बादलों के उस पार
बादलों के उस पार
शिकायतें बहुत थी उसे पर किससे करे उसका बाल मन समझ ही न पता था।
अपने आस-पास बस उसे अपने अकेलेपन का शून्य घेरे रहता था।
पापा जब तक आते वह थक कर सो जाता।
बीमारी से पहले माँ बहुत अच्छी थी बहुत प्यार करती थी उसका हर पल अपनी माँ के ममतामयी आँचल की छांव में ख़ुशियों भरा बितता था।
पर बीमारी के बाद जब से माँ वापस आई है बिलकुल बदल गई है।
उससे प्यार से बात ही नहीं करती बस फ़ोन पर व्यस्त रहती है और ख़ुद को सजाने में लगी रहती है। उसका ख़्याल ही नहीं रखती।
खाना भी बहुत तीखा बनाती है वह अक्सर भूखा रह जाता है।
उदास सा एक दिन वह छत पर बैठा था कि उसे उड़ते बादलों में कोई परछाईं सी दिखी एकाएक एक आकृति सी उभर आई उसे लगा ये उसकी माँ जैसी ही तो है।
फिर पापा क्यूँ कहते हैं माँ का चेहरा बीमारी में बदलना पड़ा।
वह ज़ोर से चीख़ उठा।
“चेहरा बदलने से कोई ख़ुद कैसे बदल सकता है। पापा आप सच्चे नहीं हो ये मेरी माँ नहीं है इन हाथों में माँ की छुवन नहीं है।”
तभी पीछे खड़े उसके पापा ने उसे अपनी बाँहों में भरते हुए कहा।
“बेटा ! तुम सच कह रहे हो तुम्हारे पापा सच्चे नहीं हैं ये तुम्हारी माँ हो कर भी माँ नहीं हैं। तुम्हारी माँ बदलों के उस पार है। मैं तुमसे सच न कह सका और तुम्हारे लिये नई माँ ले आया पर मैं भूल गया था माँ की जगह कोई नहीं ले सकता।”
उसकी गीली आँखों को बेटा अपने नन्हें हाथों से पोंछ रहा था बादलों के उस पार से माँ का प्यार सीढ़ी बन उनके साथ खड़ा था।