'रक्तदान' कर संकल्प ने बचाई जान
'रक्तदान' कर संकल्प ने बचाई जान
बात उन दिनों की है जब संकल्प ने बारहवीं बोर्ड की परीक्षा कला विषय से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। अल्हड़,मस्त रहने वाला संकल्प न जाने कब पढ़ता था,किसी को अंदाजा नहीं था। फिर भी वह प्रथम श्रेणी में कैसे उत्तीर्ण हो गया ?सब अचंभित थे। मौज मस्ती में रहने व नए दोस्त बनाने की रुचि के कारण उसकी मम्मी अक्सर शिकायती लहजे में कह देती थी,'आखिर बेटा, तुम अपने जीवन के प्रति गंभीर कब होगे? मम्मी की बातों को अनसुनी कर वह फिर उसी धुन में खो जाता था । अब परीक्षा परिणाम का एक माह बीत चुका था । आगे की कक्षा में प्रवेश लेने के लिए बेहतर कॉलेज के तलाश की अब बारी थी। प्रथम श्रेणी के अंकों के कारण उसका दाखिला शहर के प्रतिष्ठित सहशिक्षा कॉलेज के बी.ए. प्रथम वर्ष के पाठ्यक्रम में हो गया। घर से तीन किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज आना जाना उसकी रोज की आदत में शुमार हो चुका था। कॉलेज का सहशिक्षा का बदला माहौल उसके किशोर मन में उत्साह व प्रेम की उड़ान भर रहा था। अभी कक्षाएं चलते हुए एक माह ही हुआ था कि उसकी दोस्ती साजिया से हो गई। साजिया भी संकल्प को अब समझने लगी थी। एक दिन उसने संकल्प से कह ही दिया कि 'तुम शरारतें छोड़कर पढ़ाई करो और अपने जीवन को इंसानियत के किसी नेक काम में लगाओ। 'वह सोचने लगा कि मेरी मम्मी की तरह साजिया भी लेक्चर सुनाने लगी है। साजिया की सलाह उसे सुईं की तरह चुभ रही थी। इस सलाह ने संकल्प को सोचने पर मजबूर कर दिया। उस रात करवट बदलते-बदलते आँखों से नींद छू मंतर सी हो गई थी।
अगला दिन कॉलेज में एक विचार गोष्ठी के आयोजन का अवसर था। सभागार में तैयारियां करवाता संकल्प बार-बार साजिया की बात को जेहन में रखकर बुदबुदा रहा था। तभी गुरुजी की आवाज सुनाई पड़ी,'बेटा संकल्प,यह बैनर लगवा दो। 'उसने अपने साथियों के साथ बैनर लगवा दिया। अचानक उसका ध्यान बैनर पर लिखे विषय पर जा टिका। विषय था"रक्तदान का महत्व"। तैयारियों के बीस मिनट बाद अतिथि वक्ता मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर साहब का आगमन हुआ। औपचारिकताओं के बाद अतिथि का परिचय हुआ और फिर विचार गोष्ठी का विधिवत शुभारंभ हुआ।
संकल्प का मन बीते कल से ही व्याकुल था फिर भी मन मसोसकर अतिथि वक्ता डॉक्टर साहब की बातें सुन रहा था। डॉक्टर साहब बोले,'आज का विषय रक्तदान एक महादान से जुड़ा है जो मानव सेवा के साथ जीवन दान देने वाला सामाजिक कार्य है। 'अब संकल्प का ध्यान वक्ता की ओर लगने लगा था। वे बोले,'छात्रों,रक्तदान का जीवन में बड़ा महत्व है। मानव शरीर में बनने वाला रक्त कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता है। यहीं वजह है कि दुर्घटना में शिकार या गर्भवती माताओं को प्रसव के दौरान या अन्य कारणों से जूझ रहे लोगों की जान बचाने के लिए महादानी रक्तदाताओं की आवश्यकता होती है। 'यह सुनकर व्याकुल मन से बैठा संकल्प अपने भावों को रोक नहीं पाया। उसने डॉक्टर साहब से पूछ ही लिया,'सर,मैं और मेरे साथी भी रक्तदान कर सकते है। 