पतंगे
पतंगे
आकाश मे पतंगे लहरा रही थी रंग बिरंगी। मुकंद भी अपनी पतंग को पेंच दे रहा था, आकाश की ऊँचाइयों को छूने के लिये। मेरा चौदह साल का बच्चा मुकंद, हमेशा ऊँचे सपने देखता, देखता ही नहीं, कमर कस लेता उसे पूरा करने के लिये। एक जुनून,एक ज़िद उसे हासिल करने के लिये, पागलों की तरह जुट जाता। हमे गर्व रहता उसपर पर क्या करे, कुछ नम्बरों से, कुछ पॉइंट से असफलता उसके हिस्से आती। अक्सर ही ऐसे होता। लगता जैसे उसके भाग्य का चमकता सूर्य अक्समात दूसरी राशि पर बैठ जाता है।
बालक ही तो है, निराशा उसे मेरे आँचल की ओर खींच लाती। मुझे डर सताता, उसके जीवन में आती बाधाएं,असफलताएं और उच्च आकाँक्षाओं के चक्रव्यूह में फँस कर कहीं वो अवसाद के घेरे में न चला जाये। आकाश को गले लगाने को आतुर बहुतेरी पतंगों की ओर मुकंद ने भी अपनी पंतग को मोड़ दिया। दूसरी पतंगे उसकी पतंग की ओर ऐसे झपटी जैसे चीलें नन्ही चिड़िया पर झपटे। मैने अपनी आँखें बन्द कर ली। फिर एक सपना टूटा। एकअभिमन्यु की फिर हार। मुकंद खुशी से चिल्लाया-'माँ " मैने सोचा शायद चिड़िया जीत गई। पर मुकंद के हाथ में केवल माँझा था। मेरे गले से लिपट गया बोला--"अरे अम्मा। मेरी चिड़िया लड़ी तो बहादुरी से। अब जीवन में जीत हार होती रहती है, मायने रखता है सपने देखना और जी जान से उसे पूरा करने की कोशिश करना।"