राख
राख
सभी प्रतियोगी एक से बढ़ कर एक थे, सुंदर से सुंदर तरीक़े से हाथों को मेंहदी से रचाया हुआ था।
हाथ भी उतने ही कोमल और सुकुमार प्रतीत हो रहे थे।
बस इंतज़ार था तो जज का। प्रतियोगिता की जज शहर के ज़िला अधिकारी की पत्नी थी। उनके आते ही सभी प्रतियोगी अपने हुनर को दिखाने के लिये उन तक आए और लाइन से खड़े हो परिणाम का इंतज़ार करने लगे।
कि तभी ख़बर आयी की ज़िला अधिकारी भी पत्नी के इस आयोजन में शामिल होने आ रहे है क्यूँ की इसी क्लब में उनको एक पार्टी में शामिल होना है।
कुछ ही वक़्त में साहब भी आ पहुँचे और हौले से पूछा।
“क्या है कौन है सबसे सुंदर जल्दी बताओ वक़्त कम है।”
पत्नी ने कहा
“वक़्त कम नहीं है बल्कि बड़ा बेरहम है। हैं तो सभी सुंदर और सुकोमल है। पर जो हाथ सच में इनाम के हक़दार है। क्या आप उन्हें देखना चाहेंगे ?”
“हाँ क्यूँ नहीं तुमने कहा और मैं सब काम छोड़-छाड के आया ना ? मैडम का हुकुम सर आँखो पर।”
वह उठी और क्लब के अंदर की ओर चल पड़ी सभी के साथ साहब भी सवालिया नज़रों से देखने लगे।
कि मैले कुचैले कपड़ों में राख से सने हाथ में एक कमज़ोर सी अधेड़ उम्र की महिला को लिये वह प्रतियोगियों के बीच आ गई और बोली।
“ज़िला अधिकारी साहब क्या अब आप बता सकते है की सबसे सुंदर हाथ कौन से हैं ? आपकी नज़रो में वो जो मेहंदी से रचे है ? या ये जिन्होंने आप को समवारने में अपने हाथों में मेंहदी ही ना रचाई। घरों के बर्तन साफ़ कर राख से हँथेलियो को रचा कर आपको इस क़ाबिल बना दिया और आपको उनको अपनी बहन कहने में शर्म थी क्यूँ की वो लोगों के घरों के बर्तन साफ़ करती थी और अपने उनको ख़ुद से ही अलग कर दिया अरे ! राखी की लाज ना रखते पर उनके राख से सने हाथ का तो मान रख लेते।”
वह कहे जा रही थी और ज़िला अधिकारी निरुत्तर से अपनी पदवी और अपनी बहन को शर्मिंदगी से निहार रहे थे।