आषाढ़ी वारी
आषाढ़ी वारी
आषाढ़ी वारी की परंपरा महाराष्ट्र में पुरातन काल से चली आ रही है। आषाढ़ी एकादशी के लगभग एक महिने पूर्व वारी की शुरुवात दिण्डी के रुप में होती हैं, वारी में प्रतिवर्ष महाराष्ट्र के हर जिले,गाँव से भाविक भक्त शामिल होते हैं, जिन्हें वारकरी कहां जाता हैं।वारकरी भक्त हरीकिर्तन के साथ विठ्ठल विठ्ठल जपते हुए नाचते गाते पदयात्रा करते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं ।जिसमें आळंदी से संत ज्ञानेश्वर महाराज, देहू से संत तुकाराम महाराज, त्रयंबकेश्वर से संत निवृत्तिनाथ महाराज, शेगांव से संत गजानान महाराज की पालखी प्रमुख हैं। हजारो की संख्या में वारकरी भक्त इसमें शामिल होकर पंढरपुर विठ्ठल दर्शन के लिए पहुंचते हैं। सर्वप्रथम वारी वर्ष 1685 में संत तुकाराम महाराज के पुत्र नारायण महाराज ने की थी। वो देहू से संत तुकाराम महाराज और आळंदी से संत ज्ञानेश्वर महाराज की पादुका लेकर पैदल पंढरपुर गए थे, तब से यह वारी अनवरत जारी है। कई परिवारों में वारकरी भक्त पीढ़ीगत परंपरानुसार प्रतिवर्ष इस वारी में शामिल होते हैं। जिस जिस मार्ग से यह पालखी गुजरती हैं, वहां स्थानीय लोगो द्वारा पालखी का एवं में वारी में शामिल सभी वारकरी भक्तों का हर्षोल्लास के साथ स्वागत किया जाता हैं।आज वारी की जो रचना हैं, वो सातारा जिले के आरफळ गांव के देशमुख हैयतबाबा की हैं। उसी रचना के अनुसार सभी दिण्डीयां पालखी के आगे पिछे चलती हैं।आज 200 से अधिक दिण्डी प्रतिवर्ष वारी में शामिल होती हैं। शास्त्रों में कहां भी गया हैं
"संसारी जे आले प्राणी
त्यांनी पंढरी पहावी नयनी"
वारी की समाप्ती आषाढ़ी एकादशी को होती हैं, इस दिन रात सवा एक बजे पंढरपुर विठ्ठल मंदिर में भगवान विठ्ठल की पूजा की जाती हैं, पूजा का मान महाराष्ट्र राज्य के तात्कालीन मुख्यमंत्री एवं वारकरी भक्तों में से एक दम्पति को दिया जाता हैं विठ्ठल भगवान महाराष्ट्र के आराध्य देव हैं, जिन्हें "विठू माऊली"भी कहां जाता हैं। महाराष्ट्र सहित विश्व के कोटी करोड़ मराठी जन विठ्ठल भगवान को अपना मायबाप मानते हैं प्रसिद्ध मराठी कवि गुरु ठाकुर ने तो बहुत ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया हैं
"भीडे आसमंती ध्वजा वैष्णवांची
उभी पंढरी आज नादावली
तुझे नाव ओठी तुझे रुप ध्यानी
जीवाला तुझी आस गा लागली
जरी बाप सा-या जगाचा परी
तू आम्हा लेकरांची विठू माऊली"
इसलिए एक बार अवश्य इस वारी में शामिल होकर पंढरपुर जाकर विठ्ठल भगवान का दर्शन करना ही चाहिए। पिछले दो वर्षो से कोरोना महामारी के चलते वारी संभव नहीं हो पाई, प्रमुख स्थानों से पालखियां एक दिन पूर्व सीमित संख्या में बस द्वारा पंढरपुर के लिए रवाना हुई। भगवान विठ्ठल के चरणों में यही प्रार्थना हैं कोरोना का यह संकट टले और अगले वर्ष से हमें पुन्हा इस पारंपरिक वारी का सौभाग्य प्राप्त हो।
