प्रतिक्रिया, समालोचना और टिप्पणियाँ
प्रतिक्रिया, समालोचना और टिप्पणियाँ
प्रतिक्रिया सकारात्मक, विषय संबंधित, तथ्यपूर्ण, रोचक, सुंदर सभी को अच्छे लगते हैं। बात यहीं जाकर नहीं रुकती है। कभी -कभी समालोचना, टिप्पणियाँ, हिदायतें और कटाक्ष प्रतिक्रियाओं का भी सामना करना पड़ता है जो स्वभावतः असहज प्रतीत होते हैं। प्रायः -प्रायः यह असहज भंगिमा हमें राजनीति विषयों के दहलिजों में ही अक्सर मिलते हैं। हमलोगों की विचारधारायें अलग -अलग होतीं हैं। अधिकाशतः कर्कश वातावरण का श्री गणेश हो जाता है। मित्रता की दीवारें चटकने लगतीं हैं। हम तंग होकर उनको “ ब्लॉक “ करते हैं या “ अनफ्रेंड “ कर देते हैं। आखिर सब काम को छोड़ कर कब तक विवादों में उलझे रहेंगे ? डिजिटल मित्रता के दौर में हम नहीं तो कोई और सही। एक बात तो गाँठ बाँध लीजिए “ समान विचारधारा “ वाले ही लोग एक साथ रह सकते हैं। और यह डिजिटल मित्रता का मूल मंत्र है।
साहित्यिक परिचर्चाओं में भी समलोचनायें भी होतीं हैं और टीका -टिप्पणी भी की जाती है। पर ये समलोचनायें और टीका -टिप्पणी शालीनता, शिष्टाचार और माधुर्यता पर अधिकांशतः टिकीं रहतीं हैं। कुछ हम समझते हैं कुछ वे समझते हैं। कई लोग तो किन्हीं की लेखनियों को पढ़ते ही नहीं हैं तो समालोचनाओं का प्रश्न ही कहाँ उठता है ? बहुत से लोग देखकर और पढ़कर नजरन्दाज़ कर देते हैं। फिर भी हम इन्हें अपने हृदय में संभाल कर रखते हैं।
तीसरे किस्म के लोग बड़े अनोखे ग्रह के प्राणी लगते हैं। उनकी प्रतिक्रिया भी अनोखी होती है। आप राजनीति विषयों को लिखें, साहित्यिक लेख, कविता, व्यंग्यात्मक और विश्व के तमाम बातों को क्यों ना लिखें पर ये अनोखे ग्रह के प्राणियों की समालोचना से आप बड़े आहत हो ही जाएंगे। आप कुछ भी लिखें, करें या तस्वीर डाल दें। आपकी उपलब्धि हो या दुख से पीड़ित हों अनोखे ग्रह के प्राणी लोगों के कमेन्ट को ध्यान से देखें और पढ़ें :--“ जय हो “----“जय श्री राम “---“जय मिथिला “----“जय हनुमान “ ---इत्यादि -इत्यादि। दरअसल इन नारों का महत्व धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अति उत्तम है पर इन सब का प्रयोग ये अनोखे ग्रह के प्राणी हरेक जगह करते रहते हैं। इन्हें थोड़ा भी एहसास नहीं होता कि कौन -कौन इससे आहत होते हैं ?
सब अपने -अपने स्थानों पर जो हैं सो हैं पर इस बात को हम कभी ठुकरा नहीं सकते हैं कि हम जो भी अपनी प्रतिक्रिया, समालोचना और टीका -टिप्पणी सोशल मीडिया पर करें उसे यथायोग्य और सटीक करें अन्यथा हमें कोई स्वीकार नहीं करेगा।
