राखी की चमक
राखी की चमक


विशाल रिसिप्शन पर आज सुबह से तीन बार पूछ चुका था की कोई कूरियर आया या नहीं, हर बार मायूसी ही मिली।
घर पहुँचते ही वैशाली ने अपनी बात शुरू कर दी – मैं पहले से ही कह रही हूँ की इस बार दीदी की राखी नहीं आएगी, आप भूल सकते हो मैं नहीं, जरा सी बात का कैसे बतंगड़ बनाया था, आप सुन लोगे आपकी बहन है पर मैं नहीं सुन सकती हूँ, पहली बार नहीं हुआ था .....
विशाल का फोन बजने लगा, वैशाली को अपनी बात बीच में ही रोकनी पड़ी, फोन की बात खत्म करकर विशाल ने बातचीत का रुख अमेज़न प्राइम पर आई नई मूवी की तरफ मोड दी थी, मूवी चलती रही और बातें होती रही,
बहन का शादी के बाद भाइयों से क्या रिश्ता रह जाता है?
वैशाली के अपने भाई के साथ कैसे संबंध हैं? क्यूँ समाज ने लड़कियों के लिए कोई घर नहीं छोड़ा, शादी के बाद माइका पराया और जिस घर में आई वो पति का घर, ऐसी परंपरा बनी और तो और समाज ने लंबे समय तक इन्हे चलाया भी, जारी तो अभी भी है पर अब इन पर सवाल होने लगे हैं, जवाब तो दूर की कौड़ी है ही पर जब मूवी अच्छी ना हो तो टाइम पास तो हो ही जाता है और आगे की बात का सिरा भी खुला रहता है क्योंकि बात कभी किसी नतीजे पर पहुँचती ही नहीं।
मूवी खत्म हो चुकी थी, दोनों अपने साझे सपने के सफर पर बातें करते हुए कब बंद आंखों वाले सपनों की दुनिया में चले गए, पता ही नहीं चला।
अगले दिन ऑफिस में विशाल सुबह से ही नए प्रोजेक्ट के काम में व्यस्त था, किसी अननोन नंबर से फोन दो बार आया, दोनों बार विशाल फोन उठा ही नहीं पाया, फिर विशाल ने फोन मिलाया तो नंबर व्यस्त आता रहा।
शाम को फिर वही बात -आप फोन करके याद मत दिलाना, हम दोनों में यही शर्त लगी थी ना, की दीदी इस बार राखी भेजेंगी या नहीं, देख लो दो दिन ही बचे हैं अभी तक तो आई नहीं, भेजी होती तो आ जाती- वैशाली ने पानी देते हुये कहा।
अगर दीदी की राखी नहीं आएगी तो क्या वो मेरी दीदी नहीं रहेंगी, राखी से ही भाई -बहन का रिश्ता होता है क्या? जिंदगी की दुश्वारीयों में एक दूसरे के साथ खड़े होना क्या काफी नहीं है? – विशाल ने भी पानी खत्म करते हुए कुछ सवाल वैशाली की ओर उछाल दिये।
वैशाली – कोई सफाई देना तो आपसे सीखे, वकील बन जाओ, दलील अच्छी देते हो, बात एक दूसरे के साथ देने की नहीं है, हमारी शर्त की है और इस बार शर्त मैं जीत रही हूँ, समझे।
क्या वाकई तुम शर्त जीतना चाहती हो? विशाल ने सवाल तो किया पर शायद वैशाली खाना परोसने ने व्यस्त होने के कारण सुन नहीं पायी या फिर सुनकर अनसुना कर दिया।
आज टीवी चलाया और अपनी बातें शुरू कर दी वैसे भी टीवी वाले एक ही बात हफ्ते भर सुनाते रहते हैं, उसे कोई विरला ही ध्यान से सुन पाएगा, अब तो टीवी की आवाज़ बैक्ग्राउण्ड म्यूजिक का काम करती है, संगीत के बदलने से आप अपनी बात को भी बदल सकते हो।
