गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

Children Stories Others

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गजेंद्र कुमावत"मारोठिया"

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जिम्मेदार कौन ?

जिम्मेदार कौन ?

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लॉकडाउन होने के कुछ दिन पहले की बात है, मैं दुकान पर ग्राहकों में व्यस्त था तब एक मधुर ध्वनि सुनाई दी। मैंने सोनू से कहा बाहर देख कौन इतना मधुर गीत बजा रहा है। कहते ही सोनू दुकान से बाहर निकला। और बाहर से ही बोला -खेल दिखा रहे है भाईसाहब। (कहते हुए दुकान में वापस आ गया )

मैं ग्राहक को सामान दे रहा था तब मेरा मन उस मधुर ध्वनि की ओर आकर्षित हो रहा था, जैसे ही मैं फ्री हुआ मैं दुकान से बाहर आया और जो दृश्य देखा मन द्रवित हो गया। एक 5-6 वर्ष की लड़की जो सड़क किनारे दो बाँसों पर बँधी एक रस्सी पर हाथ में लकड़ी का डंडा लिए हुए करतब दिखा रही है। कभी साइकिल की रिंग को रस्सी पर चलाती है तो कभी सिर पर मटकी रखकर रस्सी पर चलती है। और भी खतरनाक करतब दिखाती है। और उसके साथ उसका पिता जो की हाथ से बनाया हुआ स्वर यन्त्र बजा रहा था और लोगों का मनोरंजन करने का पूरा प्रयत्न कर रहे थे। लोगों की अच्छी-खासी भीड़ भी जमा हो गयी थी। जिसे देख लड़की का पिता भी निश्चिंत हो गया था कि एक -दो दिन के खाने का इंतजाम तो हो जायेगा।

लेकिन मेरा मन तो कुछ और ही गहरी सोच में डूब रहा था। पांच साल की यह प्यारी सी लड़की जिसकी खेलने-कूदने और मनोरंजन देखने की है, वो ही लोगों का मनोरंजन कर रही है वो भी जान पर खेलकर। दिखने में परी सी गुड़िया, आँखों में तेज पर विवशता, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए और मन में ढेर सारा बोझ लिए जिसे वो जानती भी नहीं है, सबका मनोरंजन कर रही है और और अपने और परिवार की जिम्मेदारी को निभा रही है।

यह सब देख मन में उसके लिए अनेक भाव उठ रहे थे, मन भाव-विभोर हो गया। एक तरफ तो उस लड़की के जीवन मन द्रवित हो रहा था और दूसरी ओर उनके पिता पर क्रोध करने का मन हो रहा था।पढ़ने -लिखने और खेलने की उम्र में उससे ऐसे खतरनाक करतब करवा रहा है, अगर उस लड़की को शिक्षा मिले तथा साथ ही उसकी रुचि के अनुसार उसका सहयोग करें तो वह अपने परिवार और देश का नाम रोशन कर सकती है। जिसकी उम्र अभी पाँच वर्ष है और जो अभी दुनिया के बारे में बिल्कुल भी अनभिज्ञ है, वो इतने खतरनाक करतब दिखा रही है तो जब उसे पता चले तथा उसे और सिखाया जाये तब वो अपने देश का नाम रोशन जरूर कर सकेगी।

मेरे मन में अभी भी उस लड़की के लिए अनेक भाव उठ रहे थे, वो लड़की अपना खेल दिखा चुकी थी अब वह आश्रित नजरों से एक-एक कर सभी के पास जा रही थी, सभी उसे 5, 2, 10 रुपये दे रहे थे वो मेरे पास भी आई मैंने उसके लिए एक जोड़ी कपड़े दिए, मन को थोड़ी शांति मिली, लेकिन फिर भी मन उसके लिए आज भी हिलोरे लेता रहता है। 


मेरे मन में एक सवाल है जो मैं आप सभी से पूछना चाहता हूँ कि ऐसी परिस्थितियों के लिए किसकी जिम्मेदारी बनती है, कौन जिम्मेदार है, और क्यों?

कृपया अपने विचार जरूर बतायें।

     

             


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