प्रीति शर्मा

Tragedy

4.9  

प्रीति शर्मा

Tragedy

"रिश्तों के बदलते रंग"

"रिश्तों के बदलते रंग"

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बीती रात रामदीन के परिवार को बहुत भारी थी।खेत में गई बिटिया रजनी जब शाम लेट वापस नहीं आई तो भाई मुन्ना को देखने के लिए भेजा और जब लौट के आया तो सारे परिवार में हा-हाकार मच गया।

रजनी की हालत बड़ी नाजुक थी।अस्त-व्यस्त अवस्था में मौत से लड़ रही थी।देखकर लगता था जैसे किसी ने उसके साथ दुष्कर्म की कोशिश की हो और विरोध पर उसको मारने की कोशिश।आनन-फानन में उसे हॉस्पिटल ले जाया गया।पड़ोसियों-रिश्तेदारों के कहने-सुनने पर पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई।पुलिस के तरह-तरह के सवाल और जानकारी पीड़ित घर वालों के लिए और भी पीड़ा का कारण थी।इधर घर वाले हॉस्पिटल के चक्कर काट रहे थे और अपराधी खुलेआम घूम रहे थे।

कुछ मीडिया वालों को इसकी भनक लगी और मामला सुर्खियों में आ गया।रजनी की हालत देख दिल्ली ले जाया गया पर ये देर रजनी की जान पर भारी पड़ गयी और उसने दम तोड़ दिया।घरवालों पर दुख का पहाड़ टूट गया।

सरकार पर दबाव पड़ा और उसने तुरंत दस लाख की घोषणा की,पुलिसवालों पर कार्रवाई का भरोसा दिया।अपराधी पकड़े गये।सभी राजनीतिक पार्टियों को जैसे मनमांगी मुराद मिल गयी।लेकिन सबसे अलग एक और साजिश चल रही जो परिवार और रिश्ते की नींव को खोखला कर रही थी।जो परिवार अभी तक एक बेटी के साथ हुये अन्याय के लिये लड़ रहा था और सदमे में था,उसके आस-पास कुछ राजनीतिक दल, सरकार विरोधी मीडिया मिलकर एक नई कहानी लिख रहे थे जिसमें पीड़ित परिवार को समझाया गया कि बेटी तो गयी अब तुम अपना भविष्य बनाओ,हम तुम्हारे साथ हैं।उन्हें सरकार से डील करने के लिए मसौदा बताया गया और कहा गया हम दबाव बनायेंगे,जबकि वह जानते थे इतनी बड़ी मांग आसानी से नहीं मानी जायेगी और उनकी सियासत फिर चमकेगी। 

शायद सरकार को इन सब की भनक लग गई थी और उन्होंने शव सीधा श्मशान घाट में ले जाकर आनन-फानन में रिश्तेदारों की मदद से जलवा दिया ताकि अगले दिन सुबह कोई नया आन्दोलन शव के साथ कानून-व्यवस्था चुनौती ना बन जाये। और इधर वह पीड़ित परिवार सियासत के छल-छन्द में फंस गया।अब पीड़िता को न्याय का मुद्दा पीछे रह गया।पचास लाख की मांग,घरवालों को नौकरी, अपराधियों को फांसी के अलावा सभी पुलिस वालों की बर्खास्तगी,उनकी नई मांगो में जुड़ गयी।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई।साफ था कि असफल होने पर अपराधियों ने रजनी को मार डाला था लेकिन किसी भी मीडिया या संस्था या परिवार वालों ने इस बात को तबज्जो नहीं दी।जबकि उन्हें इस बात पर गर्व होना चाहिए था कि बेटी ने जान दी पर आबरू नहीं।कमरे में परिवार बाले बैठे थे।आगे की रणनीति बनाई जा रही थी। 

बाहर से चाय लेकर आती रजनी की बहिन सुगना अन्दर से आती आवाज सुन ठिठक गयी। 

"चलो जीजी गयी सो गयी पर मेरी तकदीर बना गयी।छोटा भाई भाई मुन्ना कह रहा था।" 

"हां.. ये भी अच्छा हुआ जीवित नही रही,वर्ना कलंक के साथ बिरादरी में कैसे जीते... ? "ये उसके पिता की आवाज थी।" 

 रिश्तों के बदलते रंग देख सुगना हैरान थी।           



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