'डॉक्टर साहब बोले-बेशक बेटा, उसके लिए व्यक्ति का स्वस्थ होना जरूरी है और वह व्यक्ति 18 वर्ष से 60 वर्ष की आयु के मध्य का हो तो उचित रहता है। एक स्वस्थ व्यक्ति वर्ष में कम से कम चार बार रक्तदान कर सकता है। रक्तदान से शरीर में कोई कमजोरी नहीं आती है। 'आधा घंटे तक चलते रहे सवाल-जबाव व वार्ता के दौर के बाद"रक्तदान बचाए चार जान" व "रक्तदान एक महादान"जैसे गगनचुंबी नारों के साथ गोष्ठी का सफल सफल समापन हुआ। वक़्त कैसे पंख लगाकर निकल गया?पता ही नहीं चला। बी.ए. की तीन साल ने संकल्प को काफी बदल दिया था। अथक मेहनत से पढ़ाई व दोस्त साजिया की सलाह से आईं व्यक्तित्व में गंभीरता ने संकल्प की नई पहचान देना शुरू कर दिया था। सामाजिक कार्यों में उसकी रुचि बढ़ती चली जा रही थी। लोगों की मदद के लिए तैयार रहना उसकी जिन्दगी में शामिल ही चुका था।
अचानक एक दिन उसकी दोस्त साजिया का फोन आया। रुन्दे गले से फोन पर आवाज सुनाई दी कि उसकी अम्मी को डेंगू बुखार ने जकड़ लिया है और उनके खून में लगातार प्लेटलेट्स गिरने से तबियत बिगड़ती जा रही है। डॉक्टर ने तत्काल खून चढ़ाने की बात कही है। अस्पताल के ब्लड बैंक में बताया कि कोई व्यक्ति खून देगा तभी आपको खून मैच कराकर मिल सकता है। प्रोसेसिंग फीस भी अलग लगेगी। आज एक सेवा का अवसर सामने देख संकल्प ने साजिया से तपाक से उसकी अम्मी की सेहत के लिए खून देने की इच्छा जाहिर की। उत्साह से लबरेज बाइक पर सवार होकर वह थोड़ी देर में अस्पताल अपने अन्य दोस्तों के साथ पहुंच गया। जीवन को नेक काम में लगाने की साजिया की सलाह उसे आज भी याद थी। सभी कागजी खानापूर्ति के बाद संकल्प ने खुशी के साथ रक्तदान किया। उसके बाद साजिया की अम्मी का ब्लड ग्रुप मैच करवाया गया। दोनों का एबी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप मैच हो गया। अब साजिया की अम्मी को संकल्प का खून चढ़ाया गया। यह रक्तदान वाकई जीवन दान साबित हुआ और साजिया की अम्मी नुसरतजहाँ बेगम की जान खतरे से बाहर हो गई। अम्मी के स्वस्थ होने के बाद साजिया ने संकल्प का शुक्रिया अदा किया। उसकी अम्मी नुसरत जहाँ ने बिस्तर पर लेटे लेते अल्लाह तालाह से उसकी सलामती की दुआ की। पास में खड़े डॉक्टर नर्स व स्टाफ रक्तदान को धर्म से ऊपर उठकर सेवाभाव को देखकर अपने आंसू नहीं रोक पाई। संकल्प भी अपने पहले रक्तदान पर बेहद खुश था। आखिर,उसने अपनी दोस्त साजिया की सलाह व'रक्तदान के महत्व'की गोष्ठी में हुई चर्चा, रक्तदान बचाए जान को चरितार्थ कर दिया था।
रक्तदाता बने संकल्प की शक्ति व मुहिम अब रंग ला चुकी थी। उसके संकल्पित प्रयासों से प्रतिवर्ष रक्तदान शिविरों का आयोजन शुरू करा चुका था,जिसमें उसने सैकड़ो युवाओं को रक्तदान हेतु प्रेरित किया। ये युवा रक्तदान करके मानवता की सेवा के महायज्ञ में अपनी आहुति दे चुके थे। संकल्प रक्तदान के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाओं हेतु कई जिला व प्रदेश स्तरीय सम्मानों से नवाजा जा चुका था। संकल्प के "संकल्प'ने सिद्ध कर दिया कि मानवता की सेवा के लिए 'रक्तदान'से बढ़कर कोई सेवा और धर्म नहीं है। "