरीश कंडवाल "मनखी "

Romance

रोनाल्डो पेन

रोनाल्डो पेन

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 स्कूल की छुट्टी होने के बाद अमन कभी कभी अपने दोस्तों के साथ नानी के पास चला जाया करता था। अमन का दोस्त रोहित 12वीं के प्री बोर्ड परीक्षा समाप्त होने के बाद अमन को अपने साथ नानी के यहॉ ले आया। शाम को दोनों दोस्तों ने साथ में खाना खाया, खूब सारी बातें की। किशारोवस्था में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण होना स्वाभाविक है, अमन और रोहित भी इस विपरीत आकर्षण से कैसे भला वंचित रह सकते थे।

 रोहित और अमन अपनी अपनी प्रेमिकाओं की बातें साझा करने में लग गये, इन्हीं बातों में सारी रात निकल गयी। आश्चर्य की बात यह थी कि अमन और रोहित की कभी अपनी प्रेमिका से बात नहीं हुई, बस केवल एक आकर्षण मात्र था। अगले दिन सुबह रोहित किसी कारणवश स्कूल नहीं जा पाया, अमन को अकेला ही जाना पड़ा, रास्ते पर अकेला चलता रहा और 12वीं के बाद क्या करूंगा, कैसे करूंगा इन सपनों में खोया हुआ था। कुछ बनकर दिखाना होगा तभी तो उसको उसका प्यार मिल पायेगा। उसके सामने एक ही चेहरा, मानसी का नजर आता। मानसी कक्षा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठती और अमन पीछे। मानसी ने पलटकर कभी पीछे देख लिया तो अमन समझता कि आज तो मानों उसे खजाना मिल गया हो, मानसी को कुछ भी नहीं पता था कि अमन उसके बारे में क्या सोचता है, वह तो बस कभी ऐेसे ही मुड़कर देख लेती, लेकिन अमन सोचता कि मानसी उसको देखने के लिए पीछे मुड़कर देखती है। अमन को उसकी बालों की दो चोटियॉ सबसे आकर्षित लगती, उसका हॅसना बोलना सब कुछ अच्छा लगता लेकिन केवल अपने दिल के दीवारों के अंदर। बाहर कभी बताने की हिम्मत नहीं कर पाता। मानसी अपनी कक्षा में होनहार छात्राओं में अग्रिम पंक्ति में थी, वहीं अमन औसत छात्र था।

अमन मानसी के साथ जीवन बिताने का सपना देखने लग गया, और इन्हीं ख्यालों में वह पैदल रास्ते पर आगे चलता जा रहा था। ईधर पीछे से स्कूल की कुछ लड़किया आ रही थी, अमन ने पीछे मुड़कर देखा तो उनके साथ मानसी भी आ रही थी। मानसी को देखकर वह प्रफुल्लित हो गया। अब अमन सोचने लगा कि मानसी से आज अपनी मन की बात कह दूॅ, बस वह कुछ पल के लिए अकेले में मिल जाय, लेकिन सहेलियों से घिरी मानसी उसको अकेला कैसे मिल पाती।

 अमन सोचने लगा कि अब क्या करूॅ, हिम्मत जुटाने का प्रयास करता और अपने कदम को धीरे कर लेता कि पीछे से आ रही मानसी से बात कर सकूॅ, अगले ही पल फिर सोचता कि यह सब मेरे बारे में क्या कहेंगें, दिल और दिमाग के द्वन्द में वह खुद को निसहाय महसूस करता। ईधर मानसी की दो सहेलियॉ आगे पीछे हो गयी, और मानसी कुछ देर के लिए अकेला हो गयी, यह मौका अमन के लिए बहुत ही सुनहरा था किंतु हिम्मत जुटाने का साहस नहीं कर पा रहा था, अब तो कोई पत्र भी उसे नहीं दे सकता था, क्योंकि पत्र लिखा नहीं था। क्या करूॅ, किस तरह से बात करूॅ, कैसे पहल करूं इसी उधेड़ बुन में अमन चल रहा था। मानसी भी उसके पीछे पीछे कुछ दूरी पर आ रही थी। अमन सोच रहा था कि यदि आज नहीं बोल पाया तो कभी नहीं बोल पाउॅगा और फिर खुद को कोसता रहूॅगा। अब मानसी उसके नजदीक आती जा रही थी और अमन की दिल की घड़कने बढ़ती जा रही थी।

    विद्यालय पहॅुचने का समय होता जा रहा था जिससे मानसी ने अपनी चहल कदमी तेज कर दी थी। आज अमन के लिए यह दिन करने और मरने के जैसे समान हो रहा था। पीछे से मानसी की सहेलियॉ भी उसके करीब पहॅुचने वाली थी। यदि अमन ने नहीं कहा तो यह सुअवसर वह हमेशा के लिए खो दिया। किसी तरह उसने कॉपी से एक पेज निकाला उसमें कुछ लिखने का प्रयास ही कर रहा था कि उसको हल्की ठोकर लगी और रोनाल्ड का पेन नीचे गिर गिया। ईधर मानसी की सहेलियॉ अमन को देखकर हॅसने लगी, मानसी ने कहा कि यार उसको चोट तो नहीं लगी होगी, इतने में मानसी की सहेली रानी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि तुझे बड़ी दया आ रही है। मानसी ने रोनाल्ड का पेन उठाया और अमन को देते हुए कहा कि तुम्हारा पेन तो नहीं गिरा, यह लो रख लो, इतना सुनते ही कुछ देर के लिए अमन वहीं पर खड़ा हो गया, और मानों कि उसके पैर वहीं जमीन में जकड़ गये हों, और मुॅह से शब्द बाहर नहीं निकल पा रहे थे, कुछ कहने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।

 मानसी के हाथ में पेन देखकर उसे लस्गा कि यदि मैं हॉ कहता हूॅ तो यह पेन तो मिल जायेगा किंतु मानसी के पास मेरा यह पेन नहीं रह पायेगा। पेन तो दूसरा ले लूॅगा लेकिन ऐसा उपहार देना का अवसर और मेरी यादों का यह पेन उसके पास नहीं रह पायेगा। अतः उसने झूठ कहा कि यह पेन मेरा नहीं है। मानसी ने उस पेन को अपने हाथ में उठा लिया और अपने पास रख लिया। अमन ने आगे कुछ नहीं कहा और बस इन्हीं ख्यालों में डूब गया कि कभी तो इस पेन से लिखा प्रेम पत्र उसको मिलेगा, इतने में विद्यालय करीब आ गया और अमन के अन्य दोस्तों ने आवाज लगाई तब जाकर वह अपनी वास्तविक दुनिया में आया। आज भी मानसी की याद में रोनाल्डो पेन को हमेशा जेब में रखता है।


 हरीश कण्डवाल मनखी की कलम से।


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