राजनीति

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एक थे मिस्टर कुमार, उन्हें अपने नाम के साथ मिस्टर लगवाना ही पसंद था। बिना मिस्टर के कोई कुमार बोले तो भड़क जाते थे।    

जीवन में सबके अपने अपने लक्ष्य होते हैं, लेकिन मिस्टर कुमार का 14 साल की उम्र से केवल एक ही लक्ष्य था राजनीति में जाना बड़ा नेता बनना।

18 वर्ष की आयु से उन्होंने राजनीति में नाम बनाने के लिए तिकड़म भिड़ानी शुरू की। सबसे पहले उन्होंने अच्छे से रिसर्च की राजनीति में किस किस रास्ते से होकर जाया जा सकता है। लेकिन सभी रास्तों पर उनकी क्या फजीहत हुई आइए आपको बताती हूं।

सबसे पहले उन्होंने एक आसान रास्ता चुना उन्होंने सोचा यदि मैं एक अच्छा कवि बन जाता हूं और प्रसिद्ध हो जाता हुँ। तो धीरे से पीछे के रास्ते से राजनीति में घुस जाऊंगा।                   

यह सोचकर कलम दवात ले कर बैठे और अपने दिमाग पर जोर डालना शुरू किया कविता लिखे तो लिखे किस विषय पर। आखिरकार उनके सामने तीन ऐसे ज्वलंत विषय थे जिस पर जबसे कविता लिखनी शुरू हुई है तब से लेकर आज तक यह विषय हर एक कवि की कविता में सम्मिलित रहते हैं।

 और वह तीन विषय हैं मां पिता और प्रेमिका। उन्होंने सोचा अब 18 वर्ष की आयु में प्रेमिका पर कविता लिखना सही नहीं है असलियत यह थी कि उनकी कोई प्रेमिका नहीं थी अतः वह माता पिता पर कविता लिखने बैठ गए उन्होंने जो कविता लिखी उसकी शुरूआत की पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं।

"माता मेरी खाना बनाती पिता मेरे कमाते हैं पिता जब पीकर घर आते।  माता से चप्पल खाते हैं""       

 उन्होंने यह कविता सबसे पहले अपनी मां को समर्पित की... शुरू की लाइनें पढ़ कर माता भड़क गई। सबके पिता मरखंडे होते हैं किंतु उनकी माता मरखंडी थी। जिस तरीके से हरभजन बॉल को स्विंग कराते हैं उसी प्रकार उनकी माता जी ने चप्पल ऐसी स्विंग कराई की सीधा उनकी नाक पर आकर लगी। माता बोली कमीने राजनीति में जाकर सब एक दूसरे को बदनाम करते हैं तूने तो राजनीति में जाने से पहले ही अपने परिवार को बदनाम करने की ठान ली।

तो यह तरीका मिस्टर कुमार को छोड़ना पड़ा दूसरा तरीका उन्होंने सोचा कि यदि मैं एक आईएएस, पीसीएस ऑफिसर बन जाता हूं, थोड़ा कड़क अफसर बनकर रहता हूं कुछ विवादपूर्ण निर्णय लेता हूं तो मैं प्रसिद्ध हो जाऊंगा और राजनीति के लिए रास्ता खुल जाएगा।  

लेकिन IAS PCS बनना कोई चने चबाने जैसा काम नहीं है इसके लिए उन्होंने सबसे पहले एक कोचिंग ज्वाइन की जिसका शहर में बहुत नाम था।   

लेकिन 2 दिन जाने के बाद मैथ के हाइपरबोला पैराबोला ने उनकी बोलती बंद कर दी, कॉन्प्लेक्स नंबर ने उनके दिमाग को और कॉन्प्लेक्स बना दिया और लिमिट पढ़ते-पढ़ते उनकी लिमिट क्रॉस हो गई और उनकी मैथ पढ़ने की प्रोबेबिलिटी बिल्कुल खत्म हो गई।

 केमिस्ट्री ने बॉडी का केमिकल इक्विलिब्रियम डिसबैलेंस कर दिया।

 फिजिक्स में साउंड वेव पढ़ते-पढ़ते बॉडी में अजीबोगरीब वेव उठने लगे और आईएएस बनने का सपना वही चकनाचूर हो गया।

तीसरा तरीका उन्होंने सोचा कि यदि मैं समाज सेवा करता हूं तो जरूर लोगों की नजरों में आऊंगा। इंसानों के लिए तो दुनिया करती है मैं सड़क के कुत्तों के लिए धरना दूंगा जिससे यह होगा कि जितने भी पशु प्रेमी है मुझे अपने कांधे पर उठा लेंगे।

 यह सोचकर उन्होंने एक जगह डिसाइड कि जहां सड़क के कुत्तों की भरमार थी और वह धरना देने बैठ गए शुरू के एक-दो दिन लोकल पत्रिकाओं के पत्रकार आए और उनका इंटरव्यू लिया इससे मिस्टर कुमार इतने जोश में आए कि अपने लिमिट वाले धरने को अनिश्चितकालीन धरना बना दिया।      

लेकिन जिस दुनिया में इंसानों की कदर नहीं वहां कुत्तों को कौन पूछे? सबने इग्नोर किया, लेकिन कुत्तों ने नहीं     

एक तो खाली पेट ऐसे ही नींद ना आती थी। और ऊपर से हल्की झपकी लगते ही अपने इतने बड़े शुभचिंतक को प्रेम करने कुत्तों की फौज चली आती और उनके मुंह को तरबतर कर देती। मिस्टर कुमार ने सोचा की खुद कुत्ता बनने से पहले यह तरीका भी छोड़ना ही सही है।  

आखिरकार उन्हें लगा राजनीति में जाने के लिए राजनीतिक लोगों से मिलना जरूरी होता है। यह सोच कर अपने इलाके के बड़े नेताओं का आने का जहां भी पता चलता मिस्टर कुमार वहां पहुंच जाते।

एक बार एक राजनैतिक पार्टी ने प्रवक्ताओं के लिए इंटरव्यू रखने की सोची, मिस्टर कुमार बिना नागा करे वहां पहुंच गए। वहां प्रवक्ताओं के इंटरव्यू के लिए भीड़ लगी थी। मिस्टर कुमार ने वहां आए कैंडिडेट्स को सलाह देनी शुरू की,"मुझे बहुत अनुभव है" "आपको ऐसे बोलना चाहिए" "अगर यह पूछे तो यह जवाब देना " "अपनी पर्सनालिटी को ऐसे शो करना" "इस तरीके से मत बोलना "इस तरह सैकड़ो सलाह उन्होंने वहां आए कैंडिडेट्स को दे डाली,

साथ ही उन्हें चेतावनी भी दी की राजनीति कोई सीधी चीज नहीं है अपना जी जान खून पसीना एक करना पड़ता है। प्रवक्ता को बहुत नॉलेज होनी चाहिए, बहुत डीप नॉलेज। और आखिर में जब रिजल्ट आया सब का सिलेक्शन हुआ था केवल मिस्टर कुमार का ही नहीं हुआ।

अब उन्होंने इंटरव्यू छोड़ नेताओं के साथ फोटो खिंचवाने का प्रण लिया। जहां जो नेता आता मिस्टर कुमार धक्का-मुक्की करके उस नेता के साथ एक सेल्फी जरूर खींचते और सेल्फी खींच कर निकल लेते। फिर उसे अपनी Facebook पोस्ट पर डाल देते।

इसी प्रकार उन्हें पता चला कि पास के किसी इलाके में किसी पार्टी के विधायक आए हुए हैं मिस्टर कुमार उठे,अच्छे से कपड़े पहने,बाल बनाए और जल्दी से इतनी भीड़ में किसी तरह मशक्कत करके मिस्टर कुमार नेताजी के पास पहुंचे, फटाक से फोन निकाल कर मुस्कुराते हुए सेल्फी ली और धक्का-मुक्की करते हुए बाहर निकल आएं।

अपनी फेसबुक पोस्ट डाली" नेताजी के साथ भारत की स्थिति पर मनोरंजक क्षणों में चर्चा करते हुए" प्रभु ने यह भी सोचने की कोशिश ना की कि नेताजी वहां एक मृत्यु होने के बाद में सांत्वना देने आए हुए थे।

उनकी Facebook पोस्ट का विपक्षी पार्टी ने जमकर लाभ उठाया और उसने बिचारे नेता को 'निर्दइ' 'भावनाओं से रहित' साबित कर डाला ।                 

आलाकमान ने नेताजी को बुलाया, नेताजी ने अपने चमचों को लगाया ,और मिस्टर कुमार का पता किया उसके बाद मिस्टर कुमार की जो फजीहत हुई मिस्टर कुमार ने अकेले में भी सेल्फी लेना छोड़ दिया।  

अब मिस्टर कुमार के पास दो ही रास्ते बचे थे या तो वह एक फेमस एक्टर बने या एक फेमस खिलाड़ी। एक्टर बनने के लिए मुंबई जाना पड़ता है उसके लिए उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए की गई सारी सेविंग, साथ ही अपनी माताश्री की गुल्लक फोड़ कर सब पैसे इकट्ठे किए, और निकल लिए मुंबई।

मुंबई पहुंच कर जब 3 दिन बड़ा पाव खाने पड़े तो गोरे चिट्टे लंबे चौड़े मिस्टर कुमार की शक्ल ही वड़ापाव जैसी हो गई। एक्टर बनना तो दूर उन्हें एक्स्ट्रा बनने का भी मौका नहीं मिला। और आखिरकार बचे-खुचे पैसे लेकर मिस्टर कुमार घर आए। कहा जाए तो "लौट के बुद्धू घर को आए"                  

एक तो शक्ल पहले ही बिगड़ गई थी। ऊपर से घर आने के बाद माता ने जो झाडू चलाई बेचारे बिल्कुल ही गए बीते हो गए। आखिरकार 3इडियट की तर्ज पर उन्होंने अपने पिताजी से कहा "पिताजी मुझे खिलाड़ी बनना है"। पिताजी बहुत ही उच्च विचारों के थे बोले "बताओ बेटा कौन सा खेल खेलना है"? 

इस प्रश्न पर मिस्टर कुमार बंगले झांकने लगे कोई खेल कभी खेला हो तो बताए भी यहां तो ध्येय केवल राजनीति में जाकर नेता बनना है।       

आनन-फानन में बोल दिया पिताजी कुश्ती या हॉकी खेलना हैं। पिताजी स्पोर्ट्स एकेडमी लेकर गए, वहां कुश्ती करते पहलवानों को देख कुश्ती का विचार एकेडमी के दरवाजे पर ही छोड़ दिया।

बची हॉकी, हॉकी में जब 3 दिन तक कोच ने केवल रनिंग करवाई और हॉकी स्टिक उनके कमर पर घुमाई तो आखिरकार मिस्टर कुमार ने नेता बनने का सपना छोड़ दिया

वो समझ गए ये आ बैल मुझे मार वाली स्थिति हो गई है उनके साथ ...घर जाकर अपनी पुस्तकें निकाली और पढ़ने बैठ गए।

 तो नेता बनना आसान नहीं है भाई या तो ऊपर दिए हुए गुणों में से हो कोई गुण या हो आपके पास काली कमाई।


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