खोया हुआ बचपन
खोया हुआ बचपन
अब शमिका के रोने की आवाज बंद हो गई थी। अब न वो कुछ मांगती, न किसी बात के लिए जिद करती। शमिका हमारे पड़ोस में रहनी वाली चार साल की छोटी बच्ची थी,छ: माह पूर्व ही उसके पिता का देहांत हुआ था। शमिका एक मासूम प्यारी सी बच्ची थी। दिनभर पुरे मोहल्ले में चहकती फुदकती रहती, अपनी तोतली जुबान से सबका दिल जीत लेती। हर कोई सुबह से बस शमिका को ढूंढता,सभी को उसको देखने की चाह रहती। बड़े भी उसके साथ बच्चे बनकर खेलते। छोटे बच्चों के बीच तो उसके साथ खेलने की होड़ लगी रहती । अगर कोई उदास बैठा हो तो शमिका को उसके पास भेज दो, उसकी उदासी झट से दूर हो जाती। पूरे मोहल्लें की जान बसती थी उसमें। पंरतु जब से शमिका के पिता का देहांत हुआ, तब से वो प्यारी शमिका कहीं खो गई। उसकी स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा दी गई, अब न उसे घर से बाहर निकलने दिया जाता न किसी के साथ खेलने दिया जाता।वो हंसती खेलती प्यारी शमिका अब किसी को नजर नहीं आती। कोई उसे मिलने भी जाता तो शमिका की दादी उसे किसी से न मिलने देती पर कोई उन्हें कुछ न कह पाता क्योंकि सभी उनसे डरते थे।
पहले-पहले तो शमिका बाहर जाने के लिए रोया करती थी, बच्चों के साथ खेलने के लिए जिद करती थी। पर अब धीरे-धीरे वो शांत हो गई न रोती न किसी बात के लिए जिद करती, जैसे वक्त ने उसे सिखा दिया वो जिन बातो के लिए जिद कर रही हैं वो उसे कभी नहीं मिलेगी। अब शमिका बालकनी में बैठी चुपचाप सब देखती रहती। और अपनी मासूम नजरों से मानो सबसे पूछती उसने ऐसा क्या गुनाह किया जो उसका हंसता खेलता बचपन कहीं खो गया। हम सब उसे अपनी बेबस पथराई नजरों से देखते पर उसके परिवालों की सख्ती के कारण कोई कुछ न कर सका। धीरे-धीरे वक्त बितता गया शमिका बड़ी हो गई, आज वो अपनी जिंदगी में कामयाब हैं। उसकें पास सब कुछ हैं,पर आज भी कहीं न कहीं उसके मन में अपने खोए हुए बचपन की एक कसक बाकी थी।
