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Vaishnavi Mohan Puranik

Romance Inspirational

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Vaishnavi Mohan Puranik

Romance Inspirational

प्यार का एहसास

प्यार का एहसास

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मम्मी-मम्मी चिल्लाते हुए श्रेया किचन में आई, मैनें पूछा क्या हुआ, क्यों शोर मचा रहीं हों।वह बोली देखों ना भैय्या मुझसे झगड़ रहे हैं। इनका कहना हैं, प्यार का मतलब हासिल करना हैं, आप जिससे प्यार करते हों वो आपको ना मिले तो प्यार करने का क्या फायदा, उसें किसी भी तरह अपना बनना ही प्यार हैं।प्यार में सही गलत कुछ नहीं प्यार का मतलब बस हासिल करना हैं। मैं इनकी बातों से बिल्कुल सहमत नहीं हूं , आप ही इन्हें समझाओं मैं बोली बिल्कुल सहीं प्यार का मतलब हासिल करना नहीं प्यार को जीना होता हैं। प्यार एक पवित्र भावना हैं, जो रिश्तों को जोड़ता हैं तोड़ता नहीं। हम सभी चाहते हैं, जिससे हम प्यार करते हैं, उसी के साथ सारी जिंदगी बिताए पर हमेशा ऐसा होता ही हैं ऐसा नहीं। कभी कुछ ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं, की हम जिससे प्यार करतें हैं, उसे अपना जीवनसाथी नहीं बना पाते। पर तब हमें उसे समझना हैं, हमें उसे विश्वास दिलाना हैं, हम साथ हों ना हो पर प्यार का एहसास हमेशा जिवंत रहेगा। इसलिए हमें प्यार को हासिल नहीं करना प्यार को जीना हैं, तभी हमारा अधूरा प्यार भी पूरा कहलाएगा। निखिल बोला मम्मी मैं आपकी बात समझ गया, श्रेया तुम ही सही हो मैं गलत इतना कहकर वो दोनो चले गए। और मुझे अतीत की सुनहरी यादें दे गए। मैने 12 वी की परीक्षा पास करके महाविद्यालय में दाखिला लिया था। सब कुछ नया-नया, नये दोस्त, नया माहौल मैं बहुत खुश थी।हमारा चार सहेलियों का गुट बन गया था उसमे मैं स्वयं शमिका और मेरी तीन सहेलियां आर्या, श्रुती और अनंदिता हम सभी बिलकुल मदमस्त बिदांस टाईप की थी। मौज मस्ती करना, लैक्चर बंक करना, गप्पे लड़ाना यहीं हमारा काम था। इसमें हम सभी को बहुत मजा आता था। इन्हीं दिनों मेरी मुलाकात अमित से हुई, जो महाविद्यालय में मेरे ही साथ पढ़ाता था। वह एकदम धीर गंभीर हर समय किताबों में डूबा रहता था, लेक्चर के बाद अक्सर पुस्तकालय में ही दिखता था।पहले-पहले तो वह मुझे कॉफी बोर लगता था। मैं अपनी सहेलियों के साथ मिलकर उसका मजाक उड़ाती थी, ये कितना पढ़ाकू हैं, जिंदगी तो मौज मस्ती का नाम हैं, उसका आनंद लेना चाहिए। पर धीरे-धीरे उसका यही स्वभाव मुझे उसकी ओर आकर्षित करने लगा। एक दो बार मैनें अपनी पढ़ाई के लिए उसकी मदद ली, फिर धीरे-धीरे हमारी बाते होनें लगी, अब मेरा मन भी पढाई में लगने लगा।अब मैं भी ज्यादा समय लैक्चर और पुस्तकालय में बिताती और अमित से इस सबंध में बाते करती।उसे हर विषय की गहरी जानकारी थी। साहित्य, समाज और राजनीति हर विषय पर उसकी गहरी पकड़ थी।अमित कविता, कहानी भी लिखा करता था, मैं ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ बिताने लगी, और ये दोस्ती धीरे धीरे प्यार में बदल गई। और अब महाविद्यालय के बाहर भी एक-दूसरें से मिलना, पानीपूरी खाना, सिनेमा देखना एक- दूसरें के साथ जिंदगी बिताने के सपने देखना यहां रोज का सिलसिला था।पर हमनें ठहरायां हम अपनी मर्यादा कभी पार नहीं करेंगे, महाविद्यालय की पढ़ाई पूरी होने के बाद अपने माता पिता को बताकर उनकी रजामंदी से इस रिश्ते को आगे बढ़ाएंगे। ऐसे ही हंसी खुशी से दिन बीत रहें थे।