प्यार

प्यार

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प्यार इस ढाई अक्षर के लफ़्ज़ को समझना ठीक उसी तरह है जैसे चीनी में से नमक निकालना।

इसे करना तो बहुत आसान है पर इसे शिद्दत से निभाना ही प्यार असली प्यार होता है। प्यार वो नहीं जिसमें एक गुलाब के लिए अपने ही घर के ही हीरों-से कोहिनूरों से ही दूर होना पड़े।

प्यार वो नहीं जिसमें सिर्फ प्रेमी का प्यार ही दिखे, 9 महीने का दर्द झेलने वाली माँ का प्यार न दिखे। प्यार में अगर पाना ही प्यार है तो शायद कृष्ण 'राधे' न कहलाते पर उसे झूठे दिखावे दिखाकर प्यार जताना प्यार नहीं छलावा है।

प्यार तो इबादत होता है। किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना, किसी के दिल को चोट न पहुंचाना। किसी को बदनाम न करना। किसी के ऊपर तेज़ाब न फेंकना पर अफ़सोस आधुनिकता का प्यार महज़ ज़िस्म से मोहब्बत तक ही सीमित-सा लगने लगा।

इंसान का ज़मीर और समाज की आबोहवा में न जाने कैसा नशा घुल-सा गया है कि एक पूर्ति मिल जाने के उपरांत दूसरा प्यार और ये क्रम बढ़ता रहता है। प्यार को समझने का सबका अपना-अपना नज़रिया है पर बस मेरा मानना है कि किसी को धोखा मत दो। उसकी आँखों में हमेशा मुस्कान देने की वज़ह बनो। चाहे आपकी वो प्रियतमा हो या माँ या फिर कोई भी इंसान।


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