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Priyanka Gupta

Drama Inspirational

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Priyanka Gupta

Drama Inspirational

रचनाकार day-10

रचनाकार day-10

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"प्राची ,वैदेही को तो आमंत्रित किया है न तुमने ?", प्राची की सखी तमन्ना ने पूछा। 

"नहीं ,उसे निमंत्रित नहीं किया। वैसे भी उसे बुलाकर करना क्या है ? मेरी समीक्षक नहीं ,आलोचक है वह। मुझे ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल रहा है ;इसी पर प्रश्न लगा देगी।मेरी प्रगति और प्रसिद्धि पचा नहीं पा रही ;मुझसे ईर्ष्या रखती है।",प्राची ने कहा। 

"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ? हम तीनों कॉलेज के ज़माने से ही कितने अच्छे दोस्त हैं ? तुम्हारी लिखी हर किताब पढ़ती है वैदेही। उससे अच्छी पाठिका तुम्हें मिल ही नहीं सकती। ",तमन्ना ने समझाने की कोशिश की। इतना ही नहीं ,जब मेरी लिखी कविताएँ 'अरविन्द प्रकाशन' द्वारा आयोजित साहित्यिक प्रतिस्पर्धा में विजयी हुई ;तब भी सब लोगों ने यही कहा था कि अपनी अस्वस्थता के कारण वैदेही काव्य-पाठ नहीं कर पायी ;अन्यथा वही विजेता होती। ",प्राची ने कहा। 

"क्या कभी वैदेही ने तुम्हें कुछ कहा ?",तमन्ना ने पूछा। 

"नहीं ,उसने कुछ कहा तो नहीं। लेकिन वह भी ऐसा ही सोचती होगी। ",प्राची ने कहा। 

"प्राची ,वैदेही ने तुम्हें बताने से सख्त मना किया था। आज तक यह राज मैं अपने सीने में दफ़न करके बैठी थी ;लेकिन अब तुम्हें बताना बहुत आवश्यक प्रतीत हो रहा है। आज तुम जिस भी मुकाम पर हो ;सिर्फ और सिर्फ वैदेही के कारण हो। ",तमन्ना ने कहा। 

"तुम भी औरों के जैसे ही सोचती हो। ",प्राची ने तुनकते हुए कहा। 

"नहीं प्राची प्राची;तुम भी एक बेहतरीन रचनाकार हो ;इसीलिए तो तुम्हारी पुस्तक को पुरस्कार के लिए चुना गया। लेकिन तुम्हें अवसर केवल और केवल वैदेही के कारण मिला। अरविन्द प्रकाशन की प्रतियोगिता के दौरान वैदेही का स्वास्थ्य पूर्णरूपेण उत्तम था ;लेकिन तुम प्रतियोगिता जीत सको ,इसीलिए उसने प्रतियोगिता में हिस्सा ही नहीं लिया। वह हिस्सा लेकर अगर अपनी अच्छी कविताओं को नहीं पढ़ती तो वह अपने आप को धोखा देती। ",तमन्ना ने बताया। 

प्राची ,वैदेही और तमन्ना तीनों ही स्कूल के समय से दोस्त थीं। कॉलेज में भी तीनों साथ ही थीं। वैदेही और प्राची दोनों ही साहित्यिक रुचि रखती थीं। दोनों घंटों कॉलेज के पुस्तकालय में बैठकर प्रेमचंद ,महादेवी वर्मा ,अमृता प्रीतम आदि मूर्धन्य साहित्यकारों की रचनायें पढ़ती और उन पर चर्चा करती। 

एक बार प्रेमचंद की कफ़न कहानी पढ़कर प्राची ने वैदेही से कहा कि ," मुंशी प्रेमचंद ने इस कहानी में गरीबी का मज़ाक उड़ाकर रख दिया। कोई व्यक्ति अपनी मृत पत्नी के कफ़न के पैसों को मौज-मस्ती में उड़ा कैसे सकता है ?"

