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हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational

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हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational

मूल जड़

मूल जड़

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प्रत्युष ने ग्रेजुएशन कर लिया और वह अपनी डिग्री और मार्कशीट लेने के लिए अपने कॉलेज पहुॅचा तो कॉलेज में ऑफिस के कार्मिक ने पूछ लिया कि प्रत्युष तुम्हारा गॉव कहॉ है। प्रत्युष ने कहा कि हम पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं, गॉव का नाम मालूम नहीं। यह सुनकर कार्मिक मुस्कराया और उसके साथ मित्रवत व्यवहार करते हुए कहा कि जब तक प्रत्युष अपना गॉव का नाम नहीं बतायेगा तब तक उसे उसकी डिग्री नहीं मिलेगी। प्रत्युष ने कहा कि आज तक सर मैं गॉव गया ही नहीं हूॅ, मेरे नाम के आगे प्रत्युष शर्मा है, जबकि गॉव से हम कण्डवाल जाति के हैं, कार्मिक भी कण्डवाल ही था, यह सुनकर कार्मिक की उत्सुकता बढ़ गयी। अब तो कार्मिक ने कहा कि जब तक तुम अपना मूल गॉव का नाम और पूरा परिचय नहीं दोगे तब तक मैं तुमको अपने पास ही बिठाकर रखूंगा। 

   प्र्रत्युष को कार्मिक ने पूछा कि अच्छा यह बताओ कि कभी तुम आज तक गॉव गये ही नहीं हो, उसने कहा नहीं कभी नहीं गया। प्रत्युष ने कहा कि गॉव में तो बाजार नहीं होता है, और न हीं वहॉ अब कोई रहता, किस के पास जाना है। हमने तो यह भी सुना कि वहॉ जंगली जानवर होते हैं, ऐसे में भला कौन जोखिम उठायेगा। 

   प्रत्युष के इन बातों को कार्मिक ने बड़े प्यार से समझाया, बेटा जो तुमने गॉव के संबंध में जो पूर्वाग्रह बना लिये हैं वह ऐसे ही हैं जैसे गणित कठिन विषय होता है, जबकि गणित को हल कर लिया जाता है तो कई समस्याओं के समाधान मिल जाते हैं। गॉव में जंगली जानवर होते हैं, लेकिन वह हमेशा मानव को नुकसान नहीं पहॅुचाते हैं, और उनसे जोखिम जरूर रहता है, लेकिन संभलकर चलना पड़ता है,जैसे शहर में सड़कों पर दुर्घटनायें होती हैं, किंतु लोग उसके बाद भी संभलकर गाड़ी चलाते हैं, सड़क पर दुर्घटनाओं के डर से गाड़ी चलाना नहीं छोड़ सकते वैसे ही गॉव में भी जंगली जानवरों के भय से गॉव को नहीं छोड़ा या भूला जा सकता, हॉ सावधानी जरूरी है। 

   गॉव में बाजार की जरूरत है, किंतु आवश्यकताओं का सामान अब सब मिल जाता है, अब तो अपने साथ अपनी जरूरत का सामान लेकर गॉव जा सकते हो। प्रत्युष ने अपने घर पर फोन लगाया और अपने घर के किसी सदस्य को फोन लगाकर पूछा कि हमारा गॉव कहॉ है तो उसके घर वालों ने पूछा कि आज तुझे अपने गॉव की याद कैसे आ गयी। प्रत्युष ने कहा कि यहॉ पर कोई सर बैठे हैं, वह कह रहे हैं, कि मैं भी कण्डवाल ही हॅू, और वह मुझे गॉव का नाम पूछ रहे हैं, और कह रहे हैं कि पहले अपने गॉव का नाम बताओ तब मैं तुम्हें डिग्री और मार्कशीट दूॅगा। 

   प्रत्युष को उसके मूल गॉव का पता चल गया।  उसने अपना गॉव का नाम नीलकंठ के पास गॉव बताया। यह सुनकर कार्मिक हैरान हो गया। प्रत्युष ऋषिकेश में रहकर भी अपने मूल गॉव नहीं जा पाया। कार्मिक ने कहा कि प्रत्युष तुमने अपने नाम के आगे कण्डवाल की जगह शर्मा क्यों लिखा। तब उसने बताया कि मेरी बचपन की पढ़ाई हिमाचंल के दूरस्थ क्षेत्र में हुई, टीचर ने मेरे नाम के आगे गलती से शर्मा लिख दिया, और हाईस्कूल में भी वही रहा। बस उसको परिवर्तन ही नहीं किया।  बस उस गलती के कारण मैं कण्डवाल से शर्मा हो गया हॅू। गॉव कभी जाना हुआ नहीं, किसी को जानता भी नहीं हूॅ, दोस्तों के साथ जाने का प्लान बनाता हॅूं तो सभी कहते हैं कि यार गॉव जाकर क्या ही करेंगे, वहॉ पर ना बाजार है, ना कोई लोग रहते और जंगली जानवर बहुत रहते हैं। कॉलेज का कार्मिक समझ गया कि इस पूर्वाग्रह ने इसके दिलों दिमाग में घर कर दिया है। जैसे सुना है, वहीं सच मान लिया है, इसका पूर्वाग्रह दूर करना जरूरी है, एक बार इसको गॉव जाने के लिए अपनी जड़ों को पहचानने के लिए एक छोटा सा प्रयास करता हॅू, क्या पता यह प्रेरित हो जाय। 

