STORYMIRROR

Gita Parihar

Inspirational

3  

Gita Parihar

Inspirational

राणा पूंजा भील

राणा पूंजा भील

3 mins
333

राणा पूंजा भील एक महान आदिवासी योद्धा थे जिनकी निष्ठा ,वफादारी ,वीरता इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है।राणा पूंजा का जन्म पाँच अक्टूबर को मेरपुर के मुखिया दूदा सोलंकी के घर हुआ था।इनकु।माता का नाम केहरी बाई था।इनके दादा राणा हरपाल भील थे।अभी यह मात्र पन्द्रह वर्ष के थे कि पिता की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के पश्चात अल्पायु में ही इन्हें मेरपुर का मुखिया बना दिया गया।इन्होंने बखूबी कर्तव्य का निर्वहन किया और शीघ्र ही भोमट के राजा बन गए।इनकी संगठन शक्ति और जनता के प्रति इनके प्यार ने इन्हें वीर भील नायक बना दिया। 

 

सन १५७६ में मेवाड़ पर मुगल आक्रमणकारियों की निगाहें थम गईं ,परंतु इन वीर भीलों से टकराना आसान नहीं था। मेवाड़ तक पहुँचने के लिए मुगलों को राणा पूंजा के इलाके से निकलकर जाना था। मेवाड़ के महाराणा पूंजा भील से मदद लेना चाहते थे।मुगल भी अपने इरादे पूरे करने के लिए इनकी ओर मित्रता का हाथ बढ़ाना चाहते थे। इधर मेवाड़ के महाराणा पूंजा भील से सहायता लेने के लिए पहुँचे। उन्होंने बप्पा रावल की तलवार राणा पूंजा के कदमों में रख कर मेवाड़ की सहायता करने की प्रार्थना की और उधर मुगल नीतिकार बैरम ख़ां ढेर सारा धन लेकर इनसे सहायता लेने के लिए पहुँचा।


महान देशभक्त पूंजा भील ने मुगलों की धन-दौलत ठुकरा कर महाराणा प्रताप की सहायता करने का वचन दिया ।उन्होंने महाराणा प्रताप को कहा कि वह और उनके सभी साथी मेवाड़ की रक्षा करने के लिए तैयार हैं। महाराणा प्रताप भील राजा की इस बात से अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें गले से लगा लिया।


हल्दीघाटी युद्ध में भील राजा पूरी ताकत से शत्रु का सामना किया। इस युद्ध में राणा पूंजा भील ने पूरी ताकत से शत्रु पर गुरिल्ला पद्धति से हमला करके मुगलों की नाक में दम कर दिया। यह युद्ध अनिर्णीत रहा।


इसके बाद भी कई वर्षों तक राणा पूंजा महाराणा के साथ मिलकर मुगलों के आक्रमण को विफल करते रहे।


भील वंश में जन्मे वीर नायक पूंजा भील का योगदान युगों-युगों तक याद रहे ,इस विचार से मेवाड़ के राजचिन्ह में भील प्रतीक को अपनाया गया।उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें ‘ राणा ‘की पदवी महाराणा द्वारा दी गई, इसीलिए वह राणा पूंजा भील के नाम से जाने जाते हैं‌।


यह राजचिन्ह आज भी मेवाड़ की सिटी पैलेस के ऊपर बहुत बड़े रूप में सुशोभित हैं।महाराणा व अन्य सरदार अपनी पगड़ी में भी इस भील प्रतीक को धारण करते थे और गौरव का अनुभव करते थे। इस तरह पूंजा राजपूती पगड़ी के सरताज बन गए।

 

यही नहीं मेवाड़ की राजमाता जयवंता बाई ने राणा पूंजा भील को राखीबंद भाई बनाकर उन्हें बहुत मान दिया, तब से आज भी भील समाज को मामा कहकर बुलाया जाता है। 


राणा पूंजा की याद में और उनके सम्मान के लिए, उनके समाज के अद्भुत योगदान के लिए ,उनकी देश भक्ति को सम्मानित करने के लिए १९८६ में राणा पूंजा पुरस्कार स्थापित किया गया था। उनके कारण आदिवासी और मेवाड़ घराने के बीच सहयोग जारी रहा।

आज भी राजस्थान उन पर गर्व करता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational