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chandraprabha kumar

Classics

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chandraprabha kumar

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पुराणों के वक्ता- सूत जी

पुराणों के वक्ता- सूत जी

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एक समय की बात है महाराज पृथु ने यज्ञ का आयोजन कर रखा था। उसमें देवराज इन्द्र को हविर्भाग देने के लिए सोमरस निचोड़ा जा रहा था।ऋत्विजों से एक असावधानी यह हो गई कि इन्द्र के हविर्भाग में बृहस्पति कर हविर्भाग गलती से मिल गया । इसे ही इन्द्र को अर्पण कर दिया गया।और इसी हवि से तेजस्वी सूत की उत्पत्ति हुई । उनका नाम रोमहर्षण रखा गया ।

शास्त्रों में इन्द्र को क्षत्रिय और बृहस्पति को ब्राह्मण माना गया है। इनके हविर्भाग के सांकर्य से उत्पन्न रोमहर्षण को लक्षणा से सूत कहा गया है। अग्नि से उत्पन्न होने के कारण रोमहर्षण अयोनिज थे। 

रोमहर्षण ने व्यास से शिक्षा - दीक्षा पाई। महर्षि व्यास ने रामहर्षण को अठारहों पुराण पढ़ाये। तीक्ष्ण प्रतिभा होने के कारण रोमहर्षण ने सभी ग्रंथों को अविकल कंठस्थ कर लिया। महर्षि व्यास रोमहर्षण पर पुराणों का भार डालकर इनकी सुरक्षित मुक्त हो गये। 

रोमहर्षण लोगों को पुराण सुनाने लगे। जब वे पुराण सुनाने लगते थे, तब श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। क्षण क्षण में उन्हें रोमांच हो आया करता था। यह लोकोक्ति-“ यथा नाम तथा गुण”-रोमहर्षण पर पूर्णतया चरितार्थ हुई।

एक बार नैमिषारण्य में दृषद्वती नदी के तट पर मुनियों ने बारह वर्षों में पूर्ण होने वाले सत्र का आयोजन किया था। इस सत्र में साठ हज़ार ऋषिउपस्थित थे ।ऋषि शौनक इन सब के नायक थे। ऋषियों ने इस सत्र में रोमहर्षण जी को आमंत्रित किया ।जब रोमहर्षण जी वहॉं पधारे तो उन्हें अत्यधिक सम्मान दिया गया ।मुनियों ने रोमहर्षण जी को श्रद्धापूर्वक व्यास के आसन पर बैठाया और वे इनसे श्रद्धा के साथ पुराण सुनने लगे। 

रोमहर्षण ने मुनियों को ब्रह्म पुराण ,वायु पुराण ,ब्रह्माण्ड पुराण ,नारद पुराण ,ब्रह्म वैवर्त पुराण ,गरुड़ पुराण ,और भागवत पुराण आदि सुनाये। जब वे ग्यारहवॉं पुराण सुना रहे थे तो बलराम जी वहॉं आए। उन्हें देख कर सब ऋषि उनके सम्मान में उठकर खड़े हो गए और उन्हें अभिवादन किया। पर रोमहर्षण जी अपने आसन पर बैठे रहे। यह देख बलराम जी क्रोधित हो गये और उनके द्वारा रोमहर्षण जी की मृत्यु हो गई। 

 ऋषियों को तो सभी पुराण सुनने थे। अतः उन्होंने रोमहर्षण जी के पुत्र उग्रश्रवा जी को व्यास आसन पर बैठाया। और अवशिष्ट पुराणों को उग्रश्रवा जी से सुना। उग्रश्रवा के उनका पुत्र बतलाने के लिये। “ रौमहर्षणि” और “ सौति” शब्दों से भी पुकारा गया। 

बाद में पुराण लेख बद्ध हुए। आज पुराणों का प्रचुर साहित्य भंडार हमारे सामने है। 


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