कॉलेज का अंतिम वर्ष था, इसी बीच घर में मेरी बड़ी बहन शरवरी की शादी तय हुई। सभी बहुत खुश थे, सगाई हुई अच्छे घर में रिश्ता तय हुआ था, लड़के वाले सज्जन और शालीन थे। मैनें और अमित ने ठहरा लिया था, हम दीदी की शादी के बाद घरवालों को अपने बारें में बता देंगे।धीरे-धीरे शादी की तारिख नजदीक आ रही थी, तैयारी जोरो शोरों से थी। हमारा परिवार मध्यम वर्गिय था, तो मेरा पिता ने दीदी की शादी के लिए थोड़ा सा कर्ज लिया था, घर की पहली शादी थी तो वह अपने तरफ से कोई कमी नहीं रखना चाहते थे। हम दों ही बहन थी, पर हमारे पिता ने कभी फरक नहीं किया। हमारी सारी जरुरते पूरी की, हमें अच्छे संस्कार दिए, हमें सबकुछ दिया।शादी को अभी आठ दिन बाकी थे, दीदी दर्जी के पास अपना लहंगा लेने के लिए गई थी, और रास्ते में वापस आते आते दीदी का बहुत बुरा एक्सीडेंट हो गया।एक ट्रक ने उन्हें टक्कर मार दी, दीदी हम सबको छोड़कर चली गई।हमारी सारी खुशियां मातम में बादल गई। जिस घर से डोली उठनी चाहिए थी, उस घर से अर्थी उठ रही थी। माँ पिताजी पूरी तरह टूटे गए। ़अविनाश जिनसें दीदी की शादी होने वाली थी, उन्हें कुछ होश ही ना था उनकी तो जैसे सारी दुनिया ही खत्म हो गई।इसी बीच एक दिन अविनाश के पिताजी हमारे घर आए, उन्होंने मेरे पिताजी से कहां जो कुछ हुआ वहां बहुत ही बुरा था।दोनो परिवार का आर्थिक नुकसान भी हुआ अविनाश भी अब उदास-उदास रहने लगा हैं। इस सबका एक बीच का रास्ता हैं, हम शमिका की शादी अविनाश से कर देते हैं। जिससे हम सबकों इस दुख से बाहर आने का रास्ता मिलेगा और अविनाश को भी सहारा मिलेगा, और दोनो परिवारों का सबंध बना रहेगा। उनकी बाते सुनकर मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई! मुझे समझ ही नहीं आ रहा था, क्योंकि मैं अमित से प्यार करती थी तो फिर अविनाश से शादी कैसे कर सकती थी। परंतु उनका यह विचार मेरे पिताजी को पसंद आया, उन्हें माँ से सलाह मशवरा कर बिना मेरी मर्जी जाने शादी के लिए हां कह दी। सब फिर से शादी की तैयारी में लग गए। किसी के पास मेरी बाते सुनने के लिए समय ही नहीं था। ऐसे में मैने एक दिन महाविद्यालय का काम हैं कहकर घर से निकली, और अमित को फोन कर उसें मिलने बुलाया और उसें सारी बात बता दी। अमित ने शांती से मेरी बात सुनी। मैने अमित से कहां अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं हैं, पिताजी ने मुझसे पूछे बिना ही मेरा रिश्ता अविनाश से तय कर दिया, हमें भागकर शादी कर लेनी चाहिए। अमित जो अब तक शांत से मेरी बाते सुन रहा था, वह मुझसे बोला तुम्हारे माता पिता तुम्हारी जिंदगी में कब से हैं, और मैं कब से मैं बोली तुम पिछले तीन सालों से और मेरे माता पिता जब से मैं दुनियां में आई तबसे मेरे साथ हैं। पर तुम ये क्यों पूछ रहें हों, क्योंकि शमिका तुम प्यार का मतलब ही नहीं समझी। मैं पिछले तीन सालों से साथ हूं, पर वो तो जन्म के समय से हां ये सच हैं की मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, और तुम्हें अपना जीवनसाथी बनना चाहता हूँ। पर यूं किसी को दुखाकर नहीं, तुम मेरे खातिर उन्हें छोड़ना चाहती हो हर सुख-दुःख में तुम्हारें साथ रहें। तुम्हारीं हर जरुरतों को पूरा किया, तुम्हारी तबियत खराब होने पर रात-रात जगे, तुम्हें अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाई, तुम्हें काबिल बनाया।क्या उनका प्यार कभी कम था। तुम्हारे इस फैसले से उन्हें कितनी चोट पहुंचेगी। क्या बितेगी उन पर क्या हम उन्हें दुखाकर कभी खुश रह पाएंगे। प्यार दिलों को जोड़ता हैं, रिश्तों को तोड़ता नहीं। क्या वों कभी हमें माफ करेंगे।