Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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गजेंद्र कुमावत

Inspirational Children

4.0  

गजेंद्र कुमावत

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कागज की नाव

कागज की नाव

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अभिषेक काफ़ी घबरा गया और जोर - जोर से रोते हुए चिल्लाने लगा -बचाओ...बचाओ...मेरा दोस्त... !

आवाज़ सुनते ही आस-पास के लोग दौड़ते हुए आने लगे, देखते ही देखते बहुत भीड़ हो गयी। सभी एक दूसरे को पूछ रहे थे कि क्या हुआ...? कुछ लोग जो पहले आये थे उन्होंने बच्चे को चुप कराते हुए पूछा : क्या हुआ बेटा, क्यूँ रो रहे हो? 

अभिषेक (जोर से रोते हुए ): मेरा दोस्त... सुनील... (और अपने हाथ से इशारा करते हुए बताया।

अरे ! वो लड़का देखों डूब रहा है, कोई उसे बचाओ? 

सभी उसे बचाने के लिए उपाय ढूंढने लगे, (सुनील पानी में लगभग डूब चुका था ) 

वहाँ अलग-अलग तरह के शोर हो रहे थे... 

कोई तो रस्सी लाओ... !

कोई तो बचाओ... !

अरे वो मर जायेगा... !

पुलिस को बुलाओ... !

एम्बुलेंस को बुलाओ... !

इतने में एक बीस-बाइस वर्ष का लड़का कमर पर रस्सी बांधकर उस दलदल में कूद जाता है (सभी उस बहादुर लड़के को आश्चर्य से देखते है और हौसला अफजाई करते है )

काफी मशक्क़त के बाद सुनील को वह नौजवान बाहर निकालकर ले आता है।

(सुनील बेहोश, उसकी आँखें लाल पड़ जाती है )

मोटरसाइकिल पर बैठाकर उसे अस्पताल पहुंचाया गया और उसका इलाज शुरू हुआ।

इधर अभिषेक के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे घबराहट से उसके हाथ-पैर सुन्न से हो गये उसे भी अस्पताल ले जाया गया और उपचार किया गया।

(सुनील, रिया और अभिषेक तीनों एक-साथ छठी कक्षा में पढ़ते है, पाँचवी कक्षा में सबसे ज्यादा नंबर सुनील के आये थे, सुनील पढ़ाई में होशियार तो है लेकिन लापरवाह और थोड़ा डरपोक है, रिया और अभिषेक दोनों पढ़ाई में ठीक-ठाक है, लेकिन अभिषेक जिज्ञासु और जिद्दी है, रिया पढ़ाई में कम, श्रृंगार को ज्यादा समय देती है, इतनी छोटी सी उम्र में, क्योंकि उसकी मम्मी ब्यूटी-पार्लर चलाती है।)

इतने में उन दोनों के माता-पिता आ गये, आते ही मि. सिंह ने चिकित्सक से सुनील की खैर -खबर ली और उसे देखा और उसके माता-पिता को हिम्मत बँधायी।

फिर अपने बेटे से मिलने चले, माता-पिता को देखकर भय से अभिषेक उनकी आँखों में आँखें नहीं मिला पा रहा था, उसके पिताजी उसके पास गये और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरा और पूछा : अब कैसे हो बेटा !

अभिषेक : (हकलाते हुए ) ठी...ठीक हूँ लेकिन... लेकिन पापा वो सुनील... 

मि. सिंह : (अभिषेक के सिर को सहलाते हुए) अरे तुम फ़िक्र मत करो, वो ठीक हो जायेगा।

पर तुम मुझे सच-सच बताओ कि ये सब हुआ कैसे? 

अभिषेक पुरी बात विस्तार से बताना शुरू करता है... पापाजी कल हम विद्यालय में थे न तब बहुत तेज बरसात आयी थी और बरसात का पानी हर जगह भर गया था, तो हम कागज़ की नाव बनायीं और रास्ते में उससे खेलते-खेलते आ रहे थे, रास्ते में वो छोटी सी तलाई पड़ती है उसमें हमने वो नावें छोड़ दी और वो बहते - बहते भीगकर पानी के अंदर चली गयी। और हम सब घर आ गये। पर जब आज हम विद्यालय से वापस आ रहे थे तब जो नाव कल सुनील ने उस तलाई में चलाई थी वो हमें दिख गई।

अभिषेक : अरे देख, वो कल वाली नाव...!

सुनील : नहीं अभि, वो तो डूब गयी होगी।

रिया : अब मिलेगी तुम्हें कल की कागज़ की नाव... क्या मजाक है।

अभिषेक : नहीं, सच में देखो तो सही।

(सुनील और रिया गौर से देखते है )

रिया : अरे वाह, सच में ये अभी तक डूबी ही नहीं

सुनील :फिर तो इसे वापस लाना ही पड़ेगा !

रिया : अरे भाई, तुम पागल तो नहीं हो गये हो, कागज़ की नाव और इतनी दूर है वो कैसे लाओगे...? 

सुनील : मैं लाता हूँ देखना तुम दोनों।

अभिषेक : चलो देखते है।

(रिया सुनील को समझाती है, लेकिन वह कहाँ मानने वाला था, रिया की बात नहीं मानने पर रिया घर चली जाती है )

सुनील आस-पास अपनी नज़रें दौड़ने लगा, उसे एक लम्बी छड़ी मिल गई। उस छड़ी से सुनील पानी को अपनी तरफ करने की कोशिश कर रहा था और धीरे-धीरे नाव उसकी तरफ आने लगी। नाव पानी के साथ हिचकोले खा रही थी मानो समुद्र में कोई बड़ा जहाज चल रहा हो, अचानक से नाव किसी दूसरी छड़ी में उलझ जाती है और पानी में ही रुक गई। अब सुनील छड़ी को तेजी से पानी में हिलाने लगा, लेकिन नाव तो फँस गयी।

सुनील : अरे ये तो उस छड़ी में फँस गयी।

अभिषेक : आ जाएगी, तुम बस इस छड़ी को हिलाते रहो।

सुनील : नहीं, वो फँस गयी।

अभिषेक : ऐसा करो, तुम एक पैर आगे पानी में करके इस छड़ी से नाव निकाल लो, मैं तुम्हारा एक हाथ पकड़ लेता हूँ।

सुनील : ठीक है।

अभिषेक मेरा हाथ पकड़कर धीरे-धीरे पानी में पैर उतार देता है, गहराई ज्यादा होने के कारण मेरा हाथ झटके के साथ छूट गया और मैं भी सड़क पर गिर गया और सुनील पानी में... (अभिषेक रोने लगता है )

मि. सिंह : बेटा, हमेशा ध्यान रखना चाहिए और ऐसी ग़लती कभी नहीं करनी चाहिए विशेष कर बरसात में, क्योंकि इस समय मिट्टी पर फिसलन हो जाती है, इसलिए खुले तालाबों, तलाईयों के पास कभी भी नहीं जाना चाहिए। और विशेष बात हमेशा विद्यालय से सीधे घर आना चाहिए। आगे से इन बातों का विशेष ध्यान रखना।

इतने में नर्स बहनजी आती है कहती है : सुनील को होश आ गया है आप उससे मिल सकते है।

स्वस्थ होने पर दोनों को घर जाने के लिए अस्पताल से छुट्टी मिल जाती है और दोनों को सभी समझाते है और दोनों आगे से ऐसा नहीं करने की कसम खाते है, अब दोनों बड़ो की बातें भी मानने लगे है।

शिक्षा : बड़ों की बातों को नज़रअंदाज़ न करें, सभी का सम्मान करें और खुले तालाबों के पास न जाये।

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