रहने दो आप
रहने दो आप
परेशान हो गया था रोज-रोज रामसरन विश्वास के रोज के व्यवहार से, उसकी पूरी होती जिदें उसका हौसला बढ़ा रही थी। रामसरन को याद आया ये सिलसिला विश्वास के दसवीं के रिजल्ट के बाद से रफ्तार पकड़ता गया।
रिजल्ट के फौरन बाद पहली जिद दोस्तों को महँगे होटल में पार्टी के लिए की, जिसे रामसरन ने खुशी से मान लिया। फिर थोडे दिन बाद बाईक की फरमाईश हुई जिसे श्रीमती जी के कहने पर पूरा कर दिया गया।
पर अब तो हद हो चली थी, रोज ही कभी नयी जीन्स कभी शर्ट......कभी रामसरन समझाने की कोशिश करता तो यही जवाब मिलता रहने दो, पहन लूँगा वही जो रोज पहनता हूँ, ज्यादा से ज्यादा दोस्त मजाक बना लेंगे। बस, यहीं श्रीमती जी की कमजोर रग थी और वो पैसे दिला कर ही छोड़ती। किसी रिश्तेदारी में जाना हो, कहीं किसी फंक्शन में जाना हो तो उसकी फरमाईश पूरी न हो तो वही घिसा-पिटा रिकार्ड शुरू हो जाता रहने दो आप...।
दो बरस बीत गए, रामसरन के सब्र का बाँध टूट गया था। आज विश्वास का बारहवीं का रिजल्ट आया था, केवल 45% अंक। रामसरन परेशान था पर विश्वास के माथे
कोई शिकन नहीं थी। जैसे ही उसने पार्टी के लिए पैसे माँगे रामसरन ने साफ मना कर दिया। जैसे ही विश्वास आदतन बोला रहने दो आप .....।"
"जा रहने दिया ।" रामसरन गुरार्या।
विश्वास ने माँ की ओर देखा। इससे पहले की शगुन मुँह खोलती रामसरन ने कड़क आवाज में कहा- "आज कुछ नहीं कहोगी तुम ......जिद्दी बना दिया तुमने उसे, नं देखे हैं इसके ?...... मुश्किल से पास हुआ है पर पार्टी जरूरी है। नहीं है मेरे पास फूँकने के लिए पैसे और कल से बाईक नहीं "फरमान सुना दिया था रामसरन ने।
"बाईक नहीं तो मैं आगे पढूँगा ही नहीं।" विश्वास ने अंतिम हथियार फैंका।
"ठीक है मत पढ़ना मगर फुर्सत मिले तो आने वाले कल के बारे में भी थोड़ा सोच लेना। आजकल जिन दोस्तों के कहने पे चल रहे हो ना मतलब के मीत है कहीं का न छोड़ेंगे तुम्हें, चाहो तो कभी आजमा कर देख लेना, तब समझोगे कौन तुम्हारा भला चाहता है, और कौन मतलब साध रहा है। मैं तो पढ़ा लिखा था, नौकरी कर के पूरा पाड़ लिया। कोई राजे- रजवाडे नहीं हैं, हम जायदाद के नाम पर ये छोटा सा घर ही बना पाया हूँ और बिना पढाई के तुम्हें तो शायद ठेला ही लगाना पड़ेगा।" रामसरन ने भरे गले से कहा।
"हुँह ठेला ...."मुझे नहीं रहना यहाँ, कह के विश्वास तेजी से बाहर की ओर निकल गया।
विश्वास का रवैया देख शगुन का कलेजा मुँह को आ गया, घबरा तो रामसरन भी गया था पर उसने अपना डर चेहरे पर न आने दिया।
शाम से रात हो चली थी शगुन का मन घबराने लगा था, घर में घुप्प अंधेरा था। आज घर में जोत-बत्ती भी नहीं हुई......हाँ प्रार्थनाएँ खूब हुई थी।
रामसरन भी आँखें मूँदे आराम कुर्सी पर लेटा आशंकाओं का झँझावत उसे भी व्याकुल कर रहा था। अचानक मेनगेट खुलने की आवाज आई। शगुन गेट की तरफ भागी, विश्वास ही था, व्याकुल माँ ने बेटे को गले से लगा कर भींच लिया और एकदम बेहोश हो गई। रामसरन ने देखा तो फटाफट बिस्तर पर लेटाया, इतने में विश्वास ने डॉ को फोन कर दिया। डॉ ने बताया कि किसी बेचैनी के चलते चक्कर आ गया था, सुबह तक सब ठीक हो जायेगा।
"साॅरी पापा आप ठीक कहते थे , मैंने आजमाया अपने दोस्तों को पर वो सब तो मतलबी निकले।" कहते हुए रो पड़ा विश्वास।
"अच्छा तुम अपनी माँ के पास बैठो मैं कुछ खाने का बनाने की कोशिश करता हूँ। विश्वास के सिर पर हाथ फेरते हुए रामसरन ने कहा।
"आप रहने दो .....मेरा मतलब है मुझे मैगी बनानी आती है।" विश्वास खिसियाता सा बोला।
"चलो रहने दिया।" रामसरन ने मुसकुराते हुए कहा।
विश्वास के चेहरे पर भी मुस्कान फैल गई थी।
