तुम्हारे साथ चलते-चलते
तुम्हारे साथ चलते-चलते
1 min
874
हम परिपक्व होते जा रहे हैं। शाब्दिक त्रुटियों और लेखन के प्रति प्यार और भी गहरा होता जा रहा है, मानो जैसे किसी के कर में हिना धुल जाने के बाद अपने वर्ण का आफ़ताब छोड़ जाती है। अपने दिल की गहराईयों में छुपे राज़ और जज़्बातों को रूप मिल जाते हैं कहानी, कविता या साहित्य और लेखन की किसी भी विधा में अभिव्यक्त करने के लिए। समाज के हर एक प्रतिबिम्ब और हक़ीक़त को उकेरने का उसे बयां करने का उसपे ध्यानाकर्षण करवाने का वो मंच जहाँ हम स्वतंत्र हैं कुछ भी लिखने और व्यक्त करने के लिए। उसे करोड़ों लोगों द्वारा प्यार पाने के लिए...
