बिकता हक
बिकता हक
सुशील और राहुल ने उत्तराखण्ड से बोर्ड की परीक्षा पास की और शहर में आ गये, यहॉ दोनों ने मिलकर कमरा लिया और कॉलेज में एडमिशन ले लिया, दोनों ने सोचा कि डिग्री के साथ साथ वह सरकारी नौकरी के लिए तैयारी भी करते रहेगेंं, दोनों पढ़ने में होशियार थे, स्कूल से ही दोनों दोस्त थे। सुशील के पिता की गॉव में परचून की दुकान है, और राहुल के पिता गॉव में ध्याड़ी मजदूरी का काम करते हैं। दोनों की आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी तो उन्होंने यहॉ 06 माह का कम्प्यूटर सेण्टर में जाकर कम्प्यूटर सीख लिया और एक सेण्टर में अल्प वेतन में काम करने लग गये, ऐसे करते हुए तीन साल व्यतीत हो गये और उनका ग्रेजुएशन भी पूर्ण हो गया। शहर में रहना आसान नहीं है, मॉ बाप की इतनी कमाई नही कि वह अपने बच्चों को प्राईवेट संस्थानों में पढ़ा ले, बच्चे मेहनत करें तो सरकारी नौकरी में निकल जाय, इस आश में वह बच्चों की जरूरतों को अपना हक मानकर पूरा करते हैं।
सुशील और राहुल ने ग्रेजुएशन करने के बाद कोचिंग सेण्टरों में जाकर फीस का पता किया तो वहॉ का पैकेज उनकी आर्थिक स्थिति से कहीं ज्यादा अधिक था, जिसको वह चाहकर भी पूरा नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने स्व अध्ययन को अपना सहारा बनाया। जब भी कोई फार्म आता तो दोनांं लगन से पढने लगते, और एक उम्मीद जगती कि इस बार वह एग्जाम निकाल देगें।
दोनों जब भी फुर्सत में होते तो अपनी अपनी दिल की बात कहते दोनों युवा भी हैं, कॉलेज जाते हैं, तो उनके दोस्त भी हैं, जिनमें कुछ हमउम्र लड़कियॉ भी हैं,। शहरों में लड़कियों को दोस्त बनाना थोड़ा उनके लिए महॅगा साबित होता है, क्योंकि यहॉ चाउमीन, मोमोज, और बंन टिक्की की ठेली हर गली सड़क पर खड़ी मिल जाती है, जिसका खर्चा वहन करना उनके जेब पर भारी पड़ता। सुशील अपने साथ की एक लड़की शिवानी को पंसद करता है, वहीं राहुल भी सोनिया को पंसद करता है, लेकिन यह बात वह इन दोनों लड़कियों को नहीं पता है, बस दोनों आपस में ही एक दूसरे से उनकी तारीफ करते रहते।
सुशील कहता यार एक बार यह पटवारी और ग्राम विकास अधिकारी वाला एक्जाम निकाल दे तों फिर प्रपोज कर दूंगा, ईधर शिवानी और सोनिया भी तैयारी करने में लगी हैं, उनको तो बस एक्जाम निकालना है, बाकि कोई ज्यादा जिम्मेदारी नहीं है, ईधर राहुल और सुशील के पास घर की जिम्मेदारी भी हैं, उम्र बढ़ती है तो जिम्मेदारी कंधों को झुकाने लगती है, और चिंता की माथे पर लकीर लंबी होती जाती है, एक युवा की पीड़ा वही जानता है, जिसको जिम्मेदारियों का अहसास हो।
रात को कई बार खिचड़ी बनाकर खाते, और फिर देर रात तक पढ़ते, सुबह नाश्ता मिल गया तो ठीक नही ंतो चाय के साथ बिस्किट खाकर गुजारा कर लेते कि बस कुछ दिन की बात है, एक बार भर्ती परीक्षा में रैंक आ जाय। इसी उधेड़ बुन में उन्होंने गॉव में कई भाईयों और बहिनों की शादी में तक शामिल नहीं हो सके।
जैसे ही आयोग ने परीक्षा की तिथि तय की दोनों की धड़कने और बढ़ गयी, मेहनत दोगुनी करनी शुरू कर दी, ना खाने की परवाह ना जीने की परवाह, बस मोबाईल में गुगल पर सर्च करते या फिर प्रतियोगिता परीक्षाओं की किताबों को टटोलते, दोनों का एक ही लक्ष्य था कि पटवारी या ग्राम पंचायत अधिकारी तो बनना ही है, एक आम मध्यम परिवार के लिए सरकारी नौकरी में निकल जाना दूसरे जन्म के बराबर होता है, उसके सारे प्रयास सारे सपने सभी ख्वाईशें इससे जुड़ी होती हैं, मॉ- बाप भी उनकी जरूरतों को अपनी जरूरतों पर डाका डालकर पूरा करते हैं।
परीक्षा का दिन भी आ जाता है दोनों पूर्ण तैयारी के साथ परीक्षा देने जाते हैं, और इस उम्मीद के साथ की इस बार तो उनका मनोरथ पूर्ण हो ही जायेगा, उनके पास मेहनत करने के अलावा और कोई चारा नहीं होता है, वह सरकार प्रशासन और सभी पर पूर्ण विश्वास करते हैं, और किसी भी प्रकार की लापरवाही या गलत तरीके से परीक्षा पास करने पर बिल्कुल विश्वास नहीं करते हैं, किंतु जैसे ही परीक्षा केन्द्र से बाहर निकलते हैं, और सुनते हैं कि पेपर लीक हो गया है, या नकल हुई है, और परीक्षा रद्द हो सकती है तो उनके अरमानों पर वहीं पानी फिर जाता है। सुशील और राहुल जैसे ही परीक्षा के बाद आकर सोशल मीडिया खोलते हैं तो बस एक ही खबर सामने आती है कि पेपर लीक हो गया है, दोनों के सपने धरे के धरे रह जाते हैं, अब उम्मीद भी टूटने लगती है, और आशाओं के पंख तो मानो कट गये हों, एक दूसरे को झूठा दिलासा देकर वापिस कमरे में आते हैं। परीक्षा देने से पहले दोनों ने सोचा था कि पेपर खत्म होने के बाद वह रेस्टोरेंट में जाकर अपनी पंसद का खाना खाकर आयेगें, लेकिन यह खबर सुनकर वह वहीं बिस्तर पर लुड़क जाते हैं, और उसके साथ ही उनके सपना और विश्वास भी लुड़क जाता है, आज फिर उनके हक पर कोई हाकिम डाका डाल देता है।
मनखी की कलम से
