रेशमी डोर वाली कलाई

रेशमी डोर वाली कलाई

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'उदास हो?' उसे सुबह से गुमसुम देख आखिरकार उससे रहा नहीं गया।

'नहीं तो। बस ऐसे ही।' चेहरे पर जबर्दस्ती मुस्कान लाने का यत्न करते हुए वह बोली।

'मुझसे शादी कर तुमने मेरा जीवन तो ख़ुशियों से भर दिया पर तुम्हारे बावीस वर्षों के संबंध पीछे छूट गए।' कुछ माह पूर्व ही प्रेम विवाह से रुठ चुके उसके अपनों के लिए आज के दिन उसके मन में उठती पीड़ा भांपते हुए वह बेचैन हो उठा।


उसके चेहरे पर फीकी सी एक मुस्कान फैल गई।

'एक काम करते हैं। सिनेमा देखने चलते है। प्रिया टॉकीज में तुम्हारें पसंदीदा हीरो की फिल्म आई है।' उसका मन बहलाने के लिए उसने सुझाया।

'नहीं मेरा दिल न करता है। प्रिया टॉकीज तो मंगल पांडे रोड पर है। उस तरफ जाने से घर की याद और तीव्र हो जायेगी।' उसने उसके प्रस्ताव को नकार दिया।

'तुम्हें मेरी कसम। गुलाबी साड़ी पहन कर तैयार हो जाओ।' उसने कसम दी तो वह मना न कर पाई।

मंगल पांडे रोड से गुजरते हुए उसने बाइक दांयी तरफ ली तो उसका मन एक दहशत से भर गया। भाई के धमकी भरे शब्द उसके कानों में गूंज उठे।


'अपना काला मुंह लेकर फिर मेरे सामने आई तो मेरा मरा हुआ मुंह देखेगी।'

'सुधीर, इस ओर तो....भैया...' वह एक अनहोनी घटना की आशंका से कांप उठी। उसने कुछ बोलना चाहा तो उसने उसे टोक दिया, 'तुम चुप ही रहो। आज एक फैसला हो ही जाये।' 

डरते हुए घर की दहलीज पर कदम रखते ही उसकी आँखें गीली हो आई। बावीस वर्षों की स्मृति ज़हन में उभर आई।

उसे गुलाबी साड़ी में अपने सामने खड़ा देख उसकी आँखों में दस साल पहले गुलाबी फ्रॉक पहनी लड़की उभर आई। 

कुछ कहने को उसके होंठ अभी खुले ही थे कि पीछे आकर उसने उसके हाथ में रेशमी धागा थमा दिया।


'नेहा, रक्षाबंधन के दिन भाई की कलाई सूनी और बहन की आँखें गीली बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। आगे बढ़ो और भैया को रक्षाकवच बांध दो।' अपने हीरो से उसकी नजर मिली और आगे बढ़कर उसने भाई की कलाई को छू लिया।

मन में रही कड़वाहट पिघलकर आँखों से बहने लगी। एक दुआ के साथ रेशमी डोर से सजी कलाई वाला हाथ उसके सिर पर जाकर थम गया।

'खुश रहो। सदा सुहागन रहो।'


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