रिवाज

रिवाज

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वह व्यवहार जो लोक में सब लोगों से मेल-जोल बनाए रखने के लिए करना पड़ता है। लोकाचार अथवा लोक व्यवहार कहलाता है।

समाज की मर्यादा के विचार से किया जानेवाला शिष्ट व्यवहार लोक व्यवहार के दायरे में आता है।

लोक व्यवहार में नेग अर्थात उपहार का बहुत महत्व है और यह बालक के जन्म लेने से पूर्व ही प्रारंभ हो जाता है।

गर्भधारण के सातवें माह में गोद भराई की रस्म होती है, जिसमें मातृ पक्ष और ससुराल, दोनों पक्ष होने वाली मां को कपड़े, गहनों के अलावा अन्य सामान नेग के रूप में देते हैं।

बालक के जन्म के उपरांत छठी और बरही प्रथा है, जिसमें विशेष रूप से ननंद को नेग दिया जाता है। नामकरण और यज्ञोपवीत ; कलम पूजा और जन्मदिवस ; सगाई और तिलक: विवाह और रिसेप्शन; विदाई और मुंह दिखाई जैसे अनेक अवसरों पर नेग दिया जाता है।

हमारी संस्कृति में नेग का बहुत महत्व है।आजकल की पीढ़ी बुजुर्गों से या नेट के माध्यम से इस तरह की जानकारियों को प्राप्त करती है। 

नेग आपसी भाईचारा और सौहार्द को बढ़ाता है।नेग का आदान-प्रदान त्योहारों पर, विशेष अवसरों पर एक दूसरे के प्रति प्रेम प्रकट करने का माध्यम है।

गरीबों को भी दान देने की परंपरा है, यह लोक व्यवहार नेग के दायरे में आता है। रूठे को मनाने विशेषकर नंदोई और जीजा को मनाने के लिए भी नेग दिया जाता है। चौथी पीढ़ी के जन्म पर, परनानी को सोने की सीढ़ी चढ़ाने का विशेष लोक व्यवहार है।

साली द्वारा जीजा की जूता चुराई तो बहुत पुरानी परम्परा है। बिना साली को नेग दिए जीजा को जूते वापस नहीं मिल सकते। सवाल उठता है नेग स्वेच्छा से दिया जाता है अथवा जबरन वसूला जाता है ? उत्तर में यही मिला कि यह हमारी परम्पराओं में शामिल है, इसे करना ही होता है। 

क्या दहेज और नेग में अंतर है ?क्योंकि अगर वर पक्ष कुछ मांग रखता है तो वह दहेज की श्रैणी में आता है। पंडित की बात- बात पर दक्षिणा को क्या कहेंगे ?

आजकल केटरर्स भी नेग मांगने लगे हैं। फिर ट्रांसजेंडर ,उनका अपना हक़ है,ऐसा कहकर जबरन वसूली करते हैं।

मेरा ऐसा मानना है कि लोक व्यवहार तभी मधुर बना रह सकता है जब उसमें स्वेक्षा और स्नेह से देने वाले सामर्थ्य के अनुसार उपहार का आदन- प्रदान करें। कई रिश्तों में नेग वाजिब न मिलने पर दरारें आ जाती हैं। इस नेह के प्रतीक, नेग को समय के अनुसार‌ ढाल लेना चाहिए। 



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