हरीश कंडवाल "मनखी "

Inspirational

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हरीश कंडवाल "मनखी "

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भिटोली

भिटोली

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रोहित दो दिन की छुट्टी ले लो, रेनू ने टिपिन पैक करते हुए कहा, रोहित यार अभी तो मार्च फाईनल चल रहा है, और फिर महीने की शुरूवात में बॉस नये टारगेट दे देते न्हैं, बीच में मौका मिलेगा तो देख लूॅगा, वैसे मेरी छुट्टी का क्या करना है, अभी तो सुहानी का स्कूल खुल रहा है, कहीं घूमने जा भी नहीं सकते हैं, पिछले महीने ही तो तुम कोटद्वार अपने मायके गई थी इतना कहते ही रोहित गाड़ी में बैठकर ऑफिस निकल गया, रेनू की पूरी बलत नहीं सुन पाया।

उधर रेनू भी बुदबुदाते हुए वापिस किचन में आ गयी और सिंक में जो बर्तन रखे हुए थे उन्हें धोने लगी। ईधर रेनू की भाभी का फोन आया दोनों में काफी देर तक बात होती रही, रेनू की भाभी ने बताया कि वह इस बार गर्मियों में गोवा घूमने जा रहे हैं, दो हप्ते के लिए। रोहित भी मनाली जाने की बात कह रहा है, लेकिन मैं इस बार कुछ दिन के लिए सुहानी को लेकर गॉव जाना चाहती हॅूं, हर साल गर्मियों में हम शहर से बाहर दूसरे शहरों में ही घूमने गये हैं, बहुत साल हो गये गॉव जाना नहीं हुआ, दो चार दिन इसकी बुआ के घर भी रह लेंगे, और मैं मायके वाले गॉव भी नहीं गयी, दो दिन वहॉ भी रूकुंगी। रेनू की भाभी ने कहा गॉव जाने का मन तो होता है, लेकिन बच्चे बोर हो जाते हैं, ना वहॉ घूमने को मिलता है, बस जाओ तो एक घर से दूसरे घर, और ज्यादा से ज्यादा गॉव की पगडंडियों में, खाने के लिए कुछ मिलता नहीं, दुकान में वही गिनती के दो चार चीजें, हमारे बच्चे तो ज्यादा पैकेट बंद खाते हैं, सच कहूॅ तो मुझे भी इनके साथ यही आदत पड़ गयी है, हालांकि आदत तो सही नहीं हैं, किंतु आदत तो आदत होती हैं ना यह कहकर हॅसने लगी। थोड़ी देर तक दोनों की बातें होती रही।

 ईधर सुहानी भी स्कूल से आ गयी, उसने आते ही मॉ से पूछा कि मॉ फूलदेई क्या होता है,और चैत का महीना किसको बोलते हैं, मॉ ने कहा बेटा पहले हाथ पैर धो लो फिर खाना खाओ और थोड़ा आराम करो फिर फुर्सत से बताउंगी की चैत का महीना क्या होता है। सुहानी ने मॉ के कहने पर हाथ पैर धोये और खाना खाया। सुहानी ने कहा मॉ बताओ ना फूलदेई क्या होता है, और चैत का महीना कब आता है।

रेनू ने कहा बेटा 15 मार्च से 14 अपैल तक चैत का महीना होता है, यह हिंदी महीने के नाम हैं, जैसे जनवरी फरवरी होता है, वैसे हिंदी महीने की शुरूवात चैत महीने से शुरू होता है, चैत महीने की पहली तारीख जिसको फूल संक्राति कहते हैं, क्योंकि फरवरी मार्च का महीना बंसत का महीना होता है, बंसत ऋतु में फूल खिले रहते हैं। चैत के महीने में हमारे गॉव में छोटे छोट बच्चे सुबह सुबह गॉव के पास पास जाकर टोकरी में ताजे ताजे फूल तोड़कर लाते थे और फिर पूरे गॉव के सभी घरों में जाकर दहलीज में फूल डालकर आते थे। सोचो की तुम सुबह उठो और दरवाजे खोलते ही तुम्हें सुंदर सुदर फूल आपके सामने बिखरें हों तो आप बहुत खुश होंगे, और आपका पूरा दिन खुशी से बितेगा। ऐसे ही हम लोग भी गॉव में सबके दहलीज में फूल डालते थे और एक महीने तक हम रोज ऐसा ही करते थे। इससे एक तो हमें रोज सुबह जल्दी उठना होता था, और फिर फूल तोड़ने के लिए जाते थे तो सुबह की मॉर्निग वॉक होती थी, साथ ही सबको टीम वर्क में काम करने का मौका मिलता था। जब 14 अप्रैल को बैसाख महीने की संक्राति यानी पहली तारीख बैसाख को हमें सारे गॉव के लोग पकौड़ी दूध और चावल देते थे, हम तब सभी बच्चे गॉव के जंगल में जाकर उन चावलों से खीर बनाते थे, और वहीं पिकनिक मनाते थे।

