रिश्ते अनमोल हैं
रिश्ते अनमोल हैं
" दीदी आप आ रही हैं ना रक्षाबंधन पर? ऐसा कीजियेगा इस बार पहले दिन आ जाना। बहुत दिन हो गए वैसे भी यहाँ आये!" सुधा ने अपनी ननद मीतू से फोन पर कहा।
" अरे नहीं भाभी इस बार नहीं हो पायेगा। रोहित ( मीतू के पति) की बहन आ रही है। मैने राखी भेज दी है डाक से!" मीतू ने वहाँ से जवाब दिया।
" ठीक है दीदी पर आप आते तो सबको अच्छा लगता!" सुधा बोली और फोन रख दिया।
सुधा सोचने लगी पहले मीतू कितनी उतावली रहती थी मायके आने को। पर जबसे राजन (सुधा के पति) की फैक्टरी बंद हुई है उन्होंने आना ही बंद दिया। सुधा और राजन ने कितने फोन किये पर हर बार नया बहाना।मीतू खुद भी संपन्न घर की है जबकि।तो क्या मीतू को ये लगता अब हम पहले जैसा देना नहीं करेंगे। जबकी फैक्टरी बंद हुई तो क्या राजन ने नौकरी तो पकड़ ही ली। माना पहले जैसी कमाई नहीं पर इतने गिरे भी नहीं के बहन को कुछ दे ना सके।
"मीतू आ रही है ना रक्षाबंधन पर !" शाम को पति राजन ने आकर पूछा।
" नहीं उनका कहना है मेरी ननद आ रही!" सुधा ने कहा।
" तो ठीक है इस बार हम चलते हैं मीतू के उसे सरप्राइज देने!" राजन चहक के बोला।
" पर। !"
" पर। वर। कुछ नहीं बहुत दिन हो गए मिले हुए उससे। खुश हो जायेगी वो। कल बाजार चलते है उसके लिए गिफ्ट खरीदने!" राजन ने कहा।
अगले दिन राजन और सुधा मीतू के यहाँ देने को अच्छे से अच्छे गिफ्ट लाये। सुधा ने अपने लिए कानों के कुंडल बनवाये थे पिछली दिवाली जो कभी पहने ही नहीं उसने वो राजन को दे दिये ये कहते हुए की रक्षाबंधन पर पहली बार उसके घर जा रहे तो सोने का गहना हो तो अच्छा है।
" पर ये तो तुम कितने चाव से लाई थी!" राजन बोला।
" कोई बात नहीं राजन मीतू दीदी को ये ना लगे की फैक्टरी बंद होने से उसके भैया भाभी पर कुछ रहा नहीं। मैं बाद मे और बनवा लूंगी!" सुधा बोली।
राखी पर बच्चों को उनकी नानी के छोड़ सुधा और राजन मीतू के घर के लिए निकल गए।
" मीतू इस बार तुम पीहर क्यों नहीं गई!" मीतू के घर के बाहर पहुँचते ही राजन और सुधा के कानों मे मीतू के पति (शैलेश) के शब्द पड़े।
" अरे भैया की फैक्टरी बंद हो गई अब मामूली सी नौकरी है मैं वहाँ जाऊंगी इतना खर्च हो जायेगा मेरा जितना वो दे भी नहीं पाएंगे फिर क्या फायदा!" मीतू की ये बात सुन राजन और सुधा को बहुत बुरा लगा। खैर उन्होंने घंटी बजाई।
" अरे भैया भाभी आप यूँ बिन बताये अचानक !" मीतू उन्हे देख बोली।
" हर बार तू ही राखी बांधती मेरी कलाई पर इस साल तू आ नहीं रही थी तो सोचा मैं आ जाऊँ तुझे सरप्राइज देने!" राजन बोला।
" बैठो आप दोनो मैं पानी लाती!" मीतू बोली ।
मीतू को देख लग रहा था वो खुश नहीं भाई भाभी को देख!
" और शैलेश बाबू कैसे हैं आप?" राजन ने पूछा।
" बस ठीक है आप बताइये!" शैलेश बोला।
" लीजिये भैया भाभी पानी लीजिये। !" मीतू बोली।
तब तक उसकी नौकरानी चाय नाश्ता लगा गई। नाश्ते के नाम पर बिस्कुट नमकीन देख सुधा को मीतू के आने पर उसके घर की सजी मेज याद आ गई।
" इन चक्करों मे मत पड़ मीतू तू राखी बांध दे बस फिर निकलेंगे हम!" राजन बोला।
" अरे भैया खाना तो खाकर जाना इतनी दूर से आये हो!" शैलेश बोला।
" नहीं हमे निकलना है आप लोग से मिल लिए इतना काफी !" सुधा बोली।
राखी बांधने के बाद जब राजन ने मीतू को उपहार दिये तो उसका सिर झुक गया। झुमके, साड़ी फल मिठाई। और बच्चों के कपड़े।
" और शैलेश जी ये आपके लिए!" राजन शैलेश को गिफ्ट देता बोला।
" इतना सब कुछ भैया!" मीतू बस इतना ही बोल पाई।
" हर साल भी तो देता हूँ। मेरी फैक्टरी बंद हुई है पर हाथ तो सलामत हैं। इतना तो कमा ही लेता की अपनी छोटी बहन को राखी पर गिफ्ट तो दे ही सकूँ!" राजन बोला।
मीतू शर्मिंदगी मे कुछ बोल भी नहीं सकी वो समझ गई भैया भाभी उसकी बात सुन चुके हैं।। राजन और सुधा वहाँ से निकल लिए।
दोस्तों कुछ लोग होते हैं जो रिश्तों को पैसों के तराजू मे तोलते जो बहुत गलत है। रिश्ते अनमोल है उन्हें दिल से निभाइये पैसों से नहीं।