    कार्मिक ने कहा कि मैं भी कण्डवाल हॅू और तेरे गॉव के बारे में सबजानता हॅू, और गॉव के कुछ सदस्यों को भी जानता हॅू। मैं भी उधर का ही रहने वाला हॅू। आपका गॉव तो बहुत सुंदर और खूबसूरत जगह में बसा है, गॉव के ऊपर पहाड़ से बहुत ही मनमोहक दृश्य दिखाई देता है, जिसको गैंणा डांडा कहते हैं, और यहॉ से मोहनचट्टी और हेंवल घाटी, त्याड़ो घाटी और ऋषिकेश हरिद्वार का विंहगम दृश्य दिखाई देता है, तुम अपने गॉव जाकर देखना। दो घंटे का रास्ता है। तुम्हारे गॉव के पास जो पहाड़ है, वह उस क्षेत्र की सबसे ऊॅची चोटी है, जहॉ से तुम सब जगह अच्छे से देख सकते हो, तुम्हें वह जगह बहुत पसंद आयेगी। वहॉ से तुम माता भुवनेश्वरी का मंदिर, चौण्डेश्वरी का मंदिर, डांडामण्डल क्षेत्र सब देख सकते हो। गॉव के आस पास गॉव भी देखने को मिलेंगे। कार्मिक ने उसको बताया कि अब तो तुम्हारे गॉव के लिए सड़क बन रही है, कुछ दिन बाद तो वह गॉव में ही पहुॅच जायेगी। 

   प्रत्युष को अपने गॉव के बारे में जानकारी मिलने के बाद उसकी उत्सकुता बढ़ती गयी और वह अब गॉव को जानने के लिए और अधिक उत्साही नजर आने लगा, उसने कहा कि वहॉ जाने के लिए कैब मिल जाती है, कार्मिक ने कहा नहीं तुम अपनी बाईक से जा सकते हो, पक्की सड़क है, थोड़ा पैदल चलकर ट्रेकिंग हो जायेगी। उसने कहा कि मेरी किस्मत तो खराब है, कहीं बाईक पंचर हो गयी तो,....... कार्मिक ने हॅसते हुए कहा कि पहले तो ऐसा होगा नहीं लेकिन एक दो किलोमीटर पर अब पंचर सही करने वालों की दुकान भी तुम्हारे गॉव के आस पास मिल जायेगी। दिउली में अच्छा मार्केट बन गया है, वहॉ पर भी अपनी जरूरत का सामान खरीद सकते हो। वहीं गॉव में दिन में रूककर रात को आप घट्टूगाड़ से लेकर बिजनी तक किसी रिजॉर्ट या कैम्प में रह सकते हो। 

   प्रत्युष बड़े गौर से सुन रहा था, उसने कहा सर इस बार मैं एक दिन गॉव होकर आता ही हॅूं देखता हॅू कि कैसे है अपना गॉव। कार्मिक ने कहा कि बस तुम कहना कि मेरा नाम प्रत्युष कण्डवाल है, और अपने घर में अपने दादाजी का नाम पूछकर चले जाना, वहॉ उनका नाम बता देना, सब तुमको स्वतः ही गला लगा देंगे और बहुत खुश होगेंं। प्रत्युष ने कहा कि हॉ यह तो सुना है कि गॉव के लोग बहुत अच्छे होते हैं, और सबको बड़े प्रेम से अपने घर में बिठाते और खाना भी खिलाते हैं। 

   इन बातों के दौरान कार्मिक ने उसका सारा काम कर दिया और डिग्री एवं मार्कशीट देते हुए कहा कि प्रत्युष तुम इस बार एक दिन के लिए मेरे कहने पर गॉव अवश्य जाना। प्रत्युष ने कहा पक्का सर, आज आपने गॉव के बारे में इतना कुछ बता दिया तो अब जाने का मन भी करने लगा है। दोस्तों को नीलकंठ जाने के लिए तैयार करूॅगा, और फिर उनको कहॅूगा कि बस एक घंटे का रास्ता है, आगे चलते हैं, वहॉ देखकर आते हैं, उनको अपने गॉव का सरपराईज प्लान करता हॅू। 

    प्रत्युष अपनी डिग्री और मार्कशीट लेकर ऑफिस से यह वादा करके निकला कि इस बार मैं अवश्य गॉव जाऊॅगा उसकी फोटो आपको भी शेयर करूॅगा। कार्मिक ने कहा ठीक है, प्रत्युष मुझे तुम्हारी फोटो का इंतजार रहेगा। 


मनखी की कलम से। 



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