रात्रि चौपाल भाग 6 : अंतरात्मा
रात्रि चौपाल भाग 6 : अंतरात्मा
समय बहुत कम था । राज्य के "अपने" समस्त विधायकों को रिजॉर्ट पहुंचने का "फरमान" मुखिया जी ने सुना दिया था । अभी थोड़ी देर में विधायकगण रिजॉर्ट में पहुंचने आरंभ हो जायेंगे । मुखिया जी के दल के 102 विधायक हैं । कुछ निर्दलीय और दूसरी छोटी मोटी पार्टी के और विधायक हैं जिन्हें इसी रिजॉर्ट में ही ठहराना है । इन विधायकों के अतिरिक्त कुछ सांसद और मंत्री भी इसी में रुकेंगे । कुछ पार्टी के बड़े नेता भी आने वाले हैं । उन सबकी व्यवस्था करनी थी ।
वैसे यह कार्य प्रशासन का नहीं है । मगर आजकल प्रशासन के जो करने योग्य काम होते हैं उन्हें ना तो कोई करता है और ना ही कोई चाहता है कि वे काम हों । आम आदमी की चिंता केवल चुनावों के समय ही की जाती है । बाकी साढ़े चार साल आम आदमी को "आम" को तरह चूसा जाता है , फिर गुठली की तरह फेंक दिया जाता है । बड़े बुजुर्ग कह गये हैं कि काम ऐसा करो जिसमें "बरकत" हो । बरकत मतलब पैसा आये । क्या नेता और क्या अधिकारी ? सबको बड़ी जल्दी लगी हुई है बरकत करने की यानि "पैसा कमाने" की । इस चक्कर में सही गलत का भेद मिट गया है और पैसा ही मुख्य आकर्षणका केंद्रबन गया है । इसी के चलते सब लोग "राम नाम की लूट है , लूट सके सो लूट" वाले सिद्धांत को आधार बनाकर चलते हैं । भागते भूत की लंगोटी ही सही , जो हाथ में आ जाये कम ही है ।
मंत्री विधायकों की अलग ही समस्या है । जिस तरह सरकारी कर्मचारी 60 साल की उम्र तक का "अनुज्ञा पत्र" ले लेता है वहीं इनकी महज पांच साल की "बादशाही" है । कभी कभी तो विधायकों द्वारा पाला बदल लेने के कारण यह "बादशाही" साल दो साल में ही खत्म हो जाती है और मध्यावधि चुनाव भी कराने पड़ जाते हैं । क्या पता कब तक "बादशाही" चलेगी और कब चली जाये ? यह तलवार हमेशा इन पर लटकी ही रहती है । इसलिये जितने कम समय में जितना अधिक "माल" वसूल लिया जाये उतना ही श्रेष्ठ है । यही भाव घर कर गया है इनमें आजकल । इसलिए पुलिस को भी "वसूली" का टारगेट दे दिया जाता है और पुलिस इसी काम में लग जाती है ।
जिला मुख्यालय अचानक सुर्खियों में आ गया । पूरे राज्य का केन्द्र बिन्दु बन गया । मीडिया के दिग्गज पत्रकारों ने वहां डेरा डाल दिया । एक एक विधायक की ऐसी सुरक्षा की जा रही थी कि कहीं उसे कोई "उड़ा" ना ले जाये । उनके मोबाइल छीन लिए गये जिससे वे "हॉर्स ट्रेडिंग के विशेषज्ञों" के संपर्क में ना आने पाए ।
ये सब हो क्यों रहा था ? राज्य सभा के सदस्यों का चुनाव जो होना था । इसमें केवल विधायक ही वोट डालते हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि यदि कोई विधायक पार्टी के "व्हिप" का उल्लंघन भी कर किसी और को वोट दे भी देता है तो ऐसे विधायक के खिलाफ पार्टी कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है । मतलब उसकी विधायकी रद्द नहीं हो सकती है अलबत्ता वह पार्टी से निकाला जा सकता है ।
