ऋणी
ऋणी
मेरे दसवीं कक्षा में अच्छे नंबर नहीं आये , भैया ने कहा कि कोई बात नहीं अबकी बार अच्छे से कोशिश करना । लेकिन दोस्तों के साथ सारे दिन खेलने - कूदने और घूमने की आदत पड़ गयी।
ग्यारहवीं कक्षा में भी कम नंबर आये, दादीजी ने कहा - पढ़ाई तो करता नहींहैं इसे काम पर लगा दो, लेकिन भैया और पिताजी को मुझे पढ़ाना था कि तीनों भाइयों में एक तो सरकारी महकमे में काम करें, इसलिए उन्होंने मेरा विद्यालय बदल दिया ।आज मैं बारहवीं कक्षा में दाखिला लेने के लिए दूसरे विद्यालय में पिताजी के साथ जा रहा था । मन में अनेको भाव जन्म ले रहे थे कि वहाँ पर सभी नये सहपाठी मिलेंगे और उनसे कैसे तालमेल बैठेगा । किस प्रकार अध्यापन होगा, अध्यापक कैसे मिलेंगे ।मन में अलग सा डर उत्पन्न हो रहा था एक नये माहौल में आने से, लेकिन साथ ही कुछ नया करने और आगे बढ़ने का जज्बा था ।
मैंने और पिताजी ने विद्यालय में प्रवेश किया। प्रिंसिपल सर के पास गये, पिताजी ने प्रिंसिपल सर से बातें की, और उन्हें मेरा स्थानांतरण-पत्र दिया । प्रिंसिपल सर ने मुझे कक्षा में जाने की अनुमति दी ।
मैंने मेरी कक्षा में प्रवेश किया । भूगोल वाले अध्यापक जी पढ़ा रहे थे, उन्हें देखकर मन को संतोष हुआ, क्योंकि उनसे मैं पहले भी पढ़ा हुआ था । मैंने अंदर आने की अनुमति मांगी । उन्होंने अंदर बुलाया और मेरा परिचय करवाया ।उसके बाद अगले पीरियड में जो हुआ वो बात जिसे मैं कभी नहीं भूलता, मेरे दिमाग़, मन में बस गयी । हिंदी वाले सर आये । साधारण व्यक्तित्व पर असाधारण विचार, मधुर और सरल वाणी, साधारण वेशभूषा और मध्यम कदकाठी उनकी पहचान थी । उनका नाम बिहारीलाल जी, कक्षा में आये सभी विधार्थियों ने अभिवादन किया उन्होंने भी अभिवादन स्वीकार कर सभी को बड़े प्यार से मुस्कुराहट के साथ बैठने के लिए कहा । तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी । 
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वो मेरे पास आये और पूछा :" आपका नाम ?'"
मैंने कहा : सर, गजेंद्र कुमावत
सर :"अच्छा !"आप कहाँ से हैं गजेंद्र जी?"
(मुझे आश्चर्य हुआ जब उन्होंने मुझे जी लगाकर सम्बोधित किया )
मैं :" सर, रेनवाल से ही ।"
सर : "ठीकहैं , बैठ जाइये ।"
फिर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया ।
थोड़ी देर बाद कक्षा में भैयाजी आते हैं और गुरूजी को कुछ कहते हैं ।
उसके बाद उन्होंने एक विधार्थी कहा : "हेमराज जी, आपको बड़े सर बुलाया रहे हैं ।"
हेमराज : "जी, सर और हेमराज चला गया ।"
( मुझे फिर से आश्चर्य हुआ कि गुरूजी उसे भी जी देकर बुलाया )
उनका यह व्यवहार, उनकी आदत मेरे दिल को छू गई ।
क्लास पूरी होने के बाद मैंने सहपाठियों से इसके बारे में चर्चा की तो उन्होंने बताया कि वे सभी को चाहे छोटा हो चाहे बड़ा हो "जी"आदर देते हैं । और सभी से बड़े ही प्यार से बोलते और पढ़ातेहैं। उन्होंने मुझे बहुत कुछ सिखाया, उनके पढ़ाने के लहजे और भावों ने मुझमें पढ़ाई करने की रूचि बढ़ी और मैं इस वर्ष प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुआ ।
उनके व्यवहार से मुझमें बहुत परिवर्तन हुआ । पूरे वर्ष उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला, ये मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उनसे मिला और आज भी वे मुझे बहुत याद आते हैं। मैं उन्हें मेरे व्यवहार परिवर्तन और सफलता के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूँ, मैं हमेशा उनका ऋणी रहूँगा ।
मेरे विद्यालय शिक्षा पुरी होने के दो वर्ष बाद उनका राजकीय सेवा में चयन हो गया ।
अब भी जब उनसे मुलाक़ात होती है अपना अनुभव, आचरण मुझे देते हैं , मुझे बहुत सी बातें बताते हैं , उनसे मिलकर मुझे बहुत ख़ुशी होती है। उनका व्यवहार आज भी बिल्कुल वैसा ही है।
उनसे मिलवाने के लिए मैं भगवान को दिल से धन्यवाद देता हूँ ।