रक्षक नहीं भक्षक !!! Prompt 5
रक्षक नहीं भक्षक !!! Prompt 5
"मुसीबत में फँसी हुई बच्चियों और महिलाओं को बाहर निकालने में श्री कल्याणजी ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इतना ही नहीं, ऐसी महिलाओं के आर्थिक,सामाजिक और शैक्षणिक पुनर्वास के लिए भी इनके द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। ऐसी शख्शियत का सम्मान करना हमारे लिए बड़ी फख्र की बात है। ",श्री कल्याणजी को सम्मानित करने के लिए आयोजित किये गए समारोह में मुख्य वक्ता ने अपने उदबोधन के दौरान कहा। कल्याणजी का सारा परिवार उनके सम्मान समारोह में उपस्थित था। उनके दो बेटे, बहुएँ, एक पोता और पत्नी।
"महिलाओं के पुनर्वास की शुरुआत कल्याणजी ने अपने घर से ही की है। उन्होंने अपने दोनों बेटों का विवाह वेश्यावृत्ति से मुक्त करवाई गयी लड़कियों से किया है। कल्याणजी के इस पुनीत कार्य में उनका पूरा परिवार उनका सहयोग कर रहा है। आइये ऐसी महान हस्ती का हम सब तालियों से स्वागत करें। ",मुख्य वक्ता का उदबोधन जारी था।
कल्याणजी गर्व भरी मुस्कान के साथ मंच की तरफ जा रहे थे। उनके परिवार समेत सारा पाण्डाल उनकी प्रशंसा में तालियाँ बजा रहा था। लेकिन कल्याणजी की छोटी बहू मधुरिमा कुछ ज्यादा खुश नहीं थी।
"ऐसे जानवर को लोग सम्मानित कर रहे हैं। यह सम्मान का नहीं प्रताड़ना का अधिकारी है। यह मुसीबत की मारी महिलाओं का भक्षक है। लेकिन इसके काले कारनामों के बारे में लोगों को पता कैसे चले। काश मुझे कोई शक्ति मिल जाए और मैं इसका कच्चा चिठ्ठा खोल पाती। इसने मुझे भी तो कुएँ से निकालकर खाई में धकेल दिया है। ",मधुरिमा मन ही मन में सोच रही थी।
उसकी आँख से एक आँसू छलका ही था और उसने चुपके से अपना आँसू पोंछ लिया। लेकिन उसका दर्द उसकी जेठानी देवयानी से नहीं छिपा था। वह खुद भी तो इस नरक को भोग रही थी। उसने मधुरिमा का हाथ हौले से दबा दिया था ;मानो कह रही हो एक न एक दिन सब ठीक हो जाएगा।
पुरस्कार प्राप्त करते हुए कल्याणजी की गर्वीली मुस्कान मधुरिमा के ह्रदय को छलनी किये जा रही थी। "क्या सही में भगवान् हैं ? अगर है तो इस शैतान का कुछ क्यों नहीं करता ?एक दिन के लिए ही सही मुझे कोई ऐसा चिराग मिल जाता ;जिसका इस्तेमाल कर मैं अदृशय होकर इसके खिलाफ सबूत जुटा पाती। ऐसे इंसान को अपने हाथों से मारकर, अपने हाथ क्यों गंदे किये जाए। इन सफेदपोश अपराधियों के चेहरे से नकाब उतारना जरूरी है।",मधुरिमा मन ही मन सोच रही थी। तब ही उसने देखा कि उसके पति उसे ताली बजाने के लिए कह रहे हैं।
"नहीं बजाई तो घर में उसका क्या हाल होगा ?",यह सोचकर ही मधुरिमा सिहर उठी।
"इन लोगों ने ख़रीद जो लिया है, अब इनका हुकुम तो बजाना ही पड़ेगा। ",यह सोचकर मधुरिमा का मुँह कसैला हो गया था।
कल्याणजी कहने को एक नारी -सदन चलाते थे। इस सदन में घरवालों द्वारा त्याग दी गयी, जेल से रिहा हुई, गुमशुदा, मुसीबत मारी महिलाओं को आश्रय दिया जाता था। लेकिन वाकई में यह एक कोठा था। यहाँ लड़कियों स्वरोज़गार नृत्य, संगीत, ब्यूटी पार्लर आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था। उसके बाद इन लड़कियों को बड़े -बड़े लोगों का बिस्तर गर्म करने भेजा जाता था।
मधुरिमा और देवयानी को भी शादी बाद विशेष मेहमानों की मेहमाननवाजी करने के लिए भेजा जाता था। मधुरिमा ने तो सोचा था कि, "शादी के बाद उसका अपना एक छोटा सा घर होगा। उसे उसके पति का प्यार और सम्मान मिलेगा, लेकिन इस घर में शादी से वह एक और नरक में भेज दी गयी। यहाँ वह अपनी इच्छा से साँस तक नहीं ले सकती। "
समारोह के बाद सब लोग घर लौट आये थे। रात लोग सो गए थे, लेकिन मधुरिमा सो नहीं पा रही थी। उसका मन बहुत ही बैचेन था। "काश वह एक दिन के लिए अदृश्य हो पाती और सारे सबूत जुटा लाती। इस तो उसे मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल की भी इज़ाज़त नहीं है। "
थोड़ी देर बाद ही मधुरिमा ने देखा कि वह घर के लॉन में घूम रही थी और उसे वहाँ एक चिराग दिखा। जैसे ही उसने चिराग पर हाथ लगाया ;एक जिन्न प्रकट हुआ।
मधुरिमा उसे देखकर डरने लगी, तब जिन्न ने कहा, "मैं तुम्हें एक दिन के लिए अदृश्य कर सकता हूँ। मेरे पास इतनी ही शक्ति है। मैं तुम्हें एक सुबह अदृश्य करूंगा कर तुम अगले सुबह तक अदृश्य रह सकती हो। "
तब ही मधुरिमा की आँख खुल गयी। "ओह्ह, यह तो स्वपन था। ",मधुरिमा ने अपने आप से कहा।
मधुरिमा उठकर घर के कामकाज करने लग गयी। लेकिन उसे बार -बार वह सपना याद आ रहा था। अपना काम निपटाकर वह घर के लॉन के उसी हिस्से की तरफ चली, जो उसे ख़्वाब में दिखाई दिया था। लॉन की नरम, मुलायम घास उसे बड़ी सुखद लग रही थी। हरसिंगार के फूल चारों तरफ बिखरे हुए थे ;उनकी मंद -मंद खुश्बू उसके नथुनों में समाती जा रही थी। पूरे घर में एक यही जगह तो उसे कुछ सुकून दे जाती है। वह लॉन में लगी हुई झाड़ियों तक पहुँच गयी थी और उसने अपना हाथ झाड़ियों में चिराग तलाशने के लिए बढ़ा दिया था।
हम इंसान भी कुछ सपनों से कितना प्यार करते हैं न कि उन्हें हर कीमत पर सच होता हुआ देखना चाहते हैं। लेकिन मधुरिमा सुखद आश्चर्य से भर उठी ;जब उसका हाथ एक ठोस वस्तु से टकराया। उसने उस वस्तु को तुरंत बाहर निकाला और सही में यह चिराग था। जैसे ही उसने उसके ढक्कन पर हाथ लगाया ;एक जिन्न बाहर निकला।
"तुम मुझे एक दिन के लिए अदृश्य कर सकते हो ?",मधुरिमा ने बिना डरे एक ही सांस में बोला।
"हाँ, बिलकुल। कल सुबह तुम अदृशय हो जाओगी। अब इस चिराग को फेंक देना। ",जिन्न ऐसा कहकर चला गया था।
रात भर मधुरिमा जिन्न की बातें सोचती रही। वह अपने स्वप्न और हकीकत में अंतर नहीं कर पा रही थी। मधुरिमा को नींद आ गयी थी। अगली सुबह जब सूर्य की किरणों ने मधुरिमा का माथा सहलाया, उसकी नींद खुली। "आज तो किसी ने मुझे उठाया भी नहीं। क्या हुआ ?",मधुरिमा ने सोचा।
