Rupa Bhattacharya

Drama

2.5  

Rupa Bhattacharya

Drama

प्यार कोई खेल नहीं

प्यार कोई खेल नहीं

4 mins
941


आज फिर कॉलेज जाते हुए मैंने उसकी जीप को मेन रोड पर दौड़ते हुए देखा।


“कैसा होगा देखने में? क्या वह कभी देखेगा मेरी ओर? शायद नहीं। वह शहर में पोस्टेड एक नया पुलिस अधिकारी है। भला वह क्यों देखेगा मेरी तरफ?”


शहर में काफी नाम है उसका, रोज उसके कारनामें छपते रहते है, शहर को उसने कुछ ही दिनों में बदल कर रख दिया है। शहर के नये ए.एस.पी. सूरज प्रताप सिंह से सभी छोटे- बड़े अपराधी डरते हैं।


हमारे कॉलेज जाने के रास्ते में ही पुलिस थाना पड़ता है, उसी से सटा हुआ पुलिस अधिकारी का ऑफिस भी था। रोज उधर से गुजरते हुए हुए ऑफिस की तरफ देखते हुए निकल जाती थी, काश एक बार उनका दीदार हो जाता। शायद कोई संयोग बन जाये।


और वह संयोग आ ही गया। एक दिन कॉलेज में कुछ लड़कें हमारी प्रधानाध्यापिका को डराने धमकाने पहुँच गए थे। उनके कुछ लोगों का एडमिशन करवाना था। कॉलेज में अफरा-तफरी मच गई थी। अति शीघ्र पुलिस दल पहुँचीं, और सभी लड़के पकड़े गए। पुलिस वर्दी में पहली बार मैंने सूरज प्रताप को देखा और देखते रह गई। लम्बा कद, सुडौल शारीरिक गठन, चेहरे पर मासूमियत, रौबदार आवाज, कुल मिला कर मनमोहक व्यक्तित्व। उसने जिस तरह से लड़कों को समझाया, मैं तो बिल्कुल मुग्ध हो गई थी। बिना चांटा, तमाचा के ही लड़कों के आखों में आंसू थे। मैं उसे एक टक देखते रही थी, नजरें मिलते ही मैं नजरें झुका लेती। उस दिन से वह मुझे और अच्छे लगने लगे थे।


उसे देखने के बाद जैसे मेरी कल्पना को पंख लग गए। दिन- रात उसी के ख्याल आते। सारा समय खुद को सूरज के साथ पाती। यहाँ तक की पढ़ते- पढ़ते भी उसी के ख्यालों में खो जाती।


कभी -कभी माँ टोकती “रुही ! तुम आजकल क्या सोचती रहती हो?”


मुझे किसी से मन की बात शेयर करने का साहस नहीं था। बेबी दीदी भी तो नयी-नयी एस.डी.ओ.बनी थी, और उनका पोस्टिंग दूसरे शहर में था। उससे फोन पर कभी- कभी ही बातें होती थी।


अब परीक्षा का समय नजदीक आते जा रहा था। मैंने अपने को काबू में रखने कि कोशिश करते हुए यथासंभव परीक्षा की तैयारी में व्यस्त हो गई। तीन पेपरों की परीक्षा अच्छे से हो गई।


चौथे पेपर के दिन मैं बस के लिए खड़ी थी, मगर बस न आई। सुनने में आया कि रास्ते में कोई एक्सीडेंट हो गया है, जिसके कारण उस तरफ से कोई गाड़ी आगे नहीं आएगी। मैं अब क्या करूँ? मुझे तो रोना आ रहा था। अचानक एक पुलिस जीप सामने आकर रूकी, ए.एस.पी.सूरज प्रताप खुद ड्राइव कर रहे थे। उसने मुझसे परीक्षा शुरू होने का समय पूछा, और घड़ी की ओर देखते हुए मुझे अंदर बैठ जाने को कहा। मैं मंत्र मुग्ध अंदर बैठ गई।


मेरे मुँह से कोई शब्द न निकला, केवल दिल जोरों से धड़क रहा था, जिसकी आवाज केवल मुझे सुनाई दे रही थी। रास्ता कैसे कटा, मालूम नहीं। अचानक एक धक्का लगा और जीप रूक गई। परीक्षा सेंटर आ चुका था। मैं उतरकर आगे बढ़ने ही बाली थी कि उसने मुझे टोकते हुए कहा "एक धन्यवाद तो देती जाओ, वैसे तुम बहुत स्वीट हो"


मैं अवाक होकर उसे देखती रही, मेरे मुँह से कोई आवाज नहीं निकली और जीप सामने से निकल गई। प्रश्न पत्र मेरे लिए आसान ही था। घर पहुंच कर मैं खुशी से फूली नहीं समा रही थी। मैं समझ गई कि उसकी तरफ से हाँ है। रात को सोते समय मैं उसके साथ चाँद की सैर तक कर आयी। बेबी दीदी आने वाली थी। पापा ने उनका रिश्ता एक जगह तय कर दिया था। मैंने सोचा बेबी दीदी को अपने हसीन प्रेम के बारे बता दूंगी। अब मैं कॉलेज खुलने का इंतजार करने लगी ताकि मैं भी अपनी हाँ उससे कह सकूँ।


बेबी दीदी आ गई, वह पहले से और खूबसूरत हो गई थी। अगले दिन मेहमान आने वाले थे, मैंने सोचा सब कुछ निपटा कर मैं अपने "सूरज" के बारे दीदी को बताऊंगी। अगले दिन सुबह मेहमान हमारे घर आये। उनमें सूरज भी थे। मैं धक से रह गई। माँ ने मुस्कराते हुए कहा सूरज प्रताप से बेबी की शादी तय हुई है।


मैं खुश हूँ या दुखी समझ ही न पाई। माँ, पापा, दीदी सब हँस रहे थे। सूरज जी कह रहे थे कि परीक्षा के कारण उस दिन उन्होंने मुझे कुछ बताना उचित न समझा था। मेरे कान से गर्म धुआँ निकल रहा था। दिल टूट चुका था। मैं किसी तरह खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। गनीमत थी कि मैंने दिल की बात दीदी से शेयर नहीं की थी। मैं बहुत अच्छी तरह से समझ गई थी कि प्यार कोई खेल नहीं है। कुछ बूझे मन से उनकी हँसी में मैं भी शरीक हो गई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama