Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Charumati Ramdas

Drama

4  

Charumati Ramdas

Drama

प्रमुख नदियाँ

प्रमुख नदियाँ

7 mins
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हालाँकि ये मेरा नौवाँ साल चल रहा है, मगर मुझे सिर्फ कल ही इस बात का एहसास हुआ कि होम-वर्क करना ज़रूरी है। चाहे तुम्हें पसन्द हो या ना हो, तुम्हारा मन हो या ना हो, चाहे आलस आ रहा हो या ना आ रहा हो, मगर होम-वर्क तो करना ही पड़ेगा। ये नियम है। वर्ना तो तुम्हारा वो हाल होगा कि अपनों को भी न पहचान पाओगे। मैं, मिसाल के तौर पर, कल होम-वर्क नहीं कर पाया। हमें नेक्रासोव की कविता का एक पद मुँह-ज़ुबानी याद करना था और अमेरिका की प्रमुख नदियों के बारे में याद करना था। मगर मैं, पढ़ाई करने के बदले, कम्पाऊण्ड से पतंग को अंतरिक्ष में भेजने लगा। ख़ैर, वो तो अंतरिक्ष पहुँची ही नहीं, क्योंकि उसकी पूँछ बेहद हल्की थी, और इसकी वजह से वह गोता खा रही थी, भौंरे की तरह। ये हुई पहली बात। और दूसरी बात ये, कि मेरे पास बहुत कम माँजा था, मैंने पूरा घर छान मारा और जितने भी मिले उतने सारे डोरे इकट्ठे कर लिए; मम्मा की सिलाई मशीन तक से निकाल लिया, मगर वो भी कम ही पड़ा। पतंग स्टोर-रूम की छत तक गई और वहीं अटक गई, अंतरिक्ष तो अभी काफ़ी दूर था।

और, मैं इस पतंग और अंतरिक्ष में इतना खो गया कि दुनिया की हर चीज़ के बारे में बिल्कुल भूल गया। मुझे खेलने में इतना मज़ा आ रहा था कि मैंने होम-वर्क के बारे में सोचना भी बन्द कर दिया। दिमाग़ से बिल्कुल उतर गया। मगर ऐसा लगा कि अपने काम के बारे में भूलना नहीं चाहिए था, क्योंकि मुझे बड़ी शर्मिन्दगी उठानी पड़ी।

सुबह मैं देर से उठा, और, जब मैं उछल कर बिस्तर से बाहर आया, तो समय बहुत कम बचा था। मगर मैंने पढ़ रखा था कि आग बुझाने वाले लोग कितने फटा-फट् कपड़े पहनते हैं – एक भी बेकार की हरकत वे नहीं करते, और ये मुझे इतना अच्छा लगा कि आधी-गर्मियाँ मैं फटा-फट् कपड़े पहनने की प्रैक्टिस करता रहा। और आज, जैसे ही मैं उछलकर उठा और घड़ी पर नज़र डाली, तो फ़ौरन समझ गया कि आग बुझाने वालों की तरह फटा-फट् तैयार होना है। और मैं एक मिनट अडतालीस सेकण्ड में पूरी तरह तैयार हो गया, बस जूतों की लेस दो-दो छेदों के बाद डाल दी। मतलब, स्कूल में मैं बिल्कुल समय पर पहुँच गया और अपनी क्लास में भी रईसा इवानोव्ना से एक सेकण्ड पहले पहुँच गया। मतलब, वो आराम से कॉरीडोर में चलती हुई जा रही थीं, और मैं क्लोक-रूम से भागा (लड़के वहाँ थे ही नहीं)। जब मैंने दूर से रईसा इवानोव्ना को देखा, तो मैं पूरी रफ़्तार से दौड़ पड़ा, और क्लास से पाँच कदम की दूरी पर मैंने रईसा इवानोव्ना को पीछे छोड़ दिया और कूद कर क्लास में घुस गया। मतलब, मैंने उन्हें क़रीब डेढ़ सेकण्ड से हरा दिया, और, जब वो अन्दर आईं, मेरी किताबें डेस्क पर थीं, और मैं मीश्का के साथ ऐसे बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो। रईसा इवानोव्ना अन्दर आईं, हम खड़े हो गए और उन्हें ‘नमस्ते’ कहा, और सबसे ज़्यादा ज़ोर से मैंने ‘नमस्ते’ किया, जिससे कि वो देख लें कि मैं कितना शरीफ़ हूँ। मगर उन्होंने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और फ़ौरन कहा:

 “कराब्ल्योव, ब्लैक-बोर्ड पे आओ!”

मेरा तो मूड ही ख़राब हो गया, क्योंकि मुझे याद आ गया कि मैं होम-वर्क करना भूल गया था। मेरा अपने प्यारे डेस्क से बाहर निकलने का ज़रा भी मन नहीं था। जैसे मैं उससे चिपक गया था। मगर रईसा इवानोव्ना जल्दी मचाने लगीं:

 “कराब्ल्योव! क्या कर रहा है ? सुना नहीं, मैं तुझे बुला रही हूँ ?”

और मैं ब्लैक-बोर्ड के पास पहुँचा। रईसा इवानोव्ना ने कहा:

 “कविता!”

मतलब, मैं वो कविता सुनाऊँ, जो होम-वर्क में मिली थी। मगर मुझे तो वो आती ही नहीं थी। मुझे ये भी अच्छी तरह से मालूम नहीं था कि कौन सी कविता याद करने के लिए दी गई थी।  इसलिए, एक पल को मैंने सोचा कि हो सकता है, रईसा इवानोव्ना भी भूल गई हों, कि होम-वर्क में क्या दिया था, और इस बात पर ध्यान नहीं देंगी कि मैं क्या पढ़ रहा हूँ। और मैंने बड़ी हिम्मत से शुरू कर दिया:

सर्दियाँ!।ख़ुशी-ख़ुशी जाता किसानगाड़ी में

बनाता नई राह:

बर्फ सूँघते, घोड़ा उसका,

चले मगर अलसाई चाल।

 “ये पूश्किन है,” रईसा इवानोव्ना ने कहा।

 “हाँ,” मैंने कहा,” ये पूश्किन है। अलेक्सान्द्रसिर्गेयेविच।”

 “और मैंने क्या दिया था ?” उन्होंने कहा।

 “हाँ!” मैंने कहा।

 “क्या ‘हाँ’ ? मैंने क्या दिया था, मैं तुझसे पूछ रही हूँ ? कराब्ल्योव !”

 “क्या ?” मैंने कहा।

 “क्या ‘क्या’ ? मैं तुझसे पूछ रही हूँ : मैंने क्या दिया था ?”

अब मीश्का ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा:

” वो क्या, नहीं जानता क्या, कि आपने नेक्रासोव दिया था ? ये तो वो आपका सवाल नहीं समझ पाया, रईसा इवानोव्ना।”

ये होता है सच्चा दोस्त। मीश्का ने चालाकी से प्रॉम्प्ट करके मुझे बता दिया कि होम-वर्क में क्या मिला था। मगर अब रईसा इवानोव्ना को गुस्सा आ गया था:

 “स्लोनव! प्रॉम्प्ट करने की हिम्मत न करना !”

 “हाँ!” मैंने कहा। “तू, मीश्का, बीच में क्यों नाक घुसेड़ता है ? क्या तेरे बिना मैं नहीं जानता कि रईसा इवानोव्ना ने नेक्रासोव दिया था! वो तो मैं कुछ और सोचने लगा था, और तू है कि घुसे चला आता है, कन्फ्यूज़ कर देता है।”

मीश्का लाल हो गया और उसने मुँह फेर लिया। मैं फिर से अकेला रह गया रईसा इवानोव्ना का सामना करने के लिए।

 “तो ?” उन्होंने कहा।

 “क्या ?” मैंने कहा।

 “ये हर घड़ी ‘क्या-क्या’ करना बन्द कर !”

मैंने देखा कि अब उन्हें वाक़ई में गुस्सा आ गया था।

 “सुना। मुँह ज़ुबानी!”

 “क्या ?”