अगर एक फैसला उन्होंने तुम्हें पूछे बिना लिया तो क्या ये गलत हैं। तुम्हारा अच्छा बुरा वो तुमसे ज्यादा समझते हैं, उन्होंने तुमसे बिना पूछे ये फैसला इसलिए लिया क्योंकि उन्हें विश्वास हैं, उनकी बेटी कभी उनके मान, सम्मान को ठोस नहीं पहुंचाएगी।उनकी ताकत बनेगी, क्या तुम उनका ये विश्वास तोड़ना चाहती हों। इस वक्त तुम्हें उनका सहारा बनाना हैं, बिखरें हुए रिश्तों को संभालना हैं। शमिका मैने हमेशा तुमसे प्यार किया, और आगे भी करुंगा। मैं हमारे रिश्ते का सम्मान करता हूं, मैं नहीं चाहता कोई हम पर उंगली उठाए। तो क्या हुआ अगर हम जिंदगी भर साथ ना चले, पर जब भी कभी रास्ता भटके तो हमारी अच्छी यादे हमारा मार्गदर्शन करे। ना की वो टीस बनकर हम सब के दिल में रहें प्यार मतलब पाना नहीं जीना हैं।प्यार एक विश्वास हैं, भरोसा हैं, इस तरह सबका भरोसा तोड़कर मैं हमारे रिश्ते पर दाग लगने नहीं देना चाहता।मैं चाहता हूं, हमारा प्यार ऐसा ही पवित्र बन रहें।जिंदगी में कभी भी अगर एक दोस्त के नाते तुम्हें मेरी जरुरत हो तो मैं जरुर आऊंगा। पर इस तरह भागकर सबकुछ खत्म हो जाएगा।शरवरी तो इस दुनिया से जा चुकी हैं, पर हमारा ये फैसला और भी कई जिंदगी तबाह कर देगा।तुम एक बार अपने दिल से पूछो तुम्हें खुद उत्तर मिल जाएगा।अमित की बाते सुनकर मेरी आँखो सें आंसू बहने लगे।मैं समझ चुकी थी, मुझे क्या करना होगा।क्योंकि ये फैसला लेकर मैं प्यार का विश्वास ही खत्म कर देती।वो प्यार जो मैने अमित से किया, वो प्यार जो मेरे माता पिता ने मुझसे किया, वो प्यार जो मैने शरवरी दीदी से किया। मुझे आज गर्व हो रहा था, की मैने अमित से प्यार किया उसने मुझे प्यार का सही मतलब सिखाया। प्यार का मतलब हैं त्याग, समर्पण, विश्वास, भरोसा अब मैं जान चुकी थी, मुझे क्या करना हैं।मैं अपने प्यार पर कलंक नहीं लगने देना चाहती थी, उसका एहसास जिवंत रखना चाहती थी। वो मेरी और अमित की आखिरी मुलाकात थी, पर आज भी वो मुलाकात मेरे दिल में खुबसूरत यादे बनकर जिवंत हैं। मैं घर वापस आई, खुशी-खुशी अविनाश से शादी की, और उन बिखरें हुए रिश्तों की एक माला बनकर उन्हें फिर समेटने की कोशिश करने लगी।धीरे-धीरे हम सभी की जिंदगी में फिर हंसी खुशी लौट आई, हम सभी पहले की तरह खुशी से रहने लगे। मेरे पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया, उन्हें आज मुझे अपनी बेटी कहनें पर बहुत ही नाज होता हैं।शादी के बाद मैने अपनी जिंदगी में अविनाश के रुप में एक अच्छा जीवन साथी पाया।अविनाश से मैने वो सब कुछ पाया, जो एक पत्नी अपने पती से चाहती हैं। और हमारी ये प्यारी की बगिया निखिल ओर श्रेया के आने से और खिली उठी।मेरा वो एक गलत कदम जिससे सबकी जिंदगी बर्बाद हो जाती, अमित के कारण मैं एहसास कर पायी।वरना आज क्या से क्या हो जाता।आज भी मैं इन खुशियों के लिए दिल ही दिल में अमित को धन्यवाद देती हूं, और उसकी खुशियों के लिए भगवान से प्रार्थना करती हूं।इतने में ही मुझे अविनाश ने आवाज दी, शमिका तुम्हारी चाय बनी या नहीं।मैं यादों के झरोखे से बाहर आ गई, इतने में ही पीछे से आकर अविनाश ने मुझे बाहों में ले लिया।मैनें बोला अब हमारे बच्चे बड़े हो रहें, वो देखेंगे तो क्या बोलेंगे।वो बोले अभी तो तुम बच्चों को सीखा रहीं थी प्यार को जीना चाहिए।मैं भी तुम्हारें साथ प्यारें के उन्हों पलों को जीना चाहता हूं, ताकी उसका एहसास हमेशा जिवंत रहे। मैंने मुस्कराते हुए अविनाश को गले लगा लिया, जिससे हमारे प्यार की बगिया हमेशा यू हीं महकती रहें।


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