रिश्ता
रिश्ता
“यार बिटिया के लिए कोई सूटेबल लड़का बताओ, बिटिया ने बी.इ. किया है।” पार्क में घूमते हुए एक वृद्ध ने दूसरे से पूछा।
“अपनी बेटी के लिए कैसा लड़का ढूँढ़ रहे हो?” दूसरे ने प्रत्युत्तर दिया।
“लड़का एम.इ. हो, जॉब में हो, अच्छी सैलेरी हो। अपना मकान हो, उसमें एसी लगा हो, कार हो, घर के बाहर छोटा बगीचा हो। बस और कुछ नहीं।”
“यानी सुख सुविधाओं से लैस हो ताकि बिटिया को कोई तकलीफ न हो। और परिवार कैसा हो?’
“परिवार का क्या है जी, नहीं भी हो तो चलेगा। आपसी झगड़े नहीं होंगे।”
“मेरे दोस्त का लड़का है उसके भाई-बहन नहीं है माँ-बाप दुर्घटना में चल बसे। बँगला, कार, नौकर-चाकर सब है। एंजीनियर है, डेढ़ लाख कमाता है।”
“तब तो रिश्ता करवा दो भाई। इससे बढ़िया लड़का हमें कहाँ मिलेगा?”
“लेकिन एक समस्या है।”
“कैसी समस्या?”
“लड़के की भी शर्त है कि लड़की के कोई माँ-बाप, भाई-बहन रिश्तेदार नहीं होने चाहिए। वह फालतू की जिम्मेदारी वहन नहीं करना चाहता।”
“परिवार नहीं होगा तो कल उसके सुख-दुख में कौन शामिल होगा?”
“तो यह बात तो आपको भी सोचनी चाहिए थी; खुद का परिवार, परिवार है और दूसरे का कुछ नहीं।”