रंगनाथ का कायाकल्प
रंगनाथ का कायाकल्प
सरकारी कार से उतरकर रंगनाथ अपने कैम्प ऑफिस की तरफ बढ़ा तो उसके सामने हाथ जोड़े खीसे निकालते प्रिंसिपल साहब खड़े थे।
"प्रणाम मंत्री जी, बहुत दिन से अभिलाषा थी आपके दर्शनों की; आज सौभाग्य से आपके दर्शन हो ही गए।
"कैसे आये प्रिंसिपल साब, शिवपालगंज ने आपको छोड़ दिया या आप शिवपालगंज को छोड़ आये? रंगनाथ ने मुस्कराते हुए पूछा।
"अरे ऐसा नहीं है मंत्री जी; राजधानी में आया था, सोचा आपके दर्शन करता चलूँ....."
"हो गए दर्शन?"
"जी मंत्री जी, लेकिन कुछ काम भी था......."
"अब आ गए न असली मुद्दे पर, अंदर मेरे ऑफिस में बैठकर जलपान लीजिए, मैं एक मीटिंग से होकर आता हूँ।" कहते हुए रंगनाथ अपने ऑफिस के मीटिंग हॉल की तरफ बढ़ गया।
शिवपालगंज से निकलते समय प्रिंसिपल साहब को वैध जी ने समझा दिया था कि उनका भाँजा रंगनाथ महानगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक है और प्रदेश सरकार शिक्षा राजयमंत्री स्वतंत्र प्रभार भी है, अब इस विपदा की घडी में वही काम आ सकता है। प्रिंसिपल साब आश्चर्यचकित थे कि साधारण सी वेशभूषा में शिवपालगंज में इधर-उधर भटकता यह रंगनाथ कब अपने मामा वैध जी से बड़ा नेता बन गया और दो बार विधायक बनकर राज्य सरकार में मंत्री भी बन गया?
दो घंटे बाद जब रंगनाथ अपने ऑफिस में आया तो प्रिंसिपल साब दीवारों पर लगी उसकी खींची तश्वीरो को देख रहे थे।
"प्रिंसिपल साब यदि मैं गलत नहीं हूँ तो आप यहाँ अपने कॉलेज में हुए पचास लाख रूपये के गबन के सिलसिले में आये है?" रंगनाथ बैठते हुए बोला।
"बिलकुल सही समझा आपने, मै इस मामले में बुरी तरह फंस गया हूँ, वैध जी कह रहे थे अब तुम ही मुझे बचा सकते हो........"
"वो किस प्रकार? मैं इस घोटाले की जांच के लिए बनी कमेटी का अध्यक्ष भी हूँ, अगर आप दोषी नहीं है तो कुछ भी नहीं होगा आपको लेकिन अगर आप दोषी साबित हुए तो जेल जाओगे।"
रंगनाथ की बात से चकित प्रिंसिपल साब विचारपूर्ण मुद्रा में बोले, "रंगनाथ राजनीति बड़ी विचित्र चीज है, जहाँ तक तुम आ पहुंचे हो उसमे तुम्हारे मामा वैध जी का भी योगदान है और तुम्हे पता है इस गबन के पीछे कोई और नहीं वैध जी ही है......मैं फंसा तो उन्हें भी ले डूबूँगा।"
"वाह प्रिंसिपल साब जो सभ्यता दिखा रहे थे वो ही भूल गए, चलिए तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूँ, जिस दिन मैंने शिवपालगंज छोड़ा था उस मामा जी और उनके साथ मेरे रिश्ते को भी त्याग दिया था। आज मैं जहाँ हूँ वहाँ सिर्फ अपने दम से हूँ, वैध जी चालाक व्यक्ति है उन्हें तुम्हारे जैसे बेवकुफो से निपटना आता है, तुम उन्हें फँसाने की कोशिश भी मत करना नहीं तो जान से हाथ धो बैठोगे.......पैसे का गबन तुम्हारी कलम से हुआ है, इस जुर्म में तुम लंबी सजा भुगतोगे।" कहकर रंगनाथ उठ खड़ा हुआ।
रंगनाथ के कैम्प ऑफिस से निकलते प्रिंसिपल साब चिंता में थे और सोच रहे थे कि रंगनाथ वक्त के साथ कितना बदल गया था और राजनीति में अपने मामा वैध जी से बहुत आगे निकल गया था।