 “बेशक, कविता!” उन्होंने कहा।

 “आहा, समझ गया। कविता, मतलब, सुनानी है ?” मैंने कहा। “अभी सुनाता हूँ।” और मैंने ज़ोर से शुरूआत की:

“ नेक्रासोव की कविता। कवि की। महान कवि की।”

 “आगे!” रईसा इवानोव्ना ने कहा।

 “क्या ?” मैंने कहा।

 “सुना, फ़ौरन!” रईसा इवानोव्ना चिल्ला पड़ी। “फ़ौरन सुना, तुझसे ही कह रही हूँ! शीर्षक !”

जब तक वो चिल्ला रही थीं, मीश्का ने प्रॉम्प्ट करके मुझे पहला शब्द बता दिया। वह फुसफुसाया, बिना मुँह खोले। मगर मैं उसे अच्छी तरह समझ गया। इसलिए मैंने बहादुरी से एक पैर आगे किया और ऐलान कर दिया:

 “छोटा-सा किसान!”

सब ख़ामोश हो गए, और रईसा इवानोव्ना भी। उन्होंने ग़ौर से मेरी ओर देखा, मगर मैं इससे भी ज़्यादा ग़ौर से मीश्का की ओर देख रहा था। मीश्का ने अपने अँगूठे की ओर इशारा किया और न जाने क्यों उसके नाखून पर टक्-टक् करने लगा।

मुझे फ़ौरन शीर्षक याद आ गया और मैंने कहा:

 “नाखून वाला !”

और मैंने पूरा शीर्षक फिर से दुहरा दिया:

 “छोटा-सा किसान नाखून वाला"(असल में कविता का शीर्षक है – नाखून जितना किसान –अनु।)

सब हँसने लगे। रईसा इवानोव्ना ने कहा:

 “बस हो गया, कराब्ल्योव!।कोशिश मत कर, तुझसे नहीं होगा। अगर जानता नहीं है, तो शर्मिन्दगी तो ना उठा।” फिर उन्होंने कहा: “और जनरल नॉलेज का क्या हाल है ? याद है, कल हमारी क्लास ने ये तय किया था कि कोर्स के अलावा हम दूसरी दिलचस्प किताबें भी पढ़ेंगे ? कल हमने तय किया था कि अमेरिका की सभी नदियों के नाम याद करेंगे। तूने याद किए ?”

बेशक, मैंने याद नहीं किए थे। ये पतंग, इसने गड़बड़ कर दी, मेरी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी। मैंने सोचा कि रईसा इवानोव्ना के सामने सब कुछ स्वीकार कर लूँगा, मगर इसके बदले अचानक मेरे मुँह से निकला:

 “बिल्कुल, याद किए हैं। कैसे नहीं करता ?”

“ठीक है, नेक्रासोव की कविता सुनाकर तूने जैसा डरावना प्रभाव डाला था, उसे अब दूर कर दे। अमेरिका की सबसे बड़ी नदी का नाम बता दे, और मैं तुझे छोड़ दूँगी।

अब तो मेरी हालत ख़राब हो गई। मेरा पेट भी दुखने लगा, क़सम से। क्लास में ग़ज़ब की ख़ामोशी थी। और मैं छत की ओर देखने लगा। और मैं सोच रहा था कि अब, शायद, मैं मर जाऊँगा। अलबिदा, सबको! और तभी मैंने देखा कि बाईं ओर की आख़िरी लाईन में पेत्का गर्बूश्किन मुझे अख़बार की लम्बी रिबन दिखा रहा है, और उस पर स्याही से कुछ लिखा है, शायद, उसने ऊँगली से लिखा था। मैं इन अक्षरों को देखने लगा और आख़िरकार मैंने पहला अक्षर पढ़ ही लिया।

रईसा इवानोव्ना ने फिर से कहा:

 “तो, कराब्ल्योव ? अमेरिका की प्रमुख नदी कौन सी है ?”

मेरा आत्मविश्वास फ़ौरन जाग उठा, और मैंने कहा:

 “मिसी-पिसी।”

आगे मैं नहीं बताऊँगा। बस हो गया। और हालाँकि रईसा इवानोव्ना की आँखों में हँसते-हँसते आँसू आ गए, मगर उन्होंने ‘दो’ नम्बर दे ही दिए।

अब मैंने क़सम खा ली है, कि हमेशा होम-वर्क पूरा करूँगा बुढ़ापे तक।


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