भाई -बहन का रिश्ता सबसे खास होता है, बहन के लिए उसका भाई हीरो होता है और वो हमेशा उसकी तारीफ ही करती रहती है चाहे भाई उस तारीफ के पूरा हिस्सेदार हो या ना हो, भाई अक्सर अपनी भावनाओं को कम व्यक्त करते हैं पर उनकी खामोशी भाई -बहन के रिश्ते की बयानगी करती रहती है और समय आने पर उसमे स्वर भी आ जाते हैं- ऐसे ही अपनी -अपनी फ़िलाओस्फी में गोते लगाते हुए दोनों नींद में गोते लगाने लगे।
आज राखी का दिन था, वैशाली गुमसुम थी- फोन को बार-बार ताक रही थी, विशाल ने उसके एकाकीपन को ख़तम करते हुए बातचीत शुरू कर की, दोनों फिर से अपने सपनों की सवारी पर सैर कर रहे थे, खुली आँखो वाले सपने। दरवाज़े पर एक आंगुतक ने अगर व्यवधान ना किया होता तो आज सपनों की सवारी दूर चली गई होती।
सर, ये आपका कूरियर है, मैंने आपको फोन भी किया था, आपने रिसीव ही नहीं किया, पता ही ऐसा ही लिखा है की कोई पहुँच ही ना पाये, पहले तो रिटर्न करने वाला था पर मेरी बहन बोली –कहीं राखी ना हो, भैया -भाभी की आस रहती है आप एक बार और कोशिश करके देख लो, हजार लोगों से पूछा तब जाकर आप तक पहुँच पाया, ये लीजिए अपना कूरियर।
विशाल ने कूरियर खोला, दीदी की राखी थी, विशाल ने वैशाली को आवाज़ लगाई पर वो तो कहीं फोन पर बिज़ि थी,
दीदी मुझे तो पक्का यकीन था की राखी जरूर आएगी, मैंने तो इनसे शर्त भी लगा रक्खी थी की कुछ भी हो जाये दीदी की राखी जरूर आएगी, हम तो आने वाले थे, सारा प्लान बना हुआ था की अचानक आपके भैया ने सारा गुड़ -गोबर कर दिया, बैग भी पैक था, शर्त लगी थी की देखते हैं की इस बार राखी आएगी की नहीं, इसलिए काफी दिनो से फोन भी नहीं किया था, बात करने को तो रोज मन करता था, अब देखना रोज बात किया करूंगी, शर्त जो जीत गईं हूँ मैं पिछली बार के झगड़े को ही ये याद करते रहते हैं, मैं तो समझाती रहती हूँ, जिंदगी में ऐसे किसी बात पर फंसा जाता है, चलते रहने का नाम ही जिंदगी है, कितना ही समझा लो, पर मेरे समझाने से तो ये समझेंगे नहीं, लो आप ही बात का लो – ये कहते हुए वैशाली ने फोन विशाल को पकड़ा दिया,
आ नहीं पाया....
विशाल आगे बोलता दीदी ने कहना शुरु कर दिया – मैं जानती हूँ, नया -नया प्रोजेक्ट है, काम ज्यादा है, कोई नहीं जल्दी मिलेंगे, तुम दोनों खुश रहो और फोन कर लिया करो कभी कभार, मेरा उठा लिया करो -नहीं तो मैं नाराज़ हो जाऊँगी, वैशाली को भी मना कर देता है, वो तो मुझसे बात किए रही नहीं पाती, बड़ा हो गया है पर मैं तुझसे बड़ी हमेशा रहूँगी......
लंबी बातचीत के बात फोन पर बात खत्म हुई, आज वैशाली चहक रही थी, खुशी में गुनगुना रही थी, अपने हार जाने पर भी कोई ऐसे खुश होता है भला- अजीब से डोर से बंधे है ये रिश्ते, एक राखी में इतनी चिपक होगी की रिश्तों की मरम्म्त भी करेगी और उनमें नयापन भी सींच देगी, हाथ पर राखी बांधते हुये विशाल की आंखे नयी चमक से चमक रही थी- राखी की चमक।