रिवाज़ नेग (छोटी कहानी)
रिवाज़ नेग (छोटी कहानी)
सुबह-सुबह पड़ोसी शुक्ला जी के यहाँ से रोने की आवाज़ सुनाई दी तो राजन भाई ओर गीता बहन तुरंत शुक्ला जी के घर आ गए राजन भाई सामने वाले विनोद भाई से पूछा तो पता चला दिल का दौरा पड़ने की वजह से शुक्ला जी का देहांत हो गया।
माहौल मौत का था पर ये क्या शुक्ला जी की पत्नी तरुलता बहन शुक्ला जी के भाई के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ा रहे थे, कह रहे थे भैया आप मत जाईए बिरादरी में हमारी क्या इज्जत रह जाएगी, शुक्ला जी के बड़े भाई मौके की नज़ाकत को समझे बिना छोटे भाई की मौत का दर्द भूलकर अपने बड़ा होने की मानों छाप छोड़ना चाहते हो तरुलता बहन ओर रिया को सांत्वना देने की बजाय दहाड़ रहे थे। आजकल के बच्चे समझते क्या है अपने आप को ? मेरा..मेरा कहा टालने की हिम्मत कैसे हुई रिया की अगर चाहते हो की मैं यहाँ से ना जाऊँ ओर रिश्ता खराब ना हो तो फिर रिया को समझाओ मैं ये अनर्थ हरगिज़ नहीं होने दूँगा। हमारे यहाँ रिवाज़ नहीं एसा "एक बेटी कैसे अपने पिता को काँधा दे सकती है, कैसे मुखाग्नि दे सकती है" मेरा भाई नर्क में जाएगा कभी मोक्ष नहीं मिलेगा।
सबने समझाया की अब रिया इनकी इकलौती संतान है तो क्या किया जाए, और बेटा बेटी में फ़र्क करने का ज़माना गया अब तो जिसका बेटा नहीं होता उनकी बेटियाँ हर फ़र्ज़ निभाती है।
पर ना श्रीमान को तो अपनी धौंस जमानी थी तो पैर पटकते निकल लिये, आए हुए सारे लोगों में तमाशा बना दिया, पर रिया अड़ग रही तरुलता बहन के आँसू पोंछकर सांत्वना देते हुए बोली, मम्मा उठो मेरे साथ चलो आज से मैं ही आपका बेटा हूँ, नेग ओर सामाजिक रस्मों रिवाज़ के ढ़कोसले हमारी ज़िंदगी नहीं चलाने वाले अब हमारी लड़ाई हमें अकेले ही लड़नी है, ओर शुक्ला जी के मुँह में तुलसी का पत्ता रखा फिर सबसे पहला काँधा देकर आगे चली।
रिया ने मुखाग्नि भी दी ओर तेरहवीं पर सारी क्रिया जो एक बेटा अपने पिता के लिए निभाता है वो सब निभाई।
काश की बड़ा भाई बड़प्पन दिखाकर अपनी गरिमा बनाएँ रखते ज़िंदगी परिवर्तन का नाम है ये बात अपना लेते तो खुद के साथ सबका मान बना रहता।