चैत के महीने में जहॉ फूल देई का महीना होता था वहीं चैत के महीने में हम सबकी नानी हमारे मॉ के लिए दाल की भरी रोटी या स्वाले लेकर आती थी, और हमारी दादी भी हमारी बुआ के लिए वैसे ही भरी रोटी और स्वाले बनाती थी, तब मेरे दादा जी हमारी बुआ के लिए वह रोटी लेकर जाते थे।

सुहानी मॉ की बातें ध्यान से सुन रही थी, उसने कहा कि मम्मी आपकी नानी आपके लिए रोटी लेकर क्यों आती थी, या आपकी दादी रोटी लेकर आपके बुआ के पास क्यों जाती थी, क्या उनको रोटी खाने के लिए नहीं मिलती थी, बाल मन के सवाल ऐसे होते हैं। तब रेनू ने कहा नहीं बेटा यह मॉ या मायके के द्वारा बेटी का सम्मान होता था, उसको याद रहे कि उसके मायके वाले आज भी अपनी बेटी को याद रखते हैं, और बेटी से उतना ही प्यार करते हैं, जितना कि वह शादी से पहले करते थे। इसको भिटोली कहते थे। चैत के महीने में हर बेटी के मायके से भरी रोटी या स्वाले आते थे।

चैत के महीने में हमारे गॉव में ढोल बजाने वाले दूसरे गॉव के दादा जी आते थे, वह सबके घर में ढोल दमो बजाते हम सब उनका बेसब्री से इंतजार करते थे। हम भी उनके साथ साथ कभी कभी खेल खेल में ढोल बजा देते । उस समय वह लोग टेलर का काम भी करते थे हमारे लिए सुंदर सुंदर फ्रॉक वहीं बनाते थे, बदले में हमारे गॉव के बड़े लोग उनको पैसें नहीं बल्कि अनाज देते थे। सुहानी मॉ की बात ध्यान से सुन रही थी। बाते बातें सुनते सुनते उसे कब नींद आ गयी पता नहीं चला।

ईधर शाम को रोहित आ गया, सभी लोग डांईनिंग टेबिल पर बैठकर खाना खा रहे थे इतने में रेनू की मॉ का वीडियो कॉल आ गया। सुहानी ने नानी से बात करते हुए कहा कि नानी आप स्वाल लेकर मेरे घर कब आ रही हो, नानी जिसको भिटोली कहते हैं, नानी हॅसने लगी, अरे बेटा यह सब अब पुरानी बाते हो गयी है, अच्छा जब मैं आउंगी तो आपके लिए चॉकलैट लेकर आउंगी। सुहानी ने कहा नानी भिटोली तो आप मम्मी के लिए लेकर आओगी मम्मी थोड़ी खाती है चॉकलेट वह तो मैं खाउंगी। यह सुनते ही सब हॅसने लगे। ईधर रेनू अपनी मॉ से बात करने लगी, ईधर सुहानी ने अपने पापा से कहा कि हम बुआ के लिए भिटोली लेकर कब जा रहे हैं। रोहित ने कहा बेटा अब यह सब पुराने जमाने की बात हो गयी है।

ईधर रेनू ने भी रोहित को कहा कि मैं भी सुबह छुट्टी लेने के लिए इसलिए कह रही थी कि वीकेंण्ड पर इसकी बुआ के यहॉ होकर आते हैं, उसको भिटोली देकर आ जाते हैं, रोहित ने कहा अरे यार तुम भी किस जमाने में जी रही हो, अब कौन मनाता है, ऐसे त्यौहारों को उसके ससुराल वाले भी क्या सोचेंगे, अब तो रोज लोग स्वाले और भरी रोटी खाते हैं, पहले अभाव था तो तब लेकर जाते रहे होंगे। अगर ज्यादा ही करना है तो मैं आरती के लिए दो हजार रूपये गूगल पे कर देता हॅू वह बच्चों के लिए पिज्जा मॅगवा लेगी।

रेनू ने कहा नहीं रोहित किसी भी लोक पंरपरा और त्यौहार को गूगल पे करने से इतश्री नहीं की जा सकती है, यह भिटोली बेटी और बहिन के सम्मान का त्यौहार है, यह बेटी, बहिन और भतीजों का एक बेटी के लिए मायके का अमूल्य प्रेम होता है, उसको इस प्यार से बंचित नहीं किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि हमे एक दिन के लिए जरूर जाना चाहिए, मिठाई और रूपये तो कभी भी खिला सकते हैं,लेकिन चैत के महीने का जो सम्मान भिटोली देने में है, उसे नहीं छोड़ना चाहिए। आज सुहानी स्कूल से आते ही बोलने लगी कि फूलदेई क्या होता है, और चैत के महीने में क्या होता है, शायद उनके स्कूल में मनाया गया, उसकी उत्सकुता थी, तो मैने उसको इसके बारे में बताया। आज हमें अपने बच्चों को यह सब बाते अवश्य बतानी चाहिए, यह लोक परपंरा नहीं बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान है।

 रोहित ने सुहानी को गले लगाते हुए कहा कि सुहानी हम अब जल्दी ही बुआ के घर भिटोली लेकर जायेगें और आपकी नानी को भी लेकर आने के लिए कहेंंगे, यह कहकर तीनों खाना खाकर बातें करते हुए बाहर टहलने निकल गये।


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