रहस्य की रात भाग 1
रहस्य की रात भाग 1
चार मित्र जंगल में राह भटक गए। रात का अँधेरा गहरा गया तो मजबूरन उन्हें एक खंडहरनुमा मंदिर में शरण लेनी पड़ी। मंदिर में देवी की अत्यंत प्राचीन मूर्ति समय के प्रभाव से काली पड़ चुकी थी। यहां-वहां लटक रहे चमगादड़ वातावरण को भयानक बना रहे थे। झींगुर अनवरत बोल कर सन्नाटे की छाती को चीर रहे थे पर उससे कोई दिलासा मिलने की बजाय भय ही बढ़ रहा था ।
चारो एक दूसरे का हाथ थामे गोल घेरा बनाकर सट कर बैठ गए। मंदिर की छत टूटी हुई थी और उसमें से चंद्रमा का प्रकाश छन कर आ रहा था। समय काटने और भय दूर भगाने के लिए वे कहानियां कहने सुनने लगे। पहले मित्र ने अपने दादाजी से सुनी हुई वीर राणा सांगा की कहानी सुनाई। जिसने उनमें कुछ साहस का संचार किया । दूसरे ने भूत-प्रेत की कहानी आरम्भ की तो सबने उसे डांट कर चुप करा दिया। तीसरे और चौथे मित्र ने क्रमशः मजाहिया और वीरता पूर्ण कहानियाँ सुनाईं। अभी वे आपस में चुहलबाजी ही कर रहे थे कि अचानक कलेजे को चीरने वाली हंसी वातावरण में गूँज उठी। किसी नारी स्वर का यह अट्टहास उनकी रूह को भी कंपा गया। उस ठंडी रात में भी उन चारों के बदन पसीने से भीग गए। वे भयभीत होकर, हंसने वाली उस औरत को देखने के लिए इधर-उधर गर्दन घुमाने लगे पर उन्हें कोई नजर नहीं आया। वे एक दूसरे को कातर नजरों से देख ही रहे थे कि एक बार फिर वही हंसी गूंजी और इस बार उसकी तीव्रता और अधिक थी। उन चारों ने मंदिर से बाहर निकल भागने की चेष्टा की परन्तु आश्चर्य! उनके हाथ पैरों ने उनका साथ ही नहीं दिया। ऐसा लगा मानो पूरे बदन को लकवा मार गया है। वे असहाय से बैठे रहे। एक ने जोर से चिल्लाकर कुछ कहना चाहा पर उसकी आवाज उसके गले में ही घुट कर रह गई। जुबान तालू से जा चिपकी। लेकिन उन चारों के हृदय रेलगाड़ी की तरह धड़-धड़ कर रहे थे। फिर एक विचित्र घटना और हुई। मंदिर के एक कोने में अपने आप अग्नि प्रज्वलित हो उठी। और न जाने क्यों दीवारों पर लटके चमगादड़ उसमे कूद-कूद कर भस्म होने लगे। वातावरण में जीवित पक्षियों के जलने की असहनीय बदबू फ़ैल गई। यह सब तिलस्म देखकर वे चारों थर-थर कांपने लगे।
कहानी आगे जारी है !!
आखिर क्या था इन सब का रहस्य?
कौन थी अट्टहास करने वाली स्त्री?
उन चारों का क्या हुआ?
जानने के लिए पढ़िए भाग 2