अब प्रश्न यह आता है कि कोई विधायक पार्टी के आदेश के खिलाफ वोट क्यों देता है ? इसका कारण है "अंतरात्मा" । जब विधायकों की अंतरात्मा जाग जाती है तो वह अंतरात्मा की आवाज पर वोट देता है । अब प्रश्न यह आता है कि उसकी अंतरात्मा अब तक क्या सो रही थी ? यदि हां , तो वह सोई हुई अंतरात्मा से अब तक कैसे काम कर रहा था ? तो क्या इसी आधार पर उसकी विधायकी रद्द नहीं हो जानी चाहिए ? लेकिन कानून में अंतरात्मा के आधार पर कुछ नहीं किया जाता है इसलिए कानून अंतरात्मा की आवाज पर कोई फैसला नहीं करता है ।
अब दूसरा प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह अंतरात्मा जगती कब है ? सच बात तो यह है कि इसका पता आज तक कोई भी विद्वान लगा नहीं पाया है । इसका कोई निश्चित समय नहीं है । यह कभी भी जग सकती है जब इसे "जगाने" का उपक्रम किया जाये । जैसे कुंभकर्ण सोता रहता था वैसे अंतरात्मा भी सोती रहती है । इसे जगाने के लिए नाना भांति के खाद्य और पेय पदार्थ काम में लिए जाते हैं । इसे "गुलाबी नोटों की खुशबू" बहुत पसंद है । उनकी गंध पाते ही यह फाटक से जाग जाती है । "गुलाबी गंध" में बड़ी ताकत होती है साहब । यह अच्छे अच्छों का ईमान भ्रष्ट कर देती है । पतन की राह पर ले जाती है जिसे रोकना आवश्यक है । इसलिए सभी विधायकों की "अंतरात्मा" टटोली जाती है कि वह सो रही है या जाग गई है । इसके लिए भी एक टीम लगा दी जाती है जो इस अंतरात्मा को हरदम सुलाने का काम करती है और विरोधी खेमे की अंतरात्मा जगाने का प्रयास करती है
आजकल बेचारी अंतरात्मा बहुत दुखी है । ना उसे चैन से सोने दिया जाता है और ना ही उसे चैन से रहने दिया जाता है । आदमी जब चाहे तब उसे सुला देता है और जब चाहे तब उसे जगा देता है । जैसे ही कोई सुंदर सी स्त्री या धन की पोटली दिखाई दी वैसे ही अंतरात्मा को सुलाकर "अपराध" कर दिया जाता है । जब कोई अपराध होता है तब पुलिस उसकी जांच करती है । यहां पर भी अंतरात्मा तब तक जागती है जब तक सुरा, सुंदरी और सिक्के के दर्शन ना हो जाएं । जैसे ही इनके दर्शन हो जाते हैं तब इस अंतरात्मा को फिर से सुला देते हैं । ऐसा नहीं है कि कोर्ट कचहरी में अंतरात्मा जागी रहती है । एक एक केस वर्षों तक चलता रहता है। आखिर अंतरात्मा कब तक जागे ? इसलिए वह कोर्ट में गवाहों को पलटते देखकर, वकीलों का विपक्षी से सांठगांठ करने पर और लंबी लंबी दलीलें सुनते सुनते वह बेचारी थककर सो जाती है । आखिर कब तक जागती रहे ? वैसे भी सब लोग उसका चीर हरण करने में ही लगे रहते हैं ।
यहां पर भी विशेषज्ञों द्वारा अंतरात्मा को जगाने का प्रयास किया गया मगर मुखिया जी के दल के विधायकों की अंतरात्मा नहीं जागी । अलबत्ता मुखिया जी ने विपक्षी खेमे वालों की अंतरात्मा जगा दी और एक दो विधायकों को "तोड़कर" अपने पाले में ले आये । अब ये शोध का प्रश्न है कि क्या माननीय विधायक और सांसद कोई "फल" हैं क्या जिन्हें तोड़ा जा सकता है ?
इस तरह यह बाड़ेबंदी की ईवेन्ट संपन्न हुई । मुखिया जी के दल के सभी उम्मीदवार चुनाव जीत गये । मुख्यमंत्री जी बहुत प्रसन्न हुए । कलेक्टर साहब की "काबिलियत" पर मुखिया जी की मुहर लग गई । इस ईवेन्ट के सफल आयोजन से कलेक्टर साहब गदगद हो गये ।
क्रमश:
