कवि हरि शंकर गोयल

Comedy Fantasy Inspirational

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कवि हरि शंकर गोयल

Comedy Fantasy Inspirational

प्रतिलिपि में लेखिकाओं की रसोई

प्रतिलिपि में लेखिकाओं की रसोई

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लॉकडाउन के कारण बाहर का खाना खाने को मिल नहीं रहा था। घर का खाना खा खाकर बोर भी हो चुके थे। अब लॉकडाउन खुल गया था और आने जाने की आजादी मिल गई थी। हमारे प्रतिलिपि के बहुत सारे मित्रगण आज एकत्रित हो रहे थे। अब तक केवल प्रतिलिपि पर अपनी रचनाओं के माध्यम से ही संवाद होता था मगर आज सब लोग एकत्रित हो गए थे। इनमें कुलदीप तोमर जी, राजीव रावत साहब, आनंद जलालपुरी जी, भरत सिंह रावत जी, हरिओम शर्मा जी, राजेश पाण्डेय घायल जी, अनिल साहनी जी के साथ और भी मित्र थे। जैसे कि हरिओम शर्मा जी की आदत है, हरियाणा के हैं न इसलिए हंसी मजाक के बिना तो कोई बात कर ही नहीं सकते हैं। कहने लगे "यार, खाली बातों से कै पेट भरै है ? खाणे पीणे का जुगाड कठै है" ? इतना कहते ही बाकी भाई लोग भी हां में हां मिलाते नजर आए। राजीव रावत साहब तो अपनी बात केवल "दो शब्दों" में ही कहते हैं तो इसलिए उन्होंने दो शब्द ही कहे "बहुत बढ़िया"। राजेश पाण्डेय घायल साहब सबको अपनी रचनाओ से घायल करते रहते हैं इसलिए वो घायल करने के अंदाज में अपना "तजुर्बा" शायराना अंदाज में प्रस्तुत करते हुए कहने लगे "यारों की महफ़िल जमीं है 

चलो कुछ अच्छा खाना हो जाए"।

हम कुछ देर और बातें करते,इतने में दिवा शंकर जी भी आ धमके। उन्होंने दो ही शब्द सुने थे "महफ़िल" और "खाना"। खाने का नाम सुनकर ही उनके मुंह में पानी आने लगा। कहने लगे "यारों, अकेले अकेले हड़प मत लेना नहीं तो फिर देख लेना" ?। वैसे वो ऐसे कभी नहीं बोलते हैं लेकिन आज शायद भूख के मारे वे ऐसा बोल रहे थे। और भी सब दोस्तों ने कह दिया कि खाना तो आज मस्त होना चाहिए बिल्कुल वैसा जैसे मां के हाथ का बना हुआ होता है। 

हमने कहा "भाई लोगो, आप सब तो बहुत विद्वान लोग हो और प्रतिलिपि के नियमित लेखक हो। आपको तो पता ही होगा कि आज प्रतिलिपि रूपी महल में सारी लेखिकाओं ने अपनी अपनी रसोई में भांति-भांति के पकवान बनाकर तैयार किए हैं ‌। चलो, आज प्रतिलिपि की लेखिकाओं के घर चलते हैं। वे भी तो मां हैं, चाहे छोटे बच्चों की ही होंगी भले ही। आज उन मांओं के हाथ के खाने का आनंद लेते हैं। 

यह प्रस्ताव सबको बहुत पसंद आया। सबके मुंह में पानी भी आने लगा। हमने कहा "सबसे पहले अनन्या श्री की रसोई में चलते हैं। देखते हैं उन्होंने क्या क्या बना रखा है" ? 