तब ही कल्याणजी के चिल्लाने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी, "कितनी बार छोटे को बोला है कि छोटी बहू की लगाम कसकर रखे। लेकिन नहीं, अब देखो। महारानी पता नहीं सुबह से ही कहाँ चली गयी ? लाखों रूपये खर्च करके लाया था उसे। ढूंढो उसे, कहीं बदजात पुलिस के पास न चले जाए। "
"अरे पापा, पुलिस तो अपनी जेब में है। मुझे तो आज आने वाले ग्राहक की चिंता है, मधुरिमा अगर नहीं मिली तो किसे भेजेंगे। उसे तो मधुरिमा ही पसंद है। ",कल्याणजी के बड़े बेटे ने कहा।
"नारी सदन से किसी नयी लड़की को भेज देंगे जो अभी तक भी कुंवारी हो। जाओ मधुरिमा को ढूंढो। ",कल्याणजी ने कहा।
"क्या मैं सही में अदृश्य हो गयी हूँ। ",मधुरिमा ने अपने आप से कहा।
अपनी शंका के निवारण के लिए मधुरिमा कल्याणजी के ठीक सामने आकर खड़ी हो गयी, फिर उसने उन्हें एक तमाचा भी जड़ दिया। "कौन है ?किसने मुझे थप्पड़ मारा ?",कल्याणजी अपना गाल सहलाते हुए जोर से चिल्लाये।
"कोई नहीं है, यहाँ तो। ",उनके बेटों ने कहा।
"अरे वाह, मुझे तो सही में कोई देख नहीं पा रहा। ",मधुरिमा ने चहकते हुए अपने आप से कहा।
"आज ही इन बाप -बेटों का किस्सा ख़त्म कर देती हूँ। कितनी ही मासूम बच्चियों और औरतों की ज़िन्दगी बर्बाद की है, इन हैवानों ने। ",मधुरिमा ने अपने दाँत भींचते हुए कहा।
"नहीं, तब तो इनकी हकीकत किसी को पता ही नहीं चलेगी। इनका मान -सम्मान करने वाले लोगों को इनकी असलियत दिखाना जरूरी है। फूलों की जगह जूतों की मालाएँ इनके गले में होनी चाहिए। ",मधुरिमा के दिमाग ने उसे समझाया।
"अब देर मत कर, जल्दी से सबूत एकत्रित कर। ",दिमाग ने फिर मधुरिमा को चेताया।
मधुरिमा ने उनकी डायरी ढूंढकर अपने कब्जे में की, जिसमें सारे क्लाइंट्स की डिटेल्स थी। उसके बाद वह नारी सदन में पहुँची। वहाँ लड़कियों को क्लाइंट्स के पास भेजने के लिए तैयार किया जा रहा था। उसने वीडियोग्राफी की। कुछ क्लाइंट्स सदन में भी आने वाले थे। मधुरिमा लड़कियों के साथ गयी और उसने क्लाइंट्स के साथ उनके फोटोज लिए और वीडियो बनाये। मधुरिमा ने अपने प्रयासों से पर्याप्त फोटोज, वीडियो, क्लाइंट्स की डिटेल्स आदि प्राप्त कर ली थी।
अगली सुबह जब मधुरिमा दृश्यमान हुई तो उसने क्लाइंट्स को फ़ोन किये और उनके घरवालों को उनकी बारे में सब कुछ बताने की धमकी देकर, उनके बयान रिकार्ड्स किये। कुछ को पुलिस में शिकायत करने के लिए कहा। पूरी तैयारी के साथ मधुरिमा पुलिस के बड़े अधिकारियों के पास पहुँची। मधुरिमा के पास उपलब्ध सबूतों के आधार पर पुलिस ने तीनों को गिरफ्तार कर लिया और उनसे पूछताछ में इस सेक्स रैकेट का पूरा पर्दाफाश हो गया। नारी -सदन को कोठे में तब्दील करने वालों को कड़ी सजा मिली।