"अभाव दुधारी कृपाण सादृश्य होते हैं। कई बार व्यक्ति में संवेदनाओं का विकास करते हैं और कभी व्यक्ति की संवेदनाओं को मार भी देते हैं। गरीबी का मज़ाक नहीं उड़ाया है ;बल्कि गरीबी के अभिशाप की सच्चाई को दिखाया है। अगर कोई व्यक्ति भूखा है तो उसे चाँद भी एक रोटी जैसा ही दिखता है। ",वैदेही ने कहा। 

"क्या मतलब?",प्राची ने तब पूछा था। 

"हम कई बार चिकित्सकों पर संवेदनहीनता का आरोप लगाते हैं ;लेकिन सोचो दिन -प्रतिदिन रोगी व्यक्तियों की पीड़ा देख-देखकर उन्हें उसकी आदत हो जाती है। ",वैदेही ने कहा था। 

गुनाहों का देवता ,सारा आकाश , आपका बंटी ,शेखर एक जीवनी आदि कितनी ही कृतियाँ दोनों सखियों ने साथ -साथ पढ़ी ही नहीं थी ;बल्कि उन पर घंटों बैठकर चर्चा भी की थी। 

दोनों सखियाँ कॉलेज में होने वाली विभिन्न साहित्य से संबंधित गतिविधियों में हिस्सा लेती थीं।कभी वैदेही विजेता घोषित होती और कभी प्राची। जब वैदेही को 'समिधा ' की प्रधान संपादिका बनाया गया और प्राची को सह संपादिका;तब प्राची ने वैदेही से स्वयं की तुलना करना शुरू कर दिया था। प्राची अच्छे से जानती थी कि वैदेही उससे अधिक योग्य है ; प्राची को वैदेही से जलन होने लगी थी। 

तब ही 'अरविन्द पब्लिकेशन ' ने उनके कॉलेज में एक कविता पाठ प्रतियोगिता आयोजित करने की घोषणा की। विजेता के साथ पब्लिकेशन एक किताब प्रकाशित करने वाला था। 

प्राची को जब प्रतियोगिता के बारे में पता चला तो पहले तो वह बहुत खुश हुई थी ;लेकिन बाद में निराश होते हुए तमन्ना से उसने कहा था कि ," जीवन का एक ही ख़्वाब था कि कभी मेरी एक किताब तो प्रकाशित हो ; लेकिन पूरा नहीं होगा। कॉलेज के बाद विवाह हो जाएगा ; विवाह के बाद लड़की के सपने तो मात्र सपने ही रह जाते हैं। जरूरतों और ज़िम्मेदारियों के माँझे से सपनों की पतंग काट दी जाती है। इस प्रतियोगिता में भी वैदेही ही जीतेगी। "

आज तमन्ना ने बताया कि ,"उस दिन हम दोनों के मध्य हुआ वार्तालाप वैदेही के कानों तक पहुँच गया था। वैदेही बहाने से अपने घर गयी और फिर बीमारी का नाटक किया ताकि तुम प्रतियोगिता जीत सको। आज जब तुम अपने सपनों को पूरा होते देख रही हो तो वैदेही को आमंत्रित अवश्य करो। "

"क्या तुम सच कह रही हो ?",प्राची ने पूछा।

"हाँ ,मेरा कहा एक -एक शब्द पूर्णतया सत्य है। लेकिन वादा करो वैदेही को भनक तक नहीं लगने दोगी कि तुम्हें सब पता चल गया है। नहीं तो उसे बहुत दुःख होगा। उसकी अब तक कि तपस्या असफ़ल हो जायेगी। ",तमन्ना ने कहा।

"ठीक है। अब वैदेही को श्रेय देने का वक़्त आ गया है। मैं हमेशा उसके प्रति कृतज्ञ रहना चाहती हूँ ;इसलिए अहसान उतारने का तो सवाल ही नहीं उठता। ",प्राची ने कहा।

प्राची स्वयं वैदेही को पुरस्कार समारोह का आमंत्रण देने गयी। पुरस्कार लेते हुए प्राची ने अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय वैदेही को दिया। प्राची की आँखों में झलक आये आँसुओं ने वैदेही का हार्दिक अभिनन्दन किया। उस दिन वैदेही को अपनी सहेली वापस मिल गयी। 


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