चुनावी टिकट
चुनावी टिकट
-आप टिकट मांग रहे हैं?
–हाँ बिल्कुल मांग रहा हूँ।
–किस बिना पर।
-मैं वर्षों से पार्टी का एकनिष्ठ कार्यकर्ता हूँ। ब्लॉक अध्यक्ष रहा हूँ। हर इलेक्शन में पार्टी प्रत्याशी का प्रचार किया है। दो बार सरपंच रहा हूँ।
–तो आप क्या सोचते हैं आपको टिकट मिल जायेगा?
–क्यों नहीं मिलेगा?
–खैर छोड़िये । यह तो आप जानते ही है कि पैसे के बिना चुनाव नहीं लड़ा जा सकता।
–बिलकुल।
–जानते हैं आजकल लोग एक एम.एल.ए. के चुनाव में एक करोड़ तक खर्च कर देते हैं। जुआ है, भारी रिस्क है, करोड़ खर्च करने के बाद भी आप हार सकते हैं। इतना सदमा झेल पाओगे?
प्रत्याशी का उत्साह ठंडा पड़ने लगा। उन्होंने प्रत्याशी को ठंडा पानी पिलाया और बोले –पार्टी के पास पैसा नहीं है, पार्टी तो उन लोगों को टिकट देती है जो पार्टी फंड में भी कुछ दे सके और अपने चुनाव प्रचार का खर्चा भी उठा सके।
–तो कार्यकर्ता क्या घंटा बजाने के लिए है। वे जरा तैश में आ गए।
–आपका गुस्सा वाजिब है। अब हमें ही देख लो सालों से पार्टी दफ्तर में घिस रहे हैं, कहने को पार्टी उपाध्यक्ष है मगर औकात एक क्लर्क की।
–आपका नाम हम पैनल में अग्रेषित कर देंगे, इसका आश्वासन हम आपको दे सकते हैं।
प्रत्याशी कुछ संतुष्ट से नजर आए।
-अगर आप कमेटी को संतुष्ट कर सकें कि आप जीतने वाले प्रत्याशी है और आपका वोट बैंक मजबूत है तो आप टिकट हासिल कर सकते है।
-वो तो कर लेंगे मगर बात तो चुनाव फाइनेंस पर अटक जायेगी।
-इसीलिए पार्टी राजे महाराजे, उद्योगपतियों और अति धनी लोगों से संपर्क साधती है और उनके आवेदन पर सहानुभूति पूर्वक विचार कर, टिकट आवंटित कर देती है।