हमने सबको समझा दिया कि हम छोटे बच्चे बनकर जा रहे हैं इसलिए कोई शैतानी नहीं होनी चाहिए। पहले ही बहुत विलंब हो चुका है और भूख भी बहुत जोरों की लग रही है इसलिए चलो, जल्दी से आ जाओ। कहीं ऐसा ना हो कि "लंका लुट जाए और हम देखते रह जाएं"।

सबसे पहले अनन्या श्री की रसोई पर धावा बोला गया। अनन्या श्री को नमकीन बहुत पसंद हैं इसलिए उन्होंने गोलगप्पे, दही भल्ला, राज कचौरी वगैरह बना रखी थीं। उनकी आदत है कि वे बिना मान मनुहार के खाना खिलाती ही नहीं हैं। अतः जी भरकर खिलाया। आनंद आ गया। 

फिर श्वेता विजय जी की रसोई में पहुंचे। देखा तो छप्पन भोग बने थे। बाहर तक खुशबू आ रही थी। हमारे तो मुंह में पानी आने लगा था। ये सारी लेखिकाएं मां भी तो हैं न। और हम सब लोग बच्चे बनकर गए थे इसलिए इन्होंने ने भी लाड़ कर करके हमें भोजन करवाया। मां के हाथ का भोजन तो अमृत समान होता है। इसलिए पता ही नहीं चला कितना खा गए। 

अब बारी अनीता यादव जी की रसोई की थी। इनकी रसोई तक पहुंचते पहुंचते तो पेट आधा भर गया था लेकिन इनकी रसोई से आने वाली महक कुछ ऐसी थी कि फिर से भूख लग आई। तरह तरह के पकवान बना रखे थे इन्होंने। खीर, रसमलाई, मालपुआ तो स्वीट्स में ही थे। नमकीन में दही महफ़िल, आलू टिक्की, पनीर टिक्का, पिज्जा वगैरह तैयार कर दिए थे। मजा आ गया ‌‌। हरिओम शर्मा जी तो वहीं पसर रहे थे लेकिन हमने कहा कि अभी तो और भी रसोई बाकी हैं। अगर यहीं पसर गए तो फिर बहुत सारी डिशेज से वंचित रह जाओगे। जैसे ही उन्हें लगा कि आगे और भी बढ़िया माल मिलने वाला है, तुरंत हमारे साथ हो लिए।

आगे अंजू दीक्षित जी, अलका माथुर, अपनेश मंजीत जी और आशा गर्ग मैम ने एक साथ रसोई तैयार की थी। हमें बड़ा आश्चर्य हुआ कि इन्होंने अलग-अलग रसोई न बनाकर एक ही रसोई क्यों बनाई ? बाद में पता लगा कि ये सब "अ" अक्षर वाली हैं इसलिए इन्होंने एकसाथ ही रसोई तैयार की थी। आशा गर्ग मैम इतनी ममतामई हैं कि एक रोटी की जगह दो खिलाती हैं। अंजू दीक्षित मैम जब लाल रंग की साड़ी पहनकर भोजन सर्व करतीं हैं तो डर लगता है कि कहीं उन्हें किसी की नजर ना लगे जाए। अन्नपूर्णा देवी जैसी लगती हैं। अलका माथुर जी ने बच्चों से लेकर रिटायर लोगों की पसंद की डिशेज तैयार की हैं। हम बच्चों को तो पाश्ता, पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन, आइसक्रीम बहुत पसंद आतीं हैं इसलिए ये डिशेज विशेष कर बनाई हैं। अपनेश मंजीत जी ने सलाद पर पूरी कलाकारी की है। 

शिल्पा मोदी जी की रसोई थोड़ी सी ही आगे है बस। उन्होंने गरमागरम रोटी, मिस्सी, तंदूरी, नान, फुलके, सब बनाईं हैं और अलग-अलग तरह की दाल भी तैयार की है। कोई प्याज लहसुन वाली तो कोई बिना प्याज़ लहसुन वाली। दिवाशंकर जी को बिना प्याज़ लहसुन की पसंद है उन्होंने वही ली मगर हम तो प्याज लहसुन का लेते हैं इसलिए बढ़िया तड़के वाली आई हमारे पास। 

रीता गुप्ता रश्मि मैम तो कोटा की हैं इसलिए उन्हें कोटा की कचौरी, पचरंगी कत से विशेष लगाव है और उन्होंने वही तैयार भी किया है। बहुत स्वादिष्ट हैं दोनों चीजें। जब कत बना है तो बाफला तो बनेंगी ही इसलिए वो भी बहुत शानदार हैं। 

किरन पांडे, संगीता पाठक, सुषमा तोमर, मीनू वर्मा, सरोज पाल, पूनम तिवारी, ज्योति पांडे, सीमा ओझा, शबाना परवीन, मैथिली सिंह मैम के साथ और भी मैम ने अपनी अपनी रसोई तैयार की हैं। कृष्णा खंडेलवाल जी, निधि सहगल जी और दूसरी मैम अभी रसोई तैयार कर रहीं हैं। वे हम बच्चों के स्वास्थ्य का बहुत ध्यान रखतीं हैं। उन्हें पता है कि आज हम कहीं और दावतें उड़ा रहे हैं तो उन्होंने कल का न्यौता दिया है। कल उनकी रसोई की बानगी ली जाएगी। 

तो मित्रो, आज इतना ज्यादा खिला दिया है ना कि अब तो बैठा भी नहीं जा रहा है। इसलिए अब सोना पड़ेगा। तो सभी मैम को अच्छा स्वादिष्ट खाना खिलाने के लिए धन्यवाद और कल के लिए बाकी मैम को शुभकामनाएं। 

दिनांक 11.6.21 

आज सुबह उठने की इच्छा नहीं हो रही थी। कारण भी बताना पड़ेगा क्या ? अरे, कल बताया था ना कि प्रतिलिपि रूपी महल में बड़ी बड़ी लेखिकाओं ने अपनी अपनी रसोई सजाई थी भांति-भांति के पकवानों से और हम बच्चों को आमंत्रित किया था खाने के लिए। प्रतिलिपि पर कहा गया था कि मां के हाथ का खाना अमृत होता है। सभी लेखिकाएं कह रहीं थीं। तो हमने भी कह दिया कि यदि अमृत है तो हम सब बच्चों (लेखकगण) को खिलाकर अमर कर दो हमें। सभी लेखिकाएं अपना ममत्व प्रदर्शित करने को तत्पर हो गई। तो हमारी बाल टोली भी तैयार थी खाने के लिए। भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़े। यद्यपि सभी ने हमें बहुत समझाया कि आराम से खाओ, बहुत खाना है, सबको मिलेगा। पर बच्चों को सब्र होता है क्या ? जोरदार धावा बोला और सब खाना साफ़ कर आये। उसके बाद जो नींद आई तो अब उठने का मन ही नहीं कर रहा है। 

मैं अभी सोच ही रहा था कि आज भी रसोई तैयार हो रही है। कुछ माता बहनें तो इसी बात पर हमसे नाराज़ हैं कि हमारे यहां क्यों नहीं आये खाने के लिए ? अब उनको कैसे समझाता कि हमारे पेट में ही खाने को जगह नहीं बची है तो कैसे खायें ? तो आज डबल तैयारी करनी थी। पहली तो कल के माल को पचाने की और दूसरी आज अधिक से अधिक माल "कूटने" की। इसलिए सुबह से ही नींबू पानी चल रहा है। दिन भर का उपवास और डिनर में जमकर धमाल। आज का कार्यक्रम यही बनाया है। 

अचानक खयाल आया कि हमारे साथियों के क्या हाल चाल हैं, जरा मालूम कर लें। हरिओम शर्मा जी को फोन लगाया तो मालूम चला कि अभी सो ही रहे हैं। कल कुछ ज्यादा ही "दबा" गये थे। पंडित जो ठहरे। मीठा देखा नहीं कि आपा खो देते हैं। घर से बताया गया कि रात से ही उनके पेट में गुड़गुड़ हो रही है। हमें महसूस हो गया कि आज ये दावत खाने लायक नहीं हैं। 

दिवा शंकर जी तो शुद्ध वैजिटेरियन हैं इसलिए वे तो चलेंगे ही ? ऐसा सोचकर उनको फोन लगाया तो कहने लगे "सर, मैं बहुत सीमित मात्रा में भोजन लेता हूं। कल के भोजन से मेरा तो एक सप्ताह का कोटा पूरा हो गया है। इसलिए आज मुझे तो माफ़ कर दो"। हमने भी तुरंत कह दिया "तथास्तु"। 

अब राजीव रावत जी की बारी थी। हम उनको फोन लगाने ही वाले थे कि राजेश पांडे "घायल" जी आ गये और कहने लगे "रावत जी को फोन लगाने से कोई फायदा नहीं है" 

"क्यों" 

"अरे, आपको पता नहीं है कुछ भी" 

मुझे लगा कि यार, ये मेरे साथ ही क्यों होता है ? सारी बातें सबको पता होती है, पर मुझे नहीं। झुंझलाकर कहा "अब बता भी दो कि सबसे तेज चैनल क्या कहता है" ? 

"अरे भाईसाहब, उनके घर में तो कोहराम मचा हुआ है। उनकी श्रीमती जीं उनकी 'क्लास' ले रहीं हैं" 

"अच्छा ! क्या हो रहा है वहां पर ? वो ऑनलाइन वाली क्लास या 'खिंचाई' वाली क्लास" ? 

"भाईसाहब, बीवियां तो एक ही क्लास लेतीं हैं। और उनकी एक ही क्लास बहुत भारी भरकम होती है" और वे हंसने लगे। फिर कहने लगे "एक बार मेरी भी क्लास ले ली थी मैडम ने"। 

मैंने उन्हें टोकते हुए कहा "अपना राज खुद ही क्यों खोल रहे हो ? लोग तो छीछालेदर करने पर वैसे ही आमादा रहते हैं। इसलिए शिवजी की तरह सारा 'विष' अपने गले में ही गटकाए हुए रहो। इसी में भलाई है। हां तो बताओ कैसी क्लास थी रावत साहब की" ? 

"उनकी श्रीमती जीं कहने लगीं कि जब दावत खाने ही जाना था तो सिर्फ एक दिन में ही क्यों खाई सारी ? जितनी रसोई, उतने दिन तो होने चाहिए थे न ? फिर, मेरे लिए क्यों नहीं लाये ? जब शादी हुई थी तब तो वचन भरे थे कि अकेले अकेले कुछ नहीं करेंगे, मगर यहां पर दावत देखी नहीं कि अकेले अकेले ही उड़ा आये " ? 

"अरे, ये तो बहुत बुरा हुआ रावत साहब के साथ। फिर क्या हुआ" ? 

"होना क्या था ? पूरे सात दिन का उपवास बता दिया। अब वही कर रहे हैं"। 

हमें रावत साहब से बहुत हमदर्दी है मगर हम कर कुछ नहीं सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अपील कहीं भी नहीं होती है। इसलिए उनके लिए भगवान से प्रार्थना करने के अतिरिक्त और कुछ कर नहीं सकते हैं। 

इतने में सामने से अरविंद कुमार सिंह, राजेश, उपेन्द्र कुमार सिंह, रूप नारायण जी आ गये। सबने पहले तो हमें उलाहना दिया कि कल की दावत में हमें साथ क्यों नहीं लेकर गये थे। अब हम क्या जवाब देते। हमने कहा "कल की बात कल गई। आज की बात करो। आज चलेंगे सब लोग। शाम को आठ बजे आ जाओ सब लोग। लेकिन एक बात ध्यान रखना। अभी से नींबू पानी शुरू कर देना और दिन भर कुछ नहीं खाना। ये लेखिकाएं बड़े लाड़ दुलार से भोजन करवातीं हैं। एक की जगह दो देतीं हैं। इसलिए पूरी तैयारी के साथ आना। और सभी लोग तैयारी करने चले गए। 

जब शाम को सब लोग एकत्रित हुए तो पता चला कि सब लोग एक एक "लोटा" भी साथ लाए थे। हमने पूछा कि लोटा क्यों तो वे बोले "पहले हमारे गांव में 'जीमण' में जाते थे तो लोटा लेकर जाते थे। खाने के बाद पत्तल में जो मिठाई बचती उसे लोटा में डालकर लाते थे "। मैंने कहा, ये तो बहुत बढ़िया आइडिया है। आज दावत उड़ाओ और कल घर बेठे मिठाई खाओ। भई वाह! मजा आ गया। हम भी एक बड़ा सा लोटा लेकर चल दिए। 

पहले कल की बाकी रसोई में जाना था। निधि सहगल जी हमारा इंतजार ही कर रहीं थीं। विदेश में रहतीं हैं तो वहीं की डिशेज भी बनाई उन्होंने। नाम भी बड़े "ऊचकबंड" थे जो हमारे पल्ले ही नहीं पड़े। हम ठहरे हिंदी भाषी। ये पाश्चात्य भाषा कभी पल्ले नहीं पड़ी हमारे। नाम तो नाम है, कोई भी रख लो जी। फिर हम तो एक ही बात जानते हैं कि नाम में क्या रखा है ? अगर हमारा नाम हरिशंकर के बजाय गौरीशंकर होता तो इससे हम बदल तो नहीं जाते ना। बड़े प्रेम से खाना खिलाया था उन्होंने। फिर हम कृष्णा खंडेलवाल जी की रसोई में चले गए। 

हमें बड़ी गलतफहमी थी कि वे जयपुर से हैं। हम तो उनसे जयपुर के प्रसिद्ध पनीर घेवर, फीणी, चूरमा बाटी दाल की उम्मीद लगा रहे थे। मगर वहां पहुंचने पर पता चला कि वे तो दिल्ली की हैं। एक झटके में ही हमारी उम्मीदें धराशाई हो गई। वो बड़ी हैल्थ कॉन्शियस हैं। उन्होंने कहा "बच्चों, कल से आप सब लोग अटरम शटरम खा रहे हो। आधे लोगों का तो पेट खराब भी हो गया है। मां केवल अच्छा खाना ही नहीं बनाती बल्कि बच्चों की सेहत का भी पूरा पूरा ध्यान रखतीं हैं। अभी तुम निधि बहन की रसोई से भी आ रहे हो इसलिए मैंने तुम लोगों के लिए केवल खिचड़ी तैयार की है। यह ठीक रहेगी"। 

राजेश घायल जी तो खिचड़ी का नाम सुनते ही बेहोश हो गए। हमने कहा कि इनको "हलवा" सुंघाओ। हलवा की सुगंध से वे सचेत हुए। उनको सांत्वना दी कि अगली रसोई में शानदार माल हैं। यहां खिचड़ी कम खाना"। वे समझ गए और ऐसा ही किया। 

अगली रसोई पूनम चंदवानी जी की थी। नाम के अनुरूप रोशनी से जगमगा रही थी वह। चांद सितारों की तरह तरह तरह के व्यंजन बना कर जगह जगह लटका रखे थे। हम चक्कर में पड़ गए कि ये क्या माजरा है ? तब वे बोलीं "एक प्रतियोगिता रखी है हमने। सब बच्चों के हाथ पीछे बांध दिए जाएंगे और उचक उचक कर मुंह से लपक कर खाना है। जो जितना ज्यादा खायेगा, उतनी ही मौज उड़ाएगा "। 

हम सबके हाथ बांध दिए। हम सब शुरू हो गए और उचक उचक कर खाने लगे। वे इस मजेदार दृश्य का वीडियो बनाती रहीं। पर एक समस्या हो गई। अरविंद जी की हाइट थोड़ी कम थी इसलिए कई बार उचकने के बाद भी उनका मुंह "मुकाम" तक पहुंचा ही नहीं। मगर हम भी कम नहीं थे। एक पट्टा उठा लाये और उनको उस पर खड़ा कर दिया। तब जाकर काम बना। इस प्रकार की दावत खाने में जो मजा आया वह अद्भुत था। 

इसी बीच एक गड़बड़ हो गई। रूप नारायण जी कहने लगे कि नीलम गुप्ता नजरिया जी के चलेंगे लेकिन योगेन्द्र पांडे जी कहने लगे कि हम तो अनुसुभा सिंह अनुवीर जी की रसोई में जाएंगे। बच्चे तो होते ही जिद्दी हैं, बस, हठ पकड़ ली। हमने समझाने की बहुत कोशिश की मगर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है। फिर हमने कहा कि उपेन्द्र कुमार सिंह जी हम सबमें बड़े हैं इसलिए उनको मॉनीटर बनाते हैं। जो वे कहेंगे पहले वहां चलेंगे। सबको यह बात सही लगी। उपेन्द्र कुमार सिंह जी ने कहा कि पहले कंचन शुक्ला जी की रसोई में चलते हैं। बेचारे दोनों बालक अपना सा मुंह लेकर रह गए। 

कंचन शुक्ला जी ने केक बनाया था। विचित्र केक था। एक ही केक में अलग-अलग फ्लेवर की अलग-अलग लेयर ! कोई पाइन एप्पल वाली तो कोई मैंगो वाली। कोई लीची वाली तो कोई केवड़ा वाली। सबसे ऊपर चॉकलेटी लेयर थी। सब बच्चे केक देखकर ही कुछ हो गए और जो थोड़ा सा मनमुटाव हो गया था, उसे भूल गए। 

कंचन शुक्ला मैम ने उपेंद्र जी जो कि मॉनीटर थे को अलग से थाली तैयार की आखिर मॉनीटर थे हमारे। उन्हें भी बड़ी शानदार फीलिंग्स आईं विशेष महत्व पाकर। विशेष महत्व की फीलिंग्स किसे नहीं होती है ? जिसे दिया जाता है वो कॉलर चढ़ा लेता है। कंचन शुक्ला मैम जब और केक लेने अंदर गई तो हमारे साथियों ने एक दूजे पर केक मल दिया। खूब धमा-चौकड़ी मचा दी। जब मैम वापस आई तो सब अस्त व्यस्त देखा तो गुस्सा फूट पड़ा। सब बच्चों को खूब डांट पड़ी। फिर मॉनीटर का नंबर आया। कहने लगी "मॉनीटर केवल विशेष महत्व पाने के लिए ही नहीं होता अपितु उसके भी दायित्व होते हैं। उनको निभाने की जिम्मेदारी भी है आपकी"। सब बच्चों को जैसे सांप सूंघ गया। सबने सॉरी बोला। तब मैम भी खुश हो गई। मां डांटतीं हैं तो लाड़ भी तो करतीं हैं न। और जब लाड़ करतीं हैं तो टूट के करतीं हैं। 

आगे सीमा ओझा मैम की रसोई थी। वहीं पर सुषमा शर्मा, जान्हवी शर्मा, दिव्या जोशी और सुषमा बल प्रसाद मैम भी थीं। इन सबने दक्षिण भारतीय व्यंजन तैयार कर रखे थे। भांति-भांति के डोसा कोई प्लेन तो कोई मसाला, कोई ओनियन तो कोई चीज और तो और एक डोसा आल इन वन था यानि ओनियन, चीज, बटर, मसाला डोसा। वाह जी वाह। खुशबू से ही तबीयत प्रसन्न हो गई। भूख बढ़ गई वापस। इनके साथ इडली, सांभर, वड़ा, नारियल चटनी। मजा आ गया। कितनी तैयारियां की थीं सबने मिलकर। सही कहा है कि मां अपने बच्चों के लिए कितनी भी मेहनत कर सकतीं हैं। सबने मनुहार कर करके भोजन कराया। 

नीलम गुप्ता नजरिया मैम और अनुसुभा अनुवीर मैम की रसोई अभी बाकी थी। हमने आग्रह किया कि मैम आप दोनों एक साथ आ जाओ ना। इससे हमारा झगड़ा भी खत्म हो जाएगा और हम लोग ज्यादा खाने से भी बच जाएंगे। उन्होंने हमारी बात मान ली और एक साथ आ गई। उन्होंने पंजाबी थाली लगा रखी थी। छोले भटूरे, मक्की की रोटी, सरसों का साग, लहसुन की चटनी, ढेर सारा ताजा मक्खन और बड़ा गिलास भर के लस्सी। कसम से आनंद आ गया। लस्सी पीने से हम सबके सफेद मूंछें भी बन गई। सब बच्चों में होड़ लग गई कि किसकी मूंछ बड़ी ? आजकल लड़ाई भी मूंछों की ही है। दोनों मैम ने सबको समझाया कि अच्छे बच्चे कभी मूंछों की लड़ाई नहीं लड़ते। एक बात तो माननी पड़ेगी कि समझाने की जो ताकत मां में है वो दुनिया में कहीं नहीं हैं। 

आज हमें कुछ मैम ने ताना भी मारा कि उनकी रसोई भी तो है और वे भी खुदा न खास्ता खाना अच्छा ही बना लेतीं हैं तो फिर उनकी रसोई में क्यों नहीं आये ? प्रश्न उनका वाजिब था। मगर मैम, हम यह कहना चाहते हैं कि हम बच्चों का पेट बहुत छोटा सा होता है। बड़ी जल्दी भर जाता है। कल इतना सारा खिला दिया था कि बिलकुल इच्छा नहीं थी और खाने की। पर आज आ रहे हैं न खाने के लिए। चिंता क्यों करती हैं आप ? 

हमें तो कृष्ण कन्हैया वाली फीलिंग्स आ रही थी। जिस तरह गोपियां भगवान श्रीकृष्ण को माखन खाने के लिए निमंत्रण देती थीं और इंतजार करतीं रहतीं थीं कि कब वे आएं और उनका ममत्व कब पूर्ण हो ? उसी तरह यहां पर भी बहुत सारी मांओं का ममत्व जागृत हो रहा था। 

राबिया द राइटर मैम ने विशेष रूप से बिरयानी बनाई है और वह भी पूर्ण रूपेण "वेज"। अलग अलग कलेवर की "हैदराबादी" "लखनवी" "कश्मीरी" सब तरह की। पर सबसे बड़ी बात है स्नेह। कुक के खाने और मां या बीवी के खाने में क्या अंतर है ? यही तो अंतर है कि कुक के लिए खाना बनाना एक नौकरी भर है जबकि मां या पत्नी के लिए खाना बनाना एक पूजा है। बस, जो भाव नौकरी और पूजा में है उससे ही खाने की पौष्टिकता और स्वाद में अंतर आ जाता है। 

शबाना परवीन मैम, फरजाना इरफान मैम, छाया मैम भी बहुत देर से इंतजार कर रही हैं। हम लोग सोच रहे थे कि अभी तक गुजराती थाली नहीं मिली। काश गुजराती थाली मिल जाती ? शायद मांओं का हृदय बच्चों की धड़कनों से जुड़ा रहता है इसलिए वे बच्चों के मन की बात तुरंत जान लेती हैं। 

जैसे ही हम इनकी रसोई में पहुंचे तो क्या देखते हैं कि एक शानदार गुजराती थाली मेज पर सजी हुई है। पूरे छप्पन आइटम थे। गुजरातियों की यही विशेषता है कि वे मस्त जिंदगी जीते हैं। खाने पीने के शौकीन हैं। जमकर हाथ साफ किया सबने। अब तो पेट भी "टें" बोल गया था। लेकिन इनकी मनुहार कम नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से हमारा पीछा तब छोड़ा जब बाहर निकला हुआ पेट दिखाया उन्हें। 

हम लोग अपने घरों को जाने ही वाले थे कि शोभा शर्मा मैम रास्ते में ही मिल गई। उनकी थाली में पूरा भारत नजर आ रहा था। बंगाल का रशोगुल्ला, मिष्टी दही, मथुरा के पेड़े, अलवर का कलाकंद, दिल्ली का मूंगलेट, अखरोट का हलवा सभी कुछ था। और तो और कई तरह के पापड़ तथा बनारसी पान लेकर तैयार खड़ी थीं वे। हमारी टोली को देखकर वे प्रसन्न हो गई। मां तब तक सुखी नहीं रह सकती जब तक बच्चों ने खाना खा नहीं लिया हो। शोभा मैम ने बहुत दुलार से सबको खाना खिलाया। खाना खाने के बाद पापड़ और फिर पान। किसी महाराजा की थाली भी ऐसी नहीं होगी जो हम बच्चों ने जीमीं थी। जीमना राजस्थानी शब्द है जिसका मतलब है खाना। 

आज मुझे हेमलता मैम की बहुत याद आ रही है। उन्होंने मुझे हमेशा एक मां का प्यार दिया है। बहुत दिनों से उनके दर्शन नहीं हुए हैं। अगर किसी के संपर्क में हों तो कृपया मेरा संदेश जरूर पहुंचाएं उन तक। 

इतना खाना खाने के पश्चात घर जाना भी दूभर लग रहा था। मगर जाना तो पड़ेगा ना। राम राम करते घर पहुंचे और बिस्तर पर लुढ़